Thursday, March 4, 2010

हुसैन के बहाने कंफर्ट जोन से बाहर आने का समय

ब्लाग जगत में अभी एमएफ हुसैन छाये हुए हैं। कुछ तर्क करने से भी डर लगता है। बेचारे कतर में बैठकर वहां से संदेश भेजते हैं कि हम भारत में काम नहीं कर सकते, वहां काम का माहौल नहीं। हुसैन हों या तस्लीमा, वे आज की तारीख में बदलते सामाजिक परिवेश के सबसे रोचक अंश हैं। विवाद की जमीन जैसे भी रची गयी हो, लेकिन एक बात निश्चित है कि किसी भी प्रकार से किसी समुदाय विशेष को नाराज कर कोई कला, लेखक या कुछ भी नहीं जारी रह सकता। हम बहस में अपने कंफर्ट जोन से बाहर नहीं आ पाते। हम ये नहीं बता पाते हैं कि समस्या का समाधान क्या है? हमें ये लगता है कि हम एमएफ हुसैन से इतना प्यार क्यों करते हैं? घृणा भी तो प्यार का दूसरा रूप है।

हुसैन का पराभव ये दिखाता है कि हम कैसे अपनी बातों को सही परिप्रेक्ष्य में रखें। तस्लीमा आज दर-दर भटक रही हैं, तो उनकी एक गलती उनका लेखन रहा। एक बात निश्चित है कि विचारों पर संस्कृति या कहें धार्मिक पक्ष ज्यादा हावी रह रहे हैं। यूं कहें कि हम एक कंफर्ट जोन में रह रहे हैं, जहां से हम निकलना नहीं चाहते। अगर हम कहें कि हमें ईश्वर में विश्वास नहीं, तो हमें तर्कों से बताया जाएगा कि हमें ईश्वर में विश्वास क्यों नहीं है? हमे बहस में दबाये जाते हैं कि ईश्वर है, हम उसकी उत्पत्ति हैं। उसके कारण गिनाये जाते हैं। गुनाहों के देवता के रूप में दर्ज किये जाते हैं। हम ईश्वर को नहीं मानने की बात करते हुए दूसरे लोगों के मन में जो कंफर्ट जोन बना है, उस पर प्रहार करते हैं। उन्हें बाहर आने के लिए बाध्य करते हैं।

हम एक बात यहां कहें कि भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी का सहज जीवन जरूरी है। उसमें अगर लिव इन रिलेशनशिप के मुद्दे को लेकर बात उठायी जाये, तो न जाने कितने लोगों को पीड़ा पहुंचेगी। वे इस बात का अहसास दिलाना चाहेंगे कि हम गलत हैं। गलत हो सकता है, लेकिन ये सच्चाई भी है कि लिव इन रिलेशनशिप आज की तारीख में महानगरों में एक सच्चाई है। यानी कि हम बहस के कंफर्ट जोन से बाहर निकल कर
वहां नहीं जा पाते हैं, जहां पर मुद्दों को निरपेक्ष होकर देख सकें।

हुसैन तो गये कतर। उन्हें वहां कोई दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए। लेकिन हम जो यहां सिर पीटे बैठे हैं, तो उसमें हमारा कंफर्ट जोन हमें दूसरी समस्याओं या यूं कहें हुसैन के बहाने हमें अपने अंदर झांकने से मना कर रहा है। यहां थोड़ा उपदेशक हो जाता हूं, लेकिन हमें चाहिए कि हम सतह से ऊंचा उठकर मामले को ऊपरी तौर पर देखें और उससे परे एक ऐसा माहौल बनायें, जहां बहस को धार मिले।

अन्य धर्मों की उत्पत्ति भी तथाकथित कंफर्ट जोन से बाहर आकर नया नजरिया विकसित करने से ही हुई। हम ये नहीं कहते हैं कि आप परोपकार करते रहिये, लेकिन कम से कम इसे सहनशक्ति के उस स्तर तक जरूर कायम रखना चाहिए, जहां सामाजिक सहिष्णुता प्रभावित नहीं हो। नहीं तो , ये अवसरवादी ताकतों को मजबूती ही प्रदान करता है।

3 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

विवादास्पद लोगों पर लिखना उन्हें पब्लिसिटी देना है.उन्हें ऊपर बाले के भरोसे छोड़ देना चाहिए....

अबयज़ ख़ान said...

अपने मुल्क में गुंडों को कानून का खौफ नहीं है.. यहां तो कानून गुंडों से कांपता है... हुसैन साहब की बात तो छोड़िये... वो तो क़तर में बस गये... लेकिन अपने ही मुल्क के एक सूबे महाराष्ट्र में अपने ही मुल्क के लोग नहीं घुस सकते... क्योंकि कुछ गुंडों की वहां हुकूमत चलती है...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हुसैन साहब को तो सब सपोर्ट कर रहे हैं लेकिन तस्लीमा के नाम पर यही लोग फांसी का फंदा लेकर घूमते हैं.

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