जब अन्ना ने ब्लॉग
के मार्फत अपने जंग छोड़ने का ऐलान किया, तो हमें तनिक भी हैरानी नहीं हुई.
हैरानी इस बात पर कि अन्ना, जो कल शेर की तरह दहाड़ रहे थे, अचानक से जूस
पीकर समर्थकों के साथ पतली गली से निकल पड़े. दो सालों से देश के हर शहर
में चंद जुनूनी लोग,जो एक करप्शन फ्री कंट्री का सपना देखते थे, उनके लिए
तिरंगा लेकर मैं अन्ना का नारा लगाते हुए सड़कों पर घूमते रहे. वैसा
उन्माद, वैसा पागलपन, वैसा जज्बा कम से कम मुझे एक-दो बार के अलावा कभी
नहीं दिखा था. जब लोग किसी की आवाज पर बिना कुछ कहे अपना कीमती समय यूं ही
बर्बाद कर रहे हों.
मैं शुरू से कहता रहा हूं कि अन्ना कोई गांधी नहीं. ये वो गांधी नहीं, जो सौ बार लाठियां खाने के बाद भी अपने उठाए कदम से नहीं डिगा. उसने लोगों को हार मानना नहीं सिखाया. न तो उस समय कोई कॉरपोरेट था और न ही कोई मीडिया. लेकिन करोड़ों लोग उस बुजुर्ग की एक हुंकार पर आंदोलन को झेलते रहे. जीवन और परिवार कुर्बान कर दिया. अन्ना इन सबसे अलग हैं. बीमार पड़ने पर उन्हें देश के सबसे अच्छे हॉस्पिटल मिलते हैं. सरकार भी उन्हें पूरी सुरक्षा देती है. उनकी कोर कमेटी में वो बंदे थे, जो अपनी जिंदगी में ऊंचे ओहदों पर रहे हैं और अब रिटायरमेंट के करीब जानेपर या रिटायर हो जाने के बाद आंदोलन में शामिल हो रहे हैं. जिनके शायद आगे-पीछे कई एनजीओ की भी कतार लगी रहती है.
अन्ना ने मेरे हिसाब से करोड़ों लोगों को धोखा दिया है. अन्ना ये नहीं समझ सके, ये देश उनका गांव मात्र नहीं है. ये देश करोड़ों लोगों से बना हुआ है. हर शहर और हर गांव में एक अन्ना है. बस उसे मीडिया की मदद नहीं मिलती. उसकी आवाज को मीडिया का नया अंदाज बल नहीं दे पाता. पैसै की ताकत नहीं है उसके पास. बाबा रामदेव जैसे शख्स के साथ अब जब अन्ना नजर आएंगे, तो फिर लोगों की उम्मीद को एक और झटका लगेगा. बाबा रामदेव जब-जब हुंकार भरते हैं, तो हमें एक चोट सी पहुंचती है. उनके यहां के आर्युवेद की दवाएं लेने जाइए, तो पता चलेगा कि आपकी जेब कैसे कट रही है.
जब आप जनसेवा की बातें करते हैं,जनसेवा का संकल्प दोहराते हैं, तो वहां पैसे की कोई अहमियत नहीं होती. सबसे पहले गरीब लोगों को इस सेवा का लाभ मिलना चाहिए. लेकिन बाबा रामदेव की सेवा, उनका योग आम गरीब के हिस्से में नहीं पहुंच पाता. उनके एक शिविर के लिए, उनकी एक सीडी पाने के लिए अच्छी-खासी रकम चुकानी पड़ती है. हमारे यहां ऐसे भी कई योग गुरु हैं, जिन्होंने पैसे के लोभ के बिना ये विद्या लोगों को सिखाई.लेकिन बाबा रामदेव इसमें चूक गए. वो अब भीड़ में नजर आते हैं.
रामलीला मैदान में आंदोलन के वक्त जान बचाने की जुगाड़ में जिस प्रकार वो भागे, वह भी अब तक याद है. एक बात तो है कि मर कर जंग नहीं जीती जाती. लेकिन किसी आंदोलन की दबिश के समय मुंह मोड़ना भी तो एक तरह की कायरता है. बाबा रामदेव और अन्ना, दोनों ने लोगों की अतंरात्मा को झकझोर कर उसे यूं ही तड़पते हुए छोड़ दिया है. लोगों को असहाय बना दिया है. अब जब भी कोई अन्ना अगले सालों में पैदा होगा, तो लाखों लोग सड़कों पर, मैदानों में उतरने से पहले सोचेंगे. क्योंकि अन्ना या रामदेव ने भावनाओं को ठेस पहुंचाने की जो कहानी लिखी है, उसे इतिहास में कभी माफ नहीं किया जाएगा. वैसे भी अगर करप्शन भगाना है, तो बाबा रामदेव अपना पहला कदम अपनी दवाओं को आम लोगों के इस्तेमाल के लिए देने की पहल करके करें. लेकिन ऐसा शायद ही संभव हो पाए.
मैं शुरू से कहता रहा हूं कि अन्ना कोई गांधी नहीं. ये वो गांधी नहीं, जो सौ बार लाठियां खाने के बाद भी अपने उठाए कदम से नहीं डिगा. उसने लोगों को हार मानना नहीं सिखाया. न तो उस समय कोई कॉरपोरेट था और न ही कोई मीडिया. लेकिन करोड़ों लोग उस बुजुर्ग की एक हुंकार पर आंदोलन को झेलते रहे. जीवन और परिवार कुर्बान कर दिया. अन्ना इन सबसे अलग हैं. बीमार पड़ने पर उन्हें देश के सबसे अच्छे हॉस्पिटल मिलते हैं. सरकार भी उन्हें पूरी सुरक्षा देती है. उनकी कोर कमेटी में वो बंदे थे, जो अपनी जिंदगी में ऊंचे ओहदों पर रहे हैं और अब रिटायरमेंट के करीब जानेपर या रिटायर हो जाने के बाद आंदोलन में शामिल हो रहे हैं. जिनके शायद आगे-पीछे कई एनजीओ की भी कतार लगी रहती है.
अन्ना ने मेरे हिसाब से करोड़ों लोगों को धोखा दिया है. अन्ना ये नहीं समझ सके, ये देश उनका गांव मात्र नहीं है. ये देश करोड़ों लोगों से बना हुआ है. हर शहर और हर गांव में एक अन्ना है. बस उसे मीडिया की मदद नहीं मिलती. उसकी आवाज को मीडिया का नया अंदाज बल नहीं दे पाता. पैसै की ताकत नहीं है उसके पास. बाबा रामदेव जैसे शख्स के साथ अब जब अन्ना नजर आएंगे, तो फिर लोगों की उम्मीद को एक और झटका लगेगा. बाबा रामदेव जब-जब हुंकार भरते हैं, तो हमें एक चोट सी पहुंचती है. उनके यहां के आर्युवेद की दवाएं लेने जाइए, तो पता चलेगा कि आपकी जेब कैसे कट रही है.
जब आप जनसेवा की बातें करते हैं,जनसेवा का संकल्प दोहराते हैं, तो वहां पैसे की कोई अहमियत नहीं होती. सबसे पहले गरीब लोगों को इस सेवा का लाभ मिलना चाहिए. लेकिन बाबा रामदेव की सेवा, उनका योग आम गरीब के हिस्से में नहीं पहुंच पाता. उनके एक शिविर के लिए, उनकी एक सीडी पाने के लिए अच्छी-खासी रकम चुकानी पड़ती है. हमारे यहां ऐसे भी कई योग गुरु हैं, जिन्होंने पैसे के लोभ के बिना ये विद्या लोगों को सिखाई.लेकिन बाबा रामदेव इसमें चूक गए. वो अब भीड़ में नजर आते हैं.
रामलीला मैदान में आंदोलन के वक्त जान बचाने की जुगाड़ में जिस प्रकार वो भागे, वह भी अब तक याद है. एक बात तो है कि मर कर जंग नहीं जीती जाती. लेकिन किसी आंदोलन की दबिश के समय मुंह मोड़ना भी तो एक तरह की कायरता है. बाबा रामदेव और अन्ना, दोनों ने लोगों की अतंरात्मा को झकझोर कर उसे यूं ही तड़पते हुए छोड़ दिया है. लोगों को असहाय बना दिया है. अब जब भी कोई अन्ना अगले सालों में पैदा होगा, तो लाखों लोग सड़कों पर, मैदानों में उतरने से पहले सोचेंगे. क्योंकि अन्ना या रामदेव ने भावनाओं को ठेस पहुंचाने की जो कहानी लिखी है, उसे इतिहास में कभी माफ नहीं किया जाएगा. वैसे भी अगर करप्शन भगाना है, तो बाबा रामदेव अपना पहला कदम अपनी दवाओं को आम लोगों के इस्तेमाल के लिए देने की पहल करके करें. लेकिन ऐसा शायद ही संभव हो पाए.
1 comment:
अरविन्द केजरीवाल की अक्ल बड़ी है और उस से भी कई गुना बड़ा है उनका फैसला . उनकी लड़ाई का फायदा लेने के लिए जो अब तक उनके हक में चिल्ला रहे थे , वे अब अन्ना टीम के राजनीति में आने के फैसले को गलत बता रहे हैं . अगर अन्ना टीम हारती है तो इसका मतलब यही होगा कि अन्ना जिस जनता के लिए लड़ रहे हैं उसे भ्रष्टाचार के बजाय जातिगत और सांप्रदायिक हितों की चिंता है.
अन्ना टीम की हार जीत भारतीय जनता के मिज़ाज की हक़ीक़त भी सामने ले आने वाली है.
Source : http://hbfint.blogspot.com/2012/08/blog-post_3.html
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