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Thursday, July 9, 2009

ईश्वर के नाम मेरा पत्र

हे ईश्वर, आपको नमस्कार
दुख और दर्द से तबाह होकर एक व्यक्ति का आपके नाम पत्र है। इस विचित्र दुनिया में आपके प्रबंधन को आज तक कोई नहीं समझ सका है। जिसने समझने की कोशिश की, वह तो बस आपके रहस्य में खुद खोता चला जाता है। उसे दुनिया अच्छी लगती नहीं और दुनियावाले उससे खुलकर बात करते नहीं, क्योंकि प्रैक्टिकल होने की अवधारणा से वह ऊपर जो उठ चुका होता है। भगवन आपने जब भी, जहां भी जो चीजें बनायी, उसमें आदमी को थोड़ा अलग बना दिया। दिमाग जैसे हथियार देकर उसे इस दुनिया का मालिक बनने की क्षमता दी। लेकिन माफ कीजिएगा, ऐसी गलती कर आपने इस धरती को नाश की ओर धकेल दिया है। देखिए उसने आपके इस अनमोल धरोहर पृथ्वी के साथ क्या किया है। आदमियों को भी एक रंग, एक मौसम नहीं दिया। कुछ को काला, तो कुछ को गोरा बना दिया। अब उसी रंग को लेकर लड़ाई है। यहां तक कि आपको भी अपने हिसाब से बांट दिया। सुना था कि पहले आप दर्शन भी देते थे। लेकिन आज इस आधुनिक युग में दर्शन दुर्लभ हो गया है। कम से कम यहां इस पृथ्वी पर आकर इस कांसेप्ट को क्लीयर तो कर दें। इससे हमारे ऊपर आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। सुना है कि बरसात में भी आप कमी कर रहे हैं। पिछले साल इतना पानी दिया कि कोसी ने लाखों का नुकसान कर दिया। अब इस बार उलट रूप देखने को मिल रहा है।
उधर धर्म को लेकर आज तक कन्फ्यूजन की स्थिति है। कौन धर्म परफेक्ट है, इसके लिए बहस जारी है। इतना जाहिर है कि आप सर्वगुण संपन्न हैं। आप निर्दोष हैं। लेकिन आपकी प्रशंसा और विवरण को लेकर इतनी रचनाएं हैं कि उन्हें पढ़ना और जानना संभव नहीं है। धर्म का लेवल लगाकर लोग आज एक-दूसरे को मारने पर तुले हैं। ये धर्म भी आपके ही सहारे है। इसके बाद भी इतना असमंजस क्यों? क्या आपके पास इसका कोई एक्सप्लेनेशन नहीं है। अगर संभव हो, तो इसे क्लीयर करें।
आपके तिलिस्म को समझने के लिए कुछ और वक्त चाहिए। इस ब्लाग के जरिये कम से कम मेरा दर्द आप तक जरूर पहुंचेगा, इतनी आशा है।

आपकी बनायी अनोखी दुनिया में
ये कैसा घमसान मचा
जिसे देखो, वही काबिल बन
है मालिक और कप्तान बना
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