एक लड़की जिसे पढ़ने के लिए गार्जियन कालेज भेजते हैं, किसी ऐसे दीवाने का शिकार हो जाती है, जिसके साथ वो नहीं जीना चाहती. मामला एकतरफा प्यार का हो या प्यार का. जो ट्रेंड चल पड़ा है, उसमें जान देने और लेने का जुनून सवार है. दुनियादारी में आने से पहले ही इश्क का जुनून इस कदर हावी हो जा रहा है कि दिल और दिमाग को युवक-युवतियां हाशिये पर रख दे रहे हैं. जिस किरदार को शाहरुख खान ने अपने फिल्म डर में जिया था, वो असल में २० साल के बाद आधुनिक जीवनशैली के कारण सच्चाई में तब्दील होता जा रहा है. बच्चे सच्चे प्यार की तलाश में रहते हैं. टीवी सीरियलों और फिल्मों में दिखाए जानेवाले एक ऐसे आदर्श प्यार की तलाश में जो कभी संभव नहीं है. बनते-बिगड़ते रिश्तों की दुनिया में कब कौन किस परिस्थिति में रहता है या रहेगा, हम नहीं जानते. कल रांची शहर के संत जेवियर्स कालेज में घटी लोमहर्षक घटना ने सामाजिक चिंतकों को सोचने को विवश कर दिया है. जो मरा और जो मारी गयी, दोनों के परिवारों में मातम का माहौल है. एक के बेटे ने खुद को बर्बाद कर दिया, तो दूसरे परिवार की खुशियां चली गयी.युवक ये नहीं सोचते हैं कि जिस प्यार की तलाश में वे हैं, उसमें त्याग और समर्पण की मांग होती है.कभी किसी बुजुर्ग दंपति को साथ-साथ चलते देखिये और उनसे उनके लंबे दांपत्य जीवन का राज पूछिए, तो वे अपने जीवन में संघर्ष के दौरान की जिंदगानी को सामने परोस देंगे. कैसे वे एक-दूसरे को हर कमजोर पल में साथ निभाते चले गए. ये प्यार का कातिल जुनून सिर्फ रांची तक नहीं है, बल्कि ये दिल्ली में भी कायम है. इसी जुनून में प्रेमी अपनी तथाकथित प्रेमिका का लंबे समय तक पीछा करता है. इसके बाद भी तथाकथित प्रेमिका के घरवाले पुलिस में इसलिए शिकायत नहीं दर्ज कराते हैं कि उनकी इज्जत पर बट्टा लग जाएगा. इज्जत बचाने की कोशिश में अंत में उन्हें वो चीजें देखनी पड़ती हैं, जिसकी वे कल्पना नहीं कर सकते थे. रांची में खुशबू की नानी युवक को शायद सुबह से कैंपस में मौजूद देख रही थी. उन्हें उसके द्वारा पीछा करने की भी पूरी जानकारी थी. लेकिन इसके बाद भी उन्होंने पुलिस को सूचना नहीं दी और युवक खुशबू को मारने में कामयाब रहा. समाज में लोग झूठी इज्जत की चादर ओढ़ अपने बेटियों की जान को दांव पर लगा दे रहे हैं. वक्त टीनेजर्स के बीच प्यार के मुद्दे को लेकर बहस चलाने का भी है, जिससे कम से कम उस राह पर जाने से बच सकें, जिस पर चल निकलना को आसान है, पर लौटना मुश्किल.
Thursday, April 28, 2011
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3 comments:
टीवी और फिल्मों का घातक असर है..
अपनों के मायने बदलने लगे है.......
चढ़ा मै तो सूरज भी ढलने लगे है
मेरी तर्रकी से जलने लगे है
बुला लेता अपनों को इस खुशी में,
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
उठ उठ के अक्सर सोते है वो,
आँखों को पानी से धोते है वो,
यकीं नहीं उन्हें इस पल पर,
आहे भर भर के रोते है वो,
बिम्ब निहारते है अक्सर पर,
शिरकत-ए-आईने बदलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
बहुत कोशिशे हराने की की
बहुत कोशिशे लड़ाने की की
काटे बिछाए उन्होंने जब जब मैंने
कोशिशे कदम बढाने की की
कदम मेरे खू से सने देख कर
दुश्मन तक आँखे मलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
जी सही कहा गुनेहगार हूँ मै
जल्दी है आपको इन्तजार हूँ मै,
बस अब खामोशी का इम्तहान ना लो
बोल उठा तो फिर ललकार हूँ मै,
रवैया मेरा कड़ा देखकर,
साजिशो को अपनी धरा देखकर
हद्द है वो संग मेरे चलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है...
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
अगर अच्छा लगा तो ब्लॉग पर जाएये, लिंक: http://prabhat-wwwprabhatkumarbhardwaj.blogspot.com/
घातक प्यार चिन्तनहीन ही होता है, अन्यथा प्रेम से अधिक सुखदायी कुछ भी नहीं।
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