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Wednesday, May 25, 2011

राम को रैंचो की नसीहत काम कर गयी....

बेटा... मनोज आईआईटी कर गया. वो ९० फीसदी अंक ले आया. तुम्हारा परफारमेंस क्यों ऐसा हो गया. क्या मात्र ७५ फीसदी अंक. अब तेरे फ्यूचर का क्या होगा... राम का चेहरा तमाम बातों को सुन-सुनकर लटक गया था. राम को अब वे दिन नजर आने लगे, जब वो अपने मस्त अंदाज में मैदानों में दौड़ लगाया करता था. उसके अपने फेवरिट गेम में उसे प्राइज मिले थे. चेस में वो चैंपियन रहा था. लेकिन ९० फीसदी अंक नहीं लाना, आईआईटी में नहीं जाना.. उसके लिए ऐसा निगेटिव प्वाइंट था कि उसकी जिंदगी बदल गयी. जिंदगी, जो जीना जरूरी है. राम हमेशा से पूछता है, सवाल करता है, क्या जिंदगी जीने के लिए खूब पढ़ना जरूरी है. इंजीनियर बनना जरूरी है. सरकार ने इतने संस्थान बना दिए. सबकुछ दिया. लेकिन केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ही बोलते हैं कि हमारे संस्थान ग्लोबल लेवल के नहीं हैं.

राम कहता है कि वो इस रेस से तंग आ गया है. उसे तो खुली हवा चाहिए. पसंदीदा किताबों का खजाना चाहिए. उसे गणित में मन नहीं लगता, उसे शब्दों से खेलने में मन लगता है. क्या कभी कोई चित्रकार, किसी प्रतियोगिता में भाग लेकर बन सकता है. क्या कोई तेंदुलकर. धौनी, पीटी उषा किसी एग्जाम में पास कर बन सकता है?राम को हर सवाल का जवाब चाहिए.

राम को थ्री इडियट के रैंचो मिले, उन्होंने राम के दुख को जाना, पहचाना. कहा-राम तुम राम हो. अपने अंदर के राम को पहचानो. जिंदगी के २० साल गुजर गए. अब अगले ५० साल के बारे में सोचों. शब्दों से खेलना चाहते, तो खेलो. उन्मुक्त आकाश में उड़ना चाहते हो, उड़ो. बस एक शर्त अपनी जिंदगी से जरूर करके रखना कि कभी अपना या किसी अपने का विश्वास न तोड़ना. विश्वास, जो तुम्हारे ऊपर मेरा और तुम्हारे अपनों का है. खेलो, दौड़ो.. लेकिन बहको मत. जिंदगी का कारवां तो यूं ही चलता रहेगा. दोपहर तक राम के मन में ये विश्वास जोर पकड़ने लगा था कि आईआईटी से आगे भी कोई चीज है. वो उस चीज को कैच करेगा. वैसे भी उसे प्रैक्टिकल दुनिया के बारे में बताया गया था कि पढ़ने से ज्यादा पढ़ाने में विश्वास करो. दुनिया में जो पढ़ाते हैं, वही राजनेता, टीचर या पत्रकार हो पाते हैं. उनकी दुनिया नौ से पांच की रूटीन में बंधी नहीं रहती.

राम को जिंदगी में ये बात जंच गयी. अब उसे आईआईटी से ज्यादा, एक दूसरी चीज अहम नजर आने लगी है. अब वो पढ़ाएगा. दुनिया के तमाम अनुभवों को समेटेगा. ये बताएगा कि वो छोटी रेस नहीं, लंबी रेस का घोड़ा है. वास्तव में ये लंबी रेस के घोड़े ही तमाम पालिसियां तय करते हैं. वो सोसाइटी की नब्ज पकड़, उसे चलना सीखाते हैं. राम चाहता है कि पब्लिक का माइंडसेट बदले. वो ये समझे कि उनका बेटा सिर्फ डाक्टर,इंजीनियर बन सुरक्षित जीवन के लिए नहीं बना है. वो उस समंदर में बहने के लिए बना है, जो तमाम अनुभवों के साथ समाज को बहुरंगी बनाती है. राम को अब अपने ऊपर नाज है. उसकी घबराहट खत्म हो गयी है. वो आगे की यात्रा के लिए तैयार है. एक ऐसी यात्रा है, जो सिर्फ एक सीमित दायरे में नहीं बांधती, बल्कि अपने आयाम को विस्तार देती है. राम को रैंचो की नसीहत काम कर गयी.... लगता तो ऐसा ही है.
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