Tuesday, October 12, 2010

एक बुजुर्ग महानायक, जिसे आराम चाहिए..

बीते दिन अमिताभ का जन्म दिन था. फिर केबीसी में भी शहंशाह नजर आ रहे हैं. मीडिया में चर्चे ही चर्चे ही हो रहे हैं. आज सुबह किसी अखबार में केबीसी के एक एडवर्टाइजमेंट पर नजर गयी, तो अमिताभ कुछ अपील करते दिखे. बचपन से जिस शख्स को गौर से देखता रहा हूं, उसे फिर से देखने के लिए आंखों ने निशाना साधा. लेकिन इस बार अमिताभ के चेहरे पर प्लास्टिक मुस्कान थीं और आंखों में शायद एक दर्द नजर आ रहा था. अमिताभ ७० के करीब पहुंचने को हैं.

इस उम्र में जब सारे लोग या उनके पीढ़ी के अन्य लोग ढलती शाम में चुपचाप समय गुजारते हैं, अमिताभ एक्टिव हैं. हमारे हिसाब से बहुतेरे लोगों को अमिताभ के ऊपर उंगली उठाना अखर सकता है. वे किसी के भगवान हैं, तो किसी के लिए महानायक. लेकिन महानायक भी एक आदमी है. ये सब जानते हैं. आज मेरी नजर में मीडिया या वे खुद जिस तरह खुद को मार्केट में बनाये रखने के लिए जद्दोजहद करते हैं, उसमें एक अन्याय नजर आता है.

सच कहें, तो अमिताभ अब ढह रहे हैं. हमें न तो उनका कोई डायलॉग अच्छा लगता है और न ही उनकी केबीसी. हमारी पीढ़ी के लोग इंडिया टूडे के उस कवर पेज को नहीं भूले होंगे, जिसमें अमिताभ ने पकी हुई दाढ़ी के साथ पोज दिया था. मार्केट में सनसनी फैल गयी थी. लेकिन आज अमिताभ की ब्रांड वैल्यू भले ही कितनी बड़ी हो, किसी आदमी के भीतर वैसी सनसनी नहीं बनती. जितने एडवर्टाइजमेंट में अमिताभ नजर आते हैं. जितने कार्यक्रमों को आज वे कवर करते हैं, उतना शायद ने अपने पिक पर नहीं करते होंगे. आज अमिताभ ज्यादा व्यस्त हैं. लेकिन इतनी व्यस्तता इतनी अधिक उम्र के व्यक्ति के लिए क्या उचित है, ये एक बड़ा सवाल है. कर्म भी करना चाहिए, लेकिन कर्म का एक उद्देश्य होना चाहिए.

अमिताभ आज जिस मुकाम पर हैं, वहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं है. उनके लिए सबके दिल में इज्जत है, लेकिन ७० साल के करीब पहुंच गए अमिताभ का लगातार काम अब डरा जाता है. ये शायद हम पब्लिक के लिए उस महानायक की विवशता है कि उन्हें मार्केट अपनी ओर खींच लेती है. अगर ये मार्केट उन्हें कुछ सालों के लिए नकार देता, तो अमिताभ ज्यादा सुखी और आराम का जीवन बिताते होंते. हम उनकी स्वाभाविक हंसी के दर्शन कर रहे होते. अमिताभ जैसा महानायक आज के बाजार में नवरत्न तक बेच चुका है. दिमाग को कूल करता उनका संदेश शायद कल तक जादू करता था, लेकिन आज उतना प्रभावी नहीं है. ये बदलते वक्त की मांग है कि अमिताभ थोड़ा स्लो हो जाएं. हम एक बुजुर्ग हो चुके अपने मुल्क के आदमी को इतनी मेहनत करते नहीं देख सकते. वैसे जिंदगी उनकी अपनी है, वे जो चाहें करें.

2 comments:

अजय कुमार झा said...

नहीं प्रभात जी ,
आपकी इस बात से बिल्कुल इत्तेफ़ाक नहीं रखता । आम तौर पर एक आम इंसान और परिवार में कोई सत्तर साल का व्यक्ति होता तो यकीनन ये माना जा सकता था । मगर जब भी ऐसी बात होती है तो मुझे अमिताभ का वो समय याद आ जाता है जब उन्हें चारों तरफ़ से कर्ज वसूलने के लिए नोटिस भेजा जा रहा था , । और एक और बात यदि वे आज एक्टिव हैं तो ही एक्टिव हैं ..आराम करने लगें तो शायद ..उतने चुस्त भी न दिखें । रही उनके आकर्षण की तो मुझे तो लगता है कि अब भी उनमें वो जादू अपने पुत्र से भी कहीं अधिक दिखता है ....वैसे हालात का सही चित्रण किया आपने

प्रवीण पाण्डेय said...

अपनी मेहनत और लगन के लिये विख्यात हैं श्री बच्चन।

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