Thursday, April 22, 2010
आइपीएल विवाद - सरकारी विभाग
आज आइपीएल विवाद के बाद सरकारी विभाग जाग रहे हैं। औपचारिकता निभायी जा रही है। मीडिया हर पल की जानकारी दे रहा है। सवाल ये है कि इतने करोड़ों की लेन-देन में अनियमतता के बाद भी सरकारी विभागों को कोई खबर नहीं है। एक बात जाहिर है कि सत्ता केंद्र में बैठे व्यक्तियों के रिश्तेदारों की डोर इन विवादों में फंसी है। रातों रात इस देश को अमेरिका बनाने की फिराक में सारा कुछ बेड़ा गर्क कर दिया जा रहा है। ट्वेंटी-२० के नाम पर चीयर गर्ल्स की डांस और हीरो-हीरोइनों का स्टाइलिश पोज और उपस्थिति उन सारे तकनीकी और विवादों के विषय को दूर फेंकती रही, जिससे इस सच का खुलासा होता कि इतना बड़ा आयोजन कैसे और किस तरीके से हो रहा है। सवाल ये है कि आज की तारीख में क्या किसी की औकात सचमुच में सौ करोड़ या उससे ज्यादा की खरीदारी की है। अगर है, तो ये बातें सार्वजनिक करने में क्या बुराई है? दूसरी बात कि एक फ्रेंचाइजी में शायद कई हिस्सेदार है, जो परदे के पीछे हैं। (जैसा कि सुना गया है या जानकारी मिली है)। वैसे में तो ये और भी जरूरी हो जाता है कि सार्वजनिक पटल पर इन चीजों को लाया जाये। सबसे अहम सवाल ये है कि सरकार किसकी है और उन पदों पर बैठे सरकारी नुमाइंदे कौन हैं, जाहिर है जनता के और जनता के प्रति जवाबदेह हैं। एक तरह से कहें, तो आइपीएल ने बैठे बिठाये लाखों का रोजगार इन शक्ति संपन्न नुमाइंदों के रिश्तेदारों को उपलब्ध कराया है। क्रिकेट के नाम पर जारी इस नौटंकी में परत दर परत जो खुलासे हो रहे हैं, उससे मुंह खुला का खुला रह जाता है। सवाल यही है कि सरकारी विभाग इतने करोड़ों के लेन-देन को कैसे नजरअंदाज करते रहे। आज की तारीख में शशि थरूर पीछे हो गये हैं और उनका कहीं नाम नहीं आ रहा। दूसरी बात पैसेंजर प्लेन को चार्टर प्लेन में बदलने की है। ये इस बात की ओर संकेत देता है कि पूरी व्यवस्था हाशिये पर है। क्रिकेट के नाम पर ये गंदा खेल है। अब तो आगे से अभिनेता और अभिनेत्रियों को इन सारी नौटंकियों में फंसने से पहले सौ बार सोचना होगा। कहीं न कहीं ग्लैमर के नाम पर उनका इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा।
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2 comments:
इन्डियन पालिटिशियन लीग ..
इन्डियन पन्गा लीग
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