Tuesday, March 16, 2010
शायद कभी मिल जाए....
मेरे जेहन में कभी-कभी ऐसे सवाल जन्म लेते हैं, जो कभी पूरे नहीं हो सकते। कभी-कभी लगता है कि कल्पना से परे दुनिया में सवालों के जवाब ढूढ़ना पड़ेगा। एक सवाल ये होता है कि आसमान और धरती जब मिलेंगे, तब क्या होगा। उस कयामत के दिन कैसी स्थिति-परिस्थिति होगी। सवालों में सवाल है। जब राजनीतिक दल सदन में किचिर-किचिर करते हैं, तब ऐसे ही विचार बनते हैं। जिन चीजों से असलियत को कोई सरोकार नहीं, उन चीजों को लेकर हाय-तौबा मची रहती है। जब चित्रकार चित्र बनाता है, तो उसे ऐसे ही विचार आते होंगे। इसे आप रूमानी कहें, सिरफिरा या कुछ और, कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि जब तक सिस्टम से बाहर जाकर सोचेंगे नहीं, नया कभी नहीं बनेगा। नया बनाने के लिए खुद से बाहर निकलना होगा। खुद से बाहर निकलना आसान नहीं होता। आपकी परिस्थिति, आपकी असली तस्वीर को दबा डालती है। जिससे आप वह नहीं रहते, जो आप हैं। उसके लिए खुद पर मेहनत करनी होती है। मुझे पता नहीं, ये बात यहां कहनी चाहिए या नहीं। लेकिन इन सवालों के सहारे मैं खुद में खुद को खोजता रहता हूं। शायद कभी मिल जाए.... । वैसे ये एक अंतहीन सफर है।
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2 comments:
बहुत सही कहा आपेन आशा करता हू आपको मेरा पोस्ट भी पसंद आएगा http://bit.ly/bKBPW2
ठीक लिखा है आपने. कई बार ऐसी जिज्ञासायें हर किसी के मन में उठती हैं.
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