रांची का दशम फॉल हर चार महीने पर दो-चार लोगों को मौत के आगोश में लिटा देता है। कई जगहें-घटनाएं ऐसी होती हैं, जो अपने साथ मनहूसियत का ऐसा साया लेकर चलती हैं कि वह कहानी हर घटना के बाद सुनायी जाती है। सुना था कि टाइटेनिक जहाज के डूबने के बाद जिंदा बच गये लोगों की जिंदगी भी अच्छी नहीं रही। दशम फॉल को लेकर भी एक कहानी पढ़ी-
यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व छायला सांदू अपनी विधवा भाभी के साथ पति-पत्नी की तरह रहता था। वाद्य यंत्रों को बजाकर नृत्य प्रस्तुत करते हुए अन्य गांवों में जाता था। इसी क्रम में दशम फॉल के दूसरे किनारे पर स्थित एक ग्रामीण बाला से उसे प्यार हो गया। जंगली लताओं के सहारे वह दशम फॉल पार कर प्रेमिका से मिलने जाया करता था। यह बात उसकी विधवा भाभी को पसंद नहीं थी। एक दिन उसकी भाभी ने लता को काट दिया और छायला सांदू दशम फॉल को पार करने में क्रम में उसमें गिर गया, जिससे उसकी मौत हो गयी। तब से ग्रामीणों को विश्वास है कि छायला सांदू की आत्मा दशम फॉल में भटकती रहती है। भटकती आत्मा के कारण यहां मौतें होती हैं।
न जाने ऐसी कितनी कहानियां प्रचलित हैं। ऐसे ही सुनते हैं कि विदेशों में १३ नंबर के कमरे नहीं होते। कोई १३ नंबर नहीं रखता। हर जगह की अपनी कहानी होती है। दशम की मौतों को अगर सिलसिलेवार रखा जाए, तो इतिहास लिखा जा सकता है। क्योंकि वहां मरनेवाले कुछ न कुछ कहानियां पीछे छोड़ जाते हैं। आज से चार साल पहले ऐसी ही हुई एक मौत ने काफी हंगामा बरपाया था। खबरों में खबर थी कि लाशें निकालने के लिए गोताखोर २५ हजार रुपए मांग रहे थे। २५ हजार रुपए में सौदा होने के बाद शवों को निकाला गया। कौन कहता है कि मौतें नहीं बिकती। मौत के बाद भी उसकी बिक्री होती है।
वहां खतरे को लेकर सावधान करनेवाले सूचना पट्ट को ग्रामीण ले भागे। कोई जानकारी नहीं रहने के कारण पर्यटक भंवर में फंसकर मौत के आगोश में चले जाते हैं। कल मरनेवाले चारों बच्चे काफी होनहार थे और अच्छे घरों के थे। उनके माता-पिता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
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Sunday, March 21, 2010
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गांव की कहानी, मनोरंजन जी की जुबानी
अमर उजाला में लेख..
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