Saturday, May 7, 2011

ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की मूरत क्या होगी,

आसमान में एक तारा होता है ध्रुव तारा. वैसे ही जिंदगी में मां एक ही मिलती है. मां तो सबके लिए अच्छी होती है. पता नहीं क्यों, कुछ लोगों को बुढ़ापे में मां पसंद नहीं आती. मैं मां को तब से याद करता हूं, जब मां के पास खेलकर आने के बाद खाने की मांग किया करता था. ग्रैजुएशन तक मां के बिना जिंदगी की कल्पना नहीं करता था. शादी हुई बच्चे हुए. लेकिन अब भी उसके हाथों से एक प्याली चाय की जिद जुबां पर आ ही जाती है. लोग लाख मन मार कर मुंह फेर लें, लेकिन जब किसी दर्द का अहसास होता है, तो पहला शब्द मां की निकलता है. मां सिर्फ जन्म देनेवाली ही नहीं होती. मां तो वो भी होती हैं, जो लावारिस हो चुके नवजात को अपने सीने से चिपका ताउम्र साथ चलने का वादा करती हैं. ऐसा वादा, जिसे सामान्य आदमी नहीं निभा सकता. सिर्फ मदर्स डे पर ही मां को कितना याद करूं. सुबह से लेकर रात तक मां का साथ जेहन में बना ही रहता है. एक मां, वो शक्तिस्वरूपा भी है, जिसकी ममता की छाया हर पल बरसती रहती है. अपनी इस छोटी जिंदगानी में मां के न जाने कितने रूप देखे हैं. लेकिन दीवार फिल्म में अमिताभ और शशि के बीच का संवाद-मेरे पास मां है, इतने गहरे पैठ गया है कि अब भुलाये नहीं भूलता.ये सारा पैसा, ऐश्वर्य मां के प्यार पर लुटाने को तैयार हूं. मां तो बस एक ही है. उसे आप चाहे जिस रूप में लें. मां तो शक्ति है. क्षमा स्वरूपा है. मां समर्पण का दूसरा नाम है. एक मां फटी साड़ी में भी बच्चे को स्कूल भेजने को तत्पर रहती है. अगर संतान को चोट लग जाए, तो उसकी आंखों से आंसू छलक आते हैं. मां के इस दिवस पर हम नारी जाति के प्रति सम्मान जाहिर करते हैं, लेकिन ये सम्मान हर परिस्थति में बरकरार रहना चाहिए. वैसे मां के लिए दो शब्द-ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की मूरत क्या होगी, क्या होगी. मैंने नहीं देखा है कहीं...ो

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

भावपूर्ण आलेख।

Udan Tashtari said...

मातृदिवस की शुभकामनाएँ..

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