Monday, April 19, 2010
आइपीएल का धंधा. ..... लगता है कुछ गंदा
देखिये लालू प्रसाद कहते हैं कि बीसीसीआइ का सरकार अधिग्रहण करे। ये तीन-चार साल बाद सरकार जाग रही है। जब देश में सुरक्षा के सवाल पर आइपीएल को साउथ अफ्रीका में कराया जा रहा था, तब सोचा जाना चाहिए था, ये सब। शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर के बहाने आइपीएल के पीछे का खेल बहस का मुद्दा बन गया है। क्रिकेट को प्रोडक्ट बनाकर बेचे जानेवाले आइपीएल के इस रूप पर जोरदार बहस होनी चाहिए। ये देश उन्मुक्त बाजार के हवाले हो या नहीं, ये सबसे गंभीर बहस है। आइपीएल एक ट्रेंड है, जिसे बाद में संभालना मुश्किल है। आज आइपीएल के बहाने जो नेता इस बहस को उठा रहे हैं, उनमें कम से कम, हमारा मानना है कि इतने संस्कार भरे हैं कि देश के प्रति वे समग्र रूप से सोचते हैं। २०-२० क्या है, चट मंगनी पट ब्याह। आपने खेल को तेज रफ्तार का बना दिया। उसमें करोड़ों की बोली लगायी जाती है। लेकिन उसकी पारदर्शिता पर उंगली उठती है और आयकर विभाग इसे जांच के दायरे में ले लेता है। जांच कर रहा है। ये सारा मामला कहीं न कहीं ये संदेश दे रहा है कि कुछ गड़बड़ है। सवाल ये है कि क्रिकेट की दीवानगी के बहाने हम देश के प्रति जिम्मेदारी, सामाजिक मर्यादा और अपनी विरासतों का जो सत्यानाश कर रहे हैं, उसका क्या होगा। पुरानी पीढ़ी कम से कम इस नुकसान को ज्यादा महसूस कर रही है, लेकिन नयी पीढ़ी तो उन्मुक्त बाजार और खुलेपन का स्वाद चखने के बाद शायद ये सवाल भी न करे। जब आइपीएल को सुरक्षा के नाम पर द. अफ्रीका में कराने की बात हुई थी, तो सर फोड़ने का मन कर रहा था। इस देश की व्यवस्था कोई खेल संघ या व्यवस्था कैसे हाशिये पर रख सकता है। असल में इसके पीछे इतना पैसा है कि मर्यादा, जिम्मेवारी या अन्य शब्द गड्ढे में धकेल दिये जाते हैं। अरबों के इस धंधे को कम से कम पारदर्शिता और मूल्यों के मापदंड पर तो रखना ही चाहिए। नहीं तो अनियंत्रित हो जाने के बाद कुछ नहीं हो सकता। हम तो शशि थरूर को धन्यवाद देते हैं कि उनके बहाने ये आइपीएल का धंधा बहस का मुद्दा बना। कहां से कौन कितना पैसा लगा रहा है और उसका स्रोत किया है, ये हर किसी को जानने का हक है। यहां इस चीज का भी ख्याल रखा जाये कि खेल के नाम पर किसी राष्ट्र का अपमान नहीं है। जैसा कि किसी पाक खिलाड़ी की बोली नहीं लगने पर अनुभव हुआ है। किसी देश की भावना, किसी का सम्मान पैसे से बड़ी चीज होती है। ये देखना होगा। बहुत हुआ। अभी सदन गूंज रहा है, कल सड़कों पर इसे लेकर हंगामा मचना तय है।
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2 comments:
किन-किन चीजों पर बहस की जाए? सरकारी नवरत्न को घाटा दिलाकर रिलायंस को १०,००० करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाने का, स्पेक्ट्रम की नीलामी में १०००००० करोड़ का फायदा रातोंरात कारोबारियों को पहुंचाने का? क्या क्या कहा जाए, दलालों की सरकार है।
सब गोलमाल है... सत्येन्द्र से सहमत...
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