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Friday, April 15, 2011

देखिए ये पोस्ट हिट होगी. क्यों? क्योंकि ये पूनम पांडेय पर होगी.


देखिए ये पोस्ट हिट होगी. क्यों? क्योंकि ये पूनम पांडेय पर होगी. अगर आप नेट सेवी होंगे, तो पूनम पांडे के बारे में उतना ही जानते होंगे, जितना बहल बहनों के बारे में. ऐसा कुछ पूनम जी ने अपने दिल की हकीकत बयां की, सारे लोग तड़प उठे. हमें याद है कि लालू जी ने एक बारे कहा था कि बिहार की सड़कें हेमामालिनी के गाल की तरह हो जाएंगी. उस बयान के बाद लालू जी की टीआरपी कुछ इस कदर उछली कि मीडिया वाले पगला गए.लालू जी के साथ हेमामालिनी की फोटो भी लगती थी. पेज भी अच्छा लगता था.

इधर धौनी के अंतिम छक्के ने वर्ल्ड कप जिताया, तो उसके बाद पूनम जी सीन से गायब हो गयीं. सस्पेंस क्रिएट कर दिया. ये भी वर्ल्ड कप के इतिहास में दर्ज हो गया. हम सोचते हैं कि हमारी सोसाइटी उन चीजों को ज्यादा इम्पोर्टेंस देती है, जो पूरी तरह नंगई की हद को पार करता रहता है. कल की तस्वीर देखी मटुकनाथ जी दंडवत करते हुए कुलाधिपति के पास जा रहे थे, लेकिन उन्हें रोक दिया गया. तो बात करते हैं पूनम पांडेय जी की. पूनम पांडेय ने एक टेक्निकल फंडा बीसीसीआई की अनुमति का लगा दिया. अब लोग उन्हें देखने के लिए बेकरार हैं. फेसबुक पर स्टेटस में लगातार सवाल दागे जा रहे हैं.

पूनम पांडेय की लाइफ की कहानी हम नहीं जानना चाहते, लेकिन हमारे देश में हिट होने के फार्मूले के जिस फंडा को अपनाया जा रहा है, वो हमारे संस्कृति के रक्षकों के लिए बढ़िया मुद्दा है. आज कल ये लोग भी शांत हैं. ये बाजारवाद की हवा है या कुछ और, पता नहीं. हम पाते हैं कि हमारे आसपास पर १५ मिनट सेलिब्रिटी बनने के लिए होड़ सी मची है. कई लोगों को छपास की भयंकर बीमारी लगी रहती है. वे इसके लिए रात-दिन मेहनत भी करते रहते हैं. फिर जब अन्ना की बातें होती हैं, तो यहां भी डर लगता है. लोगों को लगता है कि यहां चिल्लाने भर से करप्शन खत्म हो जाएगा. हम कहते हैं कि मानसिक दिवालिएपन को आप जब तक दूर नहीं करेंगे, करप्शन खत्म नहीं होगा. जब तक सेटिंग करने के तमाम टेक्निक इस दुनिया के तथाकथित धुर्त अपनाते रहेंगे, तब तक करप्शन रहेगा. देखिए अन्ना का मूवमेंट भी धीरे-धीरे दम तोड़ देगा. क्योंकि मीडिया के कारण ये भी बस १५ मिनट सेलिब्रिटी ही बने हैं. रोज-रोज की जिंदगी की किचकिच को लेकर कौन जंतर-मंतर पर आंदोलन कर रहा है, कोई नहीं? इसलिए पूनम पांडेय सरीखे लोग इस बात को अपने फेवर में यूज करते हैं. उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं कि सोसाइटी में उनकी क्या इमेज होगी. हद तो तब है, जब पूनम पांडेय जी को न्यूज लिस्ट में वेबसाइट पर भी टाप पर रखा जा रहा है.

मामला काफी पेचीदा है. बाजारवाद हावी है. और इस बाजार में जो बिक रहा है, उसे ज्यादा इम्पोर्टेंस मिलता है. इस बाजारवाद को खत्म करो, तभी कुछ बनेगा. पूनम जी भी कुछ तो एथिक्स का ख्याल करते हुए अब अपने को कंट्रोल करेंगी.

Sunday, April 3, 2011

धौनी... तुम बेमिसाल हो.

इंडिया टीवी में जब संगकारा को रावण और धौनी को राम बना कर जीत की भविष्यवाणी की जा रही थी, तो मेरे मन में भी कुछ-कुछ गुदगुदी होने लगी. मन ने कहा-सपना देखो, इंडिया जीतेगा. सपना देखने लगा. लेकिन..लेकिन श्रीलंका की आतिशी पारी...२७६ का टारगेट और जयवर्द्धने का १००, सारा कुछ सपने पर लगातार चोट भी कर रहा था. मन ने कहा-धीर रख, अभी अपने सिकंदर आएंगे.
 
सिकंदर आए. एक दिन पहले पैनल डिस्कशन में मलिंगा को सबसे खतरनाक बॉलर बताया गया. हमारे सिकंदर मलिंगा का सामना करने के लिए तैयार थे. कमान कसी, लेकिन ये क्या, बोल्ड. सहवाग बोल्ड. हमारा दिल बैठ गया. सचिन पर भरोसा था. सचिन, अपने सचिन. क्रिकेट के बादशाह. मन ने कहा-भरोसा रख. लेकिन सचिन भी एलबीडब्ल्यू बोल्ड हो गए. थर्ड अंपायर ने भी कहा-पवेलियन जाओ सचिन. हमारे जज्बात, खून के आंसू बन कर आंखों में तैरने लगे. देशभक्ति कुड़मुड़ाने लगी. मन रोने लगा. नशा फट चुका था. अगल-बगल मुड़ कर देखा, तो तीन-चार लोगों को छोड़ कर अधिकांश साथ कुर्सी छोड़ टहलने लगे. गंभीर का साथ देने आए कोहली. कोहली और गंभीर एक-एक रन ले रहे थे. हौले-हौले. हमारा मन भी कहने लगा-जीतेगा. हमारी आंखें टीवी पर एक इतिहास बनने की ओर बढ़नेवाले कदमों को देख रही थी. विराट कोहली का एक शानदार शाट, लेकिन ये क्या, उसी तरह की शानदार फिल्डिंग में कैच, श्रीलंकाई टीम के हाथ लगी अनोखी सफलता. ९० रनों से ऊपर की साझेदारी ने लेकिन तब तक इंडिया का आधार मजबूत कर दिया था. अब आए अपने माही. माही और गंभीर भी बिना घबराए बढ़ते रहे. इस दौरान जानदार शाट्स पर पवेलियन में लोगों के जज्बातों को स्क्रीन पर देख मन वाहे-वाहे कर रहा था.

 आमिर खान, नीता अंबानी, रजनीकांत के जज्बात, चेहरे पर आ रहे भाव, सबकुछ अलग कहानी बयां कर जा रही थी. धौनी ने भी पचास रन पूरे किए. हमारा मानना है कि गंभीर ने ९७ रनों के बाद बस कुछ देर के लिए ही सही अगर धीरज धरा होता, तो वे एक शतक पूरा कर नया अध्याय जोड़ सकते थे. खैर, वे चौका मार कर शतक पूरा करने के चक्कर में क्लीन बोल्ड हो गए.हमारे माही का साथ देने आए युवी. अब युवी और माही की जानदार पारी ने जो किया, वो इतिहास बनानेवाला था. मलिंगा की गेंदों को भी धौनी और युवी ने अंतिम पलों में नहीं छोड़ा.फिर धौनी ने छक्का जड़ जीत का स्वाद चखा दिया.

याद आता है कि कैसे युवी रोने लगे. याद आता है कि माही, उस अंतिम छक्के के बाद भी माही शर्माते हुए युवी से दूर जाने की कोशिश की, लेकिन युवी कहां माननेवाले थे. गले मिलकर धौनी से वे फूट-फूटकर रोए. अंदर का समंदर आंखों के सहारे बह रहा था. भज्जी, तेंदुलकर और पूरी टीम रो रही थी, खुशी के आंसू. ये आंसू, जिसे देखकर हरेक कोई छटपटा रहा था. काश, ये पल थम जाता. हम भी एकबारगी, अपने जीवन में इस अद्भुत पल को खोना नहीं चाह रहे थे. रांची में मेन रोड में जनसैलाब उमड़ रहा था.

उधर खबर आयी कि माही के घरवाले भी छत पर बाहर निकल आए हैं. आतिशबाजी का दौर जारी है. जश्न का दौर टीवी से लेकर पूरे देश की गलियों में रातभर चलता रहा. माही, युवी, तेंदुलकर, भज्जी.. इन लोगों ने आनेवाली पीढ़ी के लिए नई कहानी लिख डाली. जिसे अगले २० सालों तक, जब तक अगला वर्ल्ड कप नहीं जीत लिया जाएगा, दोहराया जाता रहेगा. वैसा ही जैसा हम कपिलदेव की १९८३ की कहानी को दोहराते रहे. सुनते रहे. वो दौर, वो फिजा और वो खिलाड़ी. जिन्हें शब्दों में बांध पाना मुमकिन नहीं है. धौनी... तुम बेमिसाल हो.

वैसे एक शेर अर्ज है

अनहोनी को होनी कर दे..
होनी को अनहोनी
एक जगह जब जमा हों तीनों
रजनी, गजनी और धौनी

Friday, April 1, 2011

बस अब कल के मैच पर है निगाह..

कल के वर्ल्ड कप फाइनल को लेकर मसल्स टाइट हो रहे हैं. जोश शायद उतना नहीं हो, लेकिन मीडिया इसे कुछ हद तक इज्जतदार हेडिंग देते हुए बयानबाजी कर रहा है. वैसे हमारा मिजाज कुछ अलग किस्म का है. कोई जीते-हारे, उससे कोई अपने को फर्क नहीं पड़नेवाला. सबसे ज्यादा फर्क इससे पड़नेवाला है कि किस अंदाज में हारते हैं या जीतते हैं. अगर एकतरफा जीत होती है, तो वो भी गलत होगा और एकतरफा हार, तो वो भी गलत. जीतना है, तो अंतिम पल तक बाजी के लिए लड़ते रहना होगा. जब तक ये जज्बा टीम इंडिया नहीं ला पाएगा, जीतना मुश्किल है.

श्रीलंका से कोलकाता में मिली हार हमें याद है. हमें लगता है कि श्रीलंका का हौव्वा सर पर जरूर चढ़ा हुआ है. साथ ही हमारी जीत का नशा भी फट गया है. हम जानते हैं कि लंका फतह उतनी आसान नहीं होगी. टीम के ग्यारह हनुमानों को फिर से जामवंत की जरूर पड़ेगी, जो उन्हें उनकी आंतरिक शक्ति की पहचान कराए. वैसे रांची से होने के कारण धौनी हमेशा से हमारे लिये कुछ खास रहे हैं. कैप्टन कूल की रणनीति ने सबके मुंह बंद कर दिए. नेहरा को लेकर उन पर चाहे जितनी भी उंगली उठी हो, लेकिन नेहरा की कामयाबी ने हम लोगों का उन पर भरोसा बढ़ा दिया है. कैप्टन कूल ने भले ही बल्लेबाजी से जादू न दिखाया हो, लेकिन उनका दिमाग बोल रहा है. हर रणनीति दुश्मनों पर भारी पड़ रही है.

पाक से मैच जीतने के बाद रांची के मेन रोड में कुछ इस तरह उमड़ी भीड़
रांची सिटी में पाक फतह के दिन रात में जो दीवानगी का आलम था, उसे हम भी भूल नहीं सकते हैं. ये सच है कि हम अब हार नहीं स्वीकार कर सकते. लेकिन ये सोच भी खतरनाक है. ये अफीम के नशे की तरह है. जो बार-बार चाहिए. अगर नहीं मिलेगी, तो हम सब पागल हो जाएंगे. हमें हमारी दीवानगी ने ही कुछ इस हद तक कामयाबी दिलायी है कि १९८३ जैसी जीत का सपना संजोये बैठे हैं. बस अब कल के मैच पर है निगाह..

Monday, July 5, 2010

माराडोना को हमारी ओर से चीयर्स....

मुझे फुटबॉल को लेकर वैसी कोई दीवानगी नहीं रही. मुझे खेल में भी वैसी कोई दिलचस्पी नहीं रही. लेकिन कुछ नाम ऐसे थे, जिन्हें लेकर मैं अखबारों और नेट के पन्नों को पलटता रहता हूं. वैसे में मुझे माराडोना ही एक ऐसे शख्स, कम से कम मेरी पीढ़ी के अंतराल में लगे, जिनको लेकर मेरे अंदर एक उल्लास सा भर जाता है.

शकीरा के वाका-वाका वाले गीत से उतनी थिरकन पैदा नहीं होती थी, जितनी मैदान में माराडोना या कैमरे में कैद माराडोना की बेचैनी को देखकर होती थी. जिस तरह से जर्मनी ने अर्जेंटिना जैसी टीम की चार गोल दागकर कब्र खोद दी, उसने वर्ल्ड कप में इतिहास रचे जाने के सुनहरे अवसर को रौंद दिया.माराडोना का खिलाड़ियों को मैदान के बाहर से ललकारते रहना जुनून को दिखा जा रहा था. वो जुनून जो उनके रग-रग में बसा हुआ है.

खेल तो होंगे ही, लेकिन उनमें जो रंगीनियत भरते थे, वे लोग धीरे-धीरे सिनेमा के परदे पर गुजरते पलों की भांति अतीत के पन्नों के हिस्से होते जा रहे हैं.खेल में सिर्फ भावनाएं काम नहीं देती हैं. ये भी इस खेल में जाहिर हो गया. जर्मनी की टीमें युवा खिलाड़ियों से भरी हुई हैं और उन्होंने जिस तरह से आगे बढ़कर गोल पर गोल दागें, उसे देखकर स्टेडियम में मौजूद जर्मनी की चांसलर भी खुशी से चहक उठीं. वैसे माराडोना मुझे १९८६ के वर्ल्ड कप के समय से रोमांचित करते हैं.

हम बचपन में माराडोना के किस्से किवदंती की भांति सुनते थे. सुनते थे कि उन्होंने अपने दम पर अर्जेंटिना को वर्ल्ड कप का खिताब दिला गए. उसके बाद उनकी कई तस्वीरें, नशे के आरोप में गिरफ्तारी से लेकर उनके कोच बनने तक देखते रहे. शायद उनकी शादी के किस्से भी उतने ही चर्चित रहे.

जर्मनी से हार के बाद माराडोना के बुझे चेहरों ने मुझे उतना ही दर्द दिया, जैसे किसी भाई के कुछ खो जाने पर होता होगा. माराडोना के हैड आफ गाड के बारे में सुनता रहा हूं. उनके खेलों के वीडियो देखे, दीवाना हो गया. शकीरा के वाका-वाका और माराडोना की बेचैनी मुझे इस पूरे वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा पसंदीदा रही. शायद माराडोना को अगले वर्ल्ड कप में मौका ना मिले, लेकिन इस बार उनकी मौजूदगी ने कुछ दिनों के लिए ही सही मीडिया की जिंदगी में रंग घोल दिये थे.

उनकी बेचैन मुद्राओं को खींचने के लिए फोटोग्राफर हर पल का बेकरारी से इंतजार करते रहे होंगे.माराडोना की टीम हार तो जरूर गयी, लेकिन उसने लोगों के दिलों को जीत लिया. माराडोना को हमारी ओर से चीयर्स.,,
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