जिंदगी के पन्नों को पलटते हुए नीतीश कुमार ब्लाग की दुनिया में कदम रखकर नयी कहानी लिख रहे हैं। नीतीश वह सबकुछ कर रहे हैं, जिससे कम से कम सकारात्मक संदेश जाये। ये प्रयास नीतीश का सराहनीय है। एक बेहतर कदम है। लेकिन नीतीश इस मामले में एक जगह चूक गये। उन्होंने ब्लाग लेखन के लिए अंगरेजी भाषा का चयन किया है। आम जन तक पहुंचने के लिए नेट का सहारा और वह भी अंगरेजी भाषा में जंचता नहीं। अगर मकसद आम लोगों तक पहुंचना है, तो भाषा के लिहाज से हिन्दी से बेहतर दूसरी भाषा कम से कम बिहार के लिए कुछ नहीं हो सकती। तकनीकी दृष्टि से किसी सीएम का नेट सेवी होना अच्छा है और इसके साथ ही ये अच्छा है कि वह आम आदमी से संवाद कायम करना चाहता है। लेकिन सीएम साहब को फीडबैक तो उनकी ही जनता देगी, जिसमें से ७० फीसदी तो अंगरेजी कतई नहीं जानती होगी। इसलिए हिन्दी भाषा का उपयोग एक बेहतर माध्यम होता। पहले ही पोस्ट में नीतीश ने बच्चियों को साइकिल बांटने की पहल का जिक्र किया है। वैसे नीतीश को ब्लाग की दुनिया में उन आलोचनाओं को भी झेलने के लिए तैयार रहना होगा, जो उन्हें आम राजनीतिक जीवन में भी झेलना नहीं पड़ता होगा। नीतीश को अपने ब्लाग के सहारे बिहार के बारे में दुनिया में व्याप्त उस विरोधाभास को भी तोड़ना चाहिए, जिसके शिकार आम बिहारी पूरे दूसरे राज्यों में होते रहे हैं। लिखे शब्दों का बोले शब्दों से ज्यादा असर पड़ता है। कम से कम इस ब्लाग लेखन के सहारे नीतीश बिहारियों के प्रति व्याप्त सतही मानसिकता का जवाब दे सकते हैं। पहली पोस्ट में तीन सौ से ज्यादा टिप्पणी ये संकेत दे रही है कि उनकी ब्लाग हिट हो चुका है, लेकिन नीतीश कुमार को स्वप्रशंसा से इतर बहस को लेखन में प्राथमिकता देनी होगी, जिससे ये दो राय नहीं बने कि उनकी ये पहल महज सस्ती लोकप्रियता या मीडिया में नाम छपवाने की कवायद भर है। एक बेहतर मुख्यमंत्री का चस्पा लगने के बाद अब ये जरूरी हो गया है कि नीतीश कर्म के क्षेत्र में ऐसे रिकॉर्ड कायम करें कि इसी ब्लाग पर वे दम ठोंक कर बिहार की प्रगति का ऐलान लगातार कर सकें। समय के साथ उनके ब्लाग की गूंज सुदूर अफ्रीका में भी सुनायी देगी। वैसे ब्लाग में दो-तीन तस्वीरें कुछ ज्यादा भारीपना ला दे रही हैं। वैसे बाहर के लोगों को लगातार अब मुख्यमंत्री की ओर से ही प्रगति गाथा जानने को मिलती रहेगी। हम तो सुशासन बाबु को एक ही चीज बोलेंगे कि ब्लाग लेखन में जमे रहिये और हमें बहस के लिए मुद्दे देते रहिये। इससे पहले अमिताभ, अमर सरीखे लोग ब्लाग के सहारे उन सारी चीजों को प्रकट रूप से कह चुके हैं, जो वे मीडिया के सामने नहीं कहते। अब नीतीश भी कम से कम बेबाक अंदाज में ब्लाग के सहारे बतियाते नजर आएंगे।
Wednesday, April 21, 2010
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1 comment:
एक पब्लिसिटी स्टण्ट लगता है. क्या इन बड़े लोगों के पास समय भी होता है खुद लिखने और पढ़ने का..
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