Sunday, June 19, 2011

मेरे पिता मुझे क्यों अच्छे लगते हैं.

मेरे पिता मुझे क्यों अच्छे लगते हैं. फादर्स डे पर अखबारों के पन्नों पर एक पिता को अपनी संतान को दुलारते देखना अच्छा लगता है. लेकिन कहीं मन का एक कोना उदास भी रह जाता है. खाली-खाली सा लगता है. पिता जी की कोई डांट, कोई फटकार या कोई जज्बात कभी मैंने सही में सीरियसली लिया ही नहीं. हमने ये देखने की कोशिश नहीं की कि वो मेरे लिये कितनी मेहनत करते हैं. क्या सोचते हैं? शुरुआती दिनों में ढेरों शिकायतें रहती थीं. अपने आसपास के माहौल को लेकर बगावती तेवर भी अख्तियार किया करता था. उन दिनों न तो इस फादर्स डे के बारे में पता था और न ही किसी मदर्स डे के बारे में. लेकिन पूरी जवानी ज्यों-ज्यों बीतते चली गयी, पिता के साथ अपने रिश्ते को समझना और भी आसान होता चला गया.
मैं अपनी नजरों के सामने उन बेटों को भी देखता था, जो अपने पिता को लगातार चलने के लिए सहारा देते रहते थे. लेकिन वैसे बेटों को भी देखता था, जिन्हें अपने बूढ़े पिता की कोई फिकर नहीं थी. पिता जी का रात को जाग कर अपने लौटने का इंतजार करते देखना भी मुझे टेंशन दे जाता था. मैं खुद सोचता था कि मेरे पिता आखिर मेरे लिये इतने फिक्रमंद क्यों हैं? क्या उन्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं है? लेकिन जब दो बेटियों का पिता बना, तो अब सारी बातें पानी का तरह साफ होती जा रही हैं.कल बेटी ने उंगली में चोट लगा ली, तो अपने अंदर का पिता तड़प उठा. ऐसे में मैं अब अपने पिता की तड़प को भी साफ महसूस कर सकता हूं. मेरे पिता मेरे लिये हमेशा मार्गदर्शक बने रहे. वैसे हर व्यक्ति के लिए उसके पिता आदर्श रहते हैं, चाहे वो किसी भी रूप में क्यों न हों. पिता की स्नेह भरी एक थपकी के लिए न जाने कितने बच्चे तरस भी जाते हैं. कई पिता ऐसे भी हैं, जो बेटे को आशीर्वाद देने के लिए तड़पते रहते हैं. ओल्ड एज होम में कई वृद्ध पिता बेटे को याद कर रोते रहते हैं. उन्हें उनके बेटे अकेले छोड़ अपनी पत्नी और बच्चों के साथ निकल जाते हैं. ओल्ड एज होम में मौन धारण कर मौत का इंतजार ही उनके भाग्य में रह जाता है. वैसे ऐसे बेटों के लिए सोसाइटी के पास कोई सवाल नहीं होता. सिर्फ बातें बनाने के लिए उनके पास हजारों घंटे होते हैं.
हमारा समाज कभी पिता दिवस या माता दिवस के लिए तैयार भी नहीं हो सका. वैसा माइंड सेट नहीं बना. कभी भी ये नहीं सोचा कि इसे मनाने की जरूरत पड़ेगी. कल्पना कीजिए आनेवाले समय में कहीं पत्नी या पति दिवस न मनाया जा ने लगे. वैसे ये बाजार हमसे-आपसे कुछ भी करा सकता है. जैसे कि मैं फादर्स डे के बहाने आपसे बात जो कर रहा हूं.वैसे ये बात करना भी जरूरी है. बात नहीं करूंगा, तो स्याह होती जा रही अपनी भारतीय सोच को मैं कैसे उजला कर सकता हूं. लाख दावे कर लूं, लेकिन मुझे अपने आसपास के बदलते सामाजिक समीकरण से भी डर लगता है. कई बुजुर्गों को शहर में यूं ही भटकते देखना भी मन में टीस दे जाता है.
शर्म आती है अपने उन तथाकथित समृद्ध बेटों पर, जो सबकुछ रहते, अपने पिता या अपने काका को शहर की स़ड़कों पर भटकता छोड़ देते हैं. आज तक न तो इस तो देश के लोगों को गांधी बदल पाये और न ही बाबा रामदेव. अपना भेजा कभी भी वैसे भी इन टुच्चे गणित में नहीं लग पाया. मैं ये कभी हिसाब भी नहीं लगा पाता हूं कि पिता या अपने किसी काका को यूं ही बिना हालचाल लिये खुद के हालात पर छोड़ दूं. पिताजी के लिए मेरे दिल में जो अरमान हैं, वो यही हैं कि वो जब तक रहें, उनका आशीष बना रहे. ऐसे में हैप्पी फादर्स डे टू यू आल.

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

आप सभी को बधाई, पिता का हृदय पिता ही जानता है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आमीन.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

चलिए अब पिता के मन को समझ गए..... भावुक करती पोस्ट ...शुभकामनायें इस विशेष दिन की....

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