Monday, February 7, 2011

.भिखारी मैनेजमेंट.

नेशनल गेम्स में एडमिनिस्ट्रेशन को भिखारियों को मैनेज करते देखा. बाहर से आए लोग शहर की इन गंदगियों को ना देखें, यही प्रयास है. दिल्ली में हुए कामनवेल्थ गेम्स के दौरान भी कुछ यही देखने को मिला. हमारी जिंदगी में अच्छा और बुरा होता रहता है. बुरा भी हमारे लिये उतना ही प्रिय है. आखिर उस तथाकथित बुराई से हम कैसे दूरियां बना डालें. अधिकारी या कोई भी व्यक्ति जब एक भिखारी को शहर से दूर रहने के लिए कहता होगा, तो क्या उसका मन नहीं धिक्कारता होगा. आखिर कोई भी व्यक्ति दिवालियेपन की उस सीमा तक कैसे पहुंच गया, इस किस्से को जानने की परवाह किसी को नहीं होती. घोटालों के इस देश में जब रोज करोड़ों गलत तरीके से डकारे जा रहे हैं, तो वहां पर भिखारियों की संख्या कम होने का सवाल कहां पैदा होता है. गरीबी और अमीरी के बीच की रेखा तो और बढ़ेगी ही. क्योंकि जब कोई भी सरकारी योजना या हित की बात पर चोट होती है, तो किसी ना किसी के बेहतर जिंदगी जीने का अधिकार छीना जाता रहता है. फिल्मों ने भी रियल भिखमंगों को ऐसा ग्लैमराइज किया है कि असली भी नकली नजर आने लगे हैं. ऐसे में जैसा अन्याय हो रहा है, उस पर कैसे चुप रहा जाए. बात निकली है, तो दूर तलक जाएगी ही.

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

ऐश्वर्य और भिक्षा, बड़ी दूरी पर हैं ये तथ्य। साथ आते हैं तो अटपटा लगता है सबको।

Taarkeshwar Giri said...

Duniya badal rahi hai.

ZEAL said...

डर है कहीं नाक न कट जाए। हर बार तैय्यारियाँ अंत समय तक चलती हैं और जल्दबाजी में निपटाई जाती हैं।

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