हमारे आसपास न जाने कितनी घटनाएं होती रहती हैं. कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन पर क्या कहें, समझ में नहीं आता. सत्य साईं बाबा का निधन ऐसी ही घटना थी. न मैं उनसे मिला, न कभी सामने से देखा. देखा तो सिर्फ तस्वीरों में. तस्वीरों में देखा कि हमारे क्रिकेट के भगवान की आंखों से आंसू निकल रहे थे. सत्य साईं बाबा के प्रति सचिन में मन में श्रद्धा के भाव हैं. मेरे मन में भी हैं. मैं वैसे भी, वो भगवान हों या न हों, उनके द्वारा किए गए कल्याणकारी कार्यों के कारण मन से प्रणाम करता हूं.
बाबा के बारे में एक व्यक्ति ने ट्विट किया कि वे भगवान थे या नहीं,नहीं जानता,लेकिन उन्होंने काफी कल्याणकारी कार्य किए हैं. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. हमारा मन भी यही कहता है. ऊपरवाला उनकी आत्मा को शांति दे. बाबा को नहीं माननेवाली तस्लीमा नसरीन ने उनकी मौत के बाद उनके ऊपर ट्विट किया और उनकी पूर्व घोषित मृत्यु तिथि से पहले ही चल बसने पर सवाल दाग दिए. उसके बाद सुनने में आया कि उन्होंने हर विरोध पर जवाब दिए.
तसलीमा और उनके जैसे अन्य आलोचकों को देखकर लगता है कि ये लोग किसी की मौत पर कब्र पर ही अपने बुद्धजीवी होने का झंडा गाड़ने में गर्व महसूस करते हैं.हमारे हिसाब से ऐसे मौकों पर बुद्धिजीवी होने या तर्क करना कतई जरूरी नहीं. तसलीमा दी को कम से कम उन करोड़ों भक्तों की भावनाओं का ख्याल जरूर रखना चाहिए, जो कि सत्य साईं बाबा को भगवान मानते हैं. वे क्यों मानते हैं, इसके पीछे के पहलुओं पर नहीं जाना. सवाल पहले भावनाओं का ख्याल रखने का है. इन तर्कों को मौत के चंद मिनट बाद ही बहस के रूप में तब्दील करने की कोई जरूरत नहीं.
विचार तभी तक महत्वपूर्ण हैं, जब तक उसमें मर्यादा या भावना की सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है. जिस दिन वो अपने हद को पार करने लगता है, उस दिन विचार, विचार नहीं रह कर गाली बन जाती है. ये एक ट्रेंड सा चल पड़ा है कि आप किसी भी बड़े व्यक्ति की निगेटिविटी या कमजोरी को पकड़ कर उसे इतना उछालो कि उसके साथ आप भी सेलिब्रिटी बन जाओ. खासकर भारत में ये चलन ज्यादा चल पड़ा है.
ये भारत है, जहां तस्लीमा की बातों पर लोग उतना बवाल नहीं मचा पाते, नहीं तो दूसरी जगहों पर तस्लीमा को निश्चित तौर पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ता. सत्य साईं बाबा भगवान थे या नहीं, ये नहीं जानता, लेकिन ये जानता हूं कि वे करोड़ों लोगों के लिए पूजनीय हैं. एक ऐसे व्यक्ति, किसी की सोच की दशा या दिशा को प्रभावित कर सकते थे.
बाबा के बारे में एक व्यक्ति ने ट्विट किया कि वे भगवान थे या नहीं,नहीं जानता,लेकिन उन्होंने काफी कल्याणकारी कार्य किए हैं. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. हमारा मन भी यही कहता है. ऊपरवाला उनकी आत्मा को शांति दे. बाबा को नहीं माननेवाली तस्लीमा नसरीन ने उनकी मौत के बाद उनके ऊपर ट्विट किया और उनकी पूर्व घोषित मृत्यु तिथि से पहले ही चल बसने पर सवाल दाग दिए. उसके बाद सुनने में आया कि उन्होंने हर विरोध पर जवाब दिए.
तसलीमा और उनके जैसे अन्य आलोचकों को देखकर लगता है कि ये लोग किसी की मौत पर कब्र पर ही अपने बुद्धजीवी होने का झंडा गाड़ने में गर्व महसूस करते हैं.हमारे हिसाब से ऐसे मौकों पर बुद्धिजीवी होने या तर्क करना कतई जरूरी नहीं. तसलीमा दी को कम से कम उन करोड़ों भक्तों की भावनाओं का ख्याल जरूर रखना चाहिए, जो कि सत्य साईं बाबा को भगवान मानते हैं. वे क्यों मानते हैं, इसके पीछे के पहलुओं पर नहीं जाना. सवाल पहले भावनाओं का ख्याल रखने का है. इन तर्कों को मौत के चंद मिनट बाद ही बहस के रूप में तब्दील करने की कोई जरूरत नहीं.
विचार तभी तक महत्वपूर्ण हैं, जब तक उसमें मर्यादा या भावना की सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है. जिस दिन वो अपने हद को पार करने लगता है, उस दिन विचार, विचार नहीं रह कर गाली बन जाती है. ये एक ट्रेंड सा चल पड़ा है कि आप किसी भी बड़े व्यक्ति की निगेटिविटी या कमजोरी को पकड़ कर उसे इतना उछालो कि उसके साथ आप भी सेलिब्रिटी बन जाओ. खासकर भारत में ये चलन ज्यादा चल पड़ा है.
ये भारत है, जहां तस्लीमा की बातों पर लोग उतना बवाल नहीं मचा पाते, नहीं तो दूसरी जगहों पर तस्लीमा को निश्चित तौर पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ता. सत्य साईं बाबा भगवान थे या नहीं, ये नहीं जानता, लेकिन ये जानता हूं कि वे करोड़ों लोगों के लिए पूजनीय हैं. एक ऐसे व्यक्ति, किसी की सोच की दशा या दिशा को प्रभावित कर सकते थे.
6 comments:
मैं आपके इस लेख से पूरी तरह सहमत हूँ
हम उन्हें भगवान माने या न लेकिन ये तो माने कि वो हम से तो कहीं अधिक अच्छे होंगे तभी तो इतनी दुबियाुन्हें मानती है फिर उनके दुआरा जो सामाजिक कल्यान के कार्य किये गये क्या हम कर सकते हैं या एक पडोसी या नौकर का ही उपकार कर सकें।भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे।
जी हां ये तो ट्रेन्ड हो चुका है भारत में..
ये सिर्फ़ उन व्यक्तियों , उन स्थानों , घट्नाओं , उन तथ्यों , किताबों , मान्यताओं आदि से ही जुडी हुई हैं जिनका परोक्ष प्रत्यक्ष संबंध भारत से होता है ...भारत के अलावा किसी अन्य देश में ऐसा दु:साहस करने वालों को क्या क्या झेलना पडता है ये बताने की जरूरत नहीं है ..तस्लीमा को तो कतई नहीं ...। और आपकी आखिरी पंक्तियों के बाद कुछ भी कहने की गुंजाईश नहीं बचती ...कि उन्होंनो लाखों करोडों लोगों की सोच को प्रभावित किया वो भी सकारात्मक दिशा में । आपसे पूरी तरह सहमत
भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे
घटना विशेष से परे व्यक्तित्व को समग्रता से देखना पड़ेगा। स्तम्भों को ढहाना आधुनिकता का हस्ताक्षर बन चुका है।
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