Showing posts with label ravishankar. Show all posts
Showing posts with label ravishankar. Show all posts

Tuesday, August 16, 2011

श्री श्री रविशंकर का रोल क्यों महत्वपूर्ण हो जाता है?

कल एक व्यक्ति ने कहा कि अन्ना की मासूमियत का इस्तेमाल हो रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तुम ताम पर उतर आए, तो होम मिनिस्टर चिदंबरम श्री अन्ना कह कर बात को आगे बढ़ा रहे थे. अन्ना के करप्शन के खिलाफ लड़ाई में जो जोश, जुनून दिख रहा है, उसमें कुछ अलग से बोलना खतरनाक है. वैसे बाबा रामदेव हों या अन्ना, इसमें श्री श्री रविशंकर का रोल क्यों महत्वपूर्ण हो जाता है, ये समझ में नहीं आता. श्री श्री बड़े गुरु हैं, लेकिन जब लड़ाई एकदम से पिक पर रहती है, तो इनकी अचानक से इंट्री कुछ गलत अंदेशा दे जाती है. पूरी बहस हट कर श्री श्री की मध्यस्थता पर आ जाती है.

पिछली बार भी यही हुआ, बाबा रामदेव ब्लैक मनी लाते-लाते व्यक्तिगत स्तर पर आरोप-प्रत्यारोप में उतर आए. यहां बात होनी चाहिए, दो पक्षों के बीच. बहस होनी चाहिए दो पक्षों के बीच, जो तर्क के सहारे एक-दूसरे का जवाब दें और उससे जो सामूहिक निष्कर्ष निकले, वो विचारों को सही दिशा दे. लेकिन आर्ट आफ लिविंग के गुरु श्री श्री रविशंकर का क्लाइमेक्स के समय इंट्री मामले को थोड़ा उलझा देता है. अगर मन में कहीं से भी बाबा रामदेव या अन्ना के प्रति सहानुभूति भी होती है, तो ऐन मौके पर तथाकथित गुरुओं की सीन में इंट्री दिमाग को विरोधाभासों से भर देता है.

हम किसी की इंट्री के विरोधी नहीं हैं, लेकिन एक जनांदोलन में किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो किसी एक पंथ या विचार को लीड करता है, क्या पूरी तरह भागीदार होना चाहिए. अगर ऐसा हो, तो वो पूरा तामझाम छोड़ कर आंदोलन में शरीक हों. कर्म युद्ध करें. हर बैठक में शामिल हों. पीएम मनमोहन सिहं ने यह सही कहा था कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है. भ्रष्टाचार कोई एक दिन में पनपा राक्षस नहीं है. गांव-देहात में पंचायत से शुरू होकर से ऊपर केंद्र तक फैला है. अन्ना के आंदोलन की सबसे बड़ी बात है कि अन्ना ने जन लोकपाल के तहत इसमें पूरे सिस्टम को जवाबदेह बनाने की बात कही है. बात सही भी है. लेकिन ये आंदोलन बाबा रामदेव टाइप न हो, जो सिर्फ दो रात तक मैदान में भजन-कीर्तन और भाषण के बाद भागमभाग में बदल जाए.

मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी जैसे लोग, जिन्होंने सिस्टम को देखा और जाना है, अगर वे अन्ना के साथ चल रहे हैं, तो पब्लिक भी जोशो खरोस के साथ आवाज बुलंद कर रही है. लेकिन इसमें श्री श्री रविशंकर, जो कि परम आदरणीय है, के मध्यस्थता के लिए शरीक होना गलत संकेत दे जाता है.हमारे हिसाब से यह सही हुआ कि श्री श्री को लौट जाना पड़ा. अगर उन्हें भी अन्ना जी से मिलने दिया जाता है, तो मामला निश्चित रूप से उलट जाता. अभी तक जो स्थिति है, उसमें अन्ना को जोश के साथ होश भी रखना होगा. जन दबाव बनाना उचित है, लेकिन हर प्रक्रिया एक समय मांगती है, ये सोचना होगा. समय और समझदारी से ही सिस्टम विकसित भी होगा. देखते हैं कि अन्ना क्या करते हैं.




Monday, May 31, 2010

फिर से एक विवेकानंद का पैदा होना जरूरी है...

जब से रविशंकर पर हमले की खबर देखी, तो मीडिया के लोग चिंतित हो गए। इतने बड़े आदमी पर हमले की खबर थी। सही मायने में कहें, तो चिंतित होना लाजिमी है, लेकिन इतनी चिंता आम लोगों के लिए कभी नहीं होती मीडिया में। एक चैनल में कुछ संत लोग बता रहे थे कि हम लोग ही इस देश के समाज को सही दिशा देनेवाले हैं। हमें तो इस त्रासदी भरे स्टेटमेंट पर ही हंसी आने लगी कि वैचारिक रूप से क्या इस देश का आम आदमी इतना दरिद्र हो गया है कि उसे इन संतों का सहारा ही चाहिए। सही में कहूं, तो मुझे आज तक किसी संत ने प्रभावित नहीं किया। कोई कैसे किसी के जीवन को प्रभावित कर सकता है। संतों के समूह के पीछे जो ऊर्जा खर्च होती है और लोग दीवाने बने फिरते हैं, वे मानव श्रम के एक बड़े हिस्से को खा जाते हैं। जिस कॉरपोरेट स्टाइल में पूरी गतिविधियों को अमली जामा पहनाया जाता है, उसमें सामान्य आमदनी वाला शख्स मात्र एक देखनहार बनकर ही संतोष कर सकता है। पहले के जो संत हुए, वे त्याग के बूते पूजनीय हुए। उन्हें अपने प्रचार के लिए आर्गनाइज्ड एफर्ट की जरूरत नहीं महसूस हुई। आज के संत आर्गनाइज्ड सेक्टर के सीइओ के तौर पर काम करते हैं। हमें तो ये देश और यहां के लोग वैचारिक रूप से गरीब लगते हैं। जब हम जानते हैं कि सच बोलना चाहिए, झूठ नहीं। हमें बेहतर काम करना चाहिए और वह भी ईमानदारी से, तब भी हम गलत काम करते हैं और झूठ बोलते हैं। भ्रष्टाचार का कीड़ा देश की नस में खून बनकर दौड़ रहा है। वैसे में सिर्फ व्यक्तिगत जीवन को चिंता मुक्त करने का संदेश फैलाया जा रहा है। आप इस समय किसी भी ऐसे संस्थान या व्यक्ति के बारे में पूरी तरह से दावा नहीं कर सकते हैं कि वह निःस्वार्थ भाव से बिना किसी चाहत के कोई संगठन खड़ा कर रहा है या कोई काम कर रहा है। आखिर वह कौन सा कारण है कि आर्थिक सुधार के इस काल में ही ढेर सारे संत पैदा हो गये हैं। रोज कोई न कोई उपदेशक पैदा हो जाता है। इन्हीं झूठे संत की आड़ में तमाम तरह की गलत गतिविधियां संचालित होती हैं और इसमें भी तथाकथित समाज के सबसे उम्दा चेहरे फॉलोवर बने दिखते हैं। मुझे इन संतों को मौखिक कसरतों से अलग व्यावहारिक दुनिया में कभी किसी भिखारी को खाना खिलाते या कड़ी धूप में चलकर बच्चों और गरीबों के बीच छाता बांटते नहीं देखा। एसी कमरे में बैठकर वेदों-पुराणों की चर्चा करते हुए संतई करना सबसे आसान काम है। इस देश को एक विवेकानंद की जरूरत है, जिसकी आत्मा इस देश की सड़ती व्यवस्था पर विलाप करे और लोगों को जगाए। साथ ही इस देश में फिर से पदयात्रा कर एक मुहिम छेड़े,. जिससे उपभोक्तावादी मानसिकता के ऊपर उठकर देशवासी सही में जीवन उत्थान की बातें करें। सबसे पहले तो धर्म की व्याख्या का होना जरूरी है। धर्म क्या है, इसे बताना जरूरी है। कर्म को छोड़कर उस परमात्मा के नाम पर रात-दिन जाप करते रहना ही धर्म है या गरीबों की भूख मिटाने के लिए ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना धर्म है, जहां से एक रास्ता निकले। संतों को सबसे पहले खुद के संत होने की उपाधि को त्याग देना चाहिए। खुद को महिमामंडित कर ही सबसे पहले धर्म की हत्या कर दी जाती है। क्यों कोई खुद को बतौर इंसान सर्वश्रेष्ठ घोषित करे। संत या ईश्वर जनसमुदाय के बीच उपस्थित होकर ही अलग धार पैदा कर सकता है। राम ने १४ वर्ष में वनवास में बीता दिये और कृष्ण अर्जुन के सारथी बनकर युद्ध में साथ निभाते रहे। संतों को ऊंची कुर्सी पर नहीं, बल्कि भक्तों के बीच बैठकर सही व्याख्या की प्रस्तुति करनी चाहिए। संतई की आड़ में ये देश मानव श्रम के एक बड़े हिस्से को खो दे रहा है। हमारा तो ये मानना है कि जिस दिन ये संतई की भूख हर किसी के दिमाग पर हावी हो जाएगी, उस दिन ये देश टूटन के कगार पर होगा। जिंदगी गुरु के बिना नहीं चल सकती। लेकिन गुरु को आर्थिक लालच और उत्थान के सपनेसे ऊपर उठना होगा। अगर कोई संत इसे पढ़ रहे होंगे, तो वे हमें माफ जरूर कर देंगे, क्योंकि माफी तो संत ही देते हैं। वैसे हमारा इरादा किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है।
Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive