Friday, November 5, 2010

यूं गुजारें हर पल ऐसा कि हर दिन मनाएं दिवाली जैसा

आई नेक्स्ट के मित्र माहे के बच्चों के साथ...

आज दिवाली है. अगले साल भी आएगी. आप भी मुस्कुराएंगे और हम सब भी. लेकिन कुछ बदनसीब ऐसे होते हैं, जो मां-बाप के रहते हुए भी अकेले रह जाते हैं. उनकी शुरुआत ही जिंदगी की जद्दोजहद से होती है.

मैं जहां काम करता हूं, वहां हमारे एक रिपोर्टर हैं अमित. संवेदनशील हैं. उन्होंने जिंदगी की लड़ाई को नजदीक से देखा है. रिपोर्टिंग के सिलसिले में माहे या मां का घर गए, जो कि एक अनाथालय है. यहां कई ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें उनके मां-बाप छोड़ चुके हैं. मां-बाप जिंदा है, लेकिन झांकने तक नहीं आते. कोई बच्चा बाप की पिटाई के कारण घर छोड़ने को विवश हुआ, तो किसी को गरीब मां ने सड़कों पर खुलेआम छोड़ दिया.

अमित को बच्चों का दर्द छू गया. उनकी पहल पर हमारे आई नेक्स्ट के मित्रों ने संयुक्त रूप से कुछ पैसे जमा किए और कुछ चावल, दाल और अन्य चीजें माहे जाकर बच्चों के बीच बांटे.

मित्र अमित बच्चों को दिवाली का गिफ्ट देते हुए...
देखो आयी दिवाली
खुशियों की फुलझरियां लायीं
थोड़ा तुम हंसो, थोड़ा हम हंसें
थोड़ा नाचें, थोड़ा मुस्कुराएं
यूं गुजारें हर पल ऐसा
कि हर दिन मनाएं दिवाली जैसा

हैप्पी दिवाली...

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सहस्त्र साधुवाद अमितजी को।

प्रवीण त्रिवेदी said...

दीपोत्सव पर हमारी ओर से भी बधाइयों का गुलदस्ता स्वीकार करें !

अमित जी के लिए भी एक और गुलदस्ता !

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