चुपचाप. एकदम चुपचाप. न पंखे की आवाज. न पैरों की आहट. घड़ी की टिकटिक भी मंजूर नहीं. वक्त को रोकने की ये कोशिश जाहिर तौर पर नामुमकिन है. जिंदगी की रफ्तार चलती रहेगी. वैसे ही ये देश भी चलता रहेगा. धन्य हो ये इलेक्ट्रानिक मीडिया कि हम सब अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण को देश को गरियाते हुए लगातार देख रहे हैं. हमारा ब्लड प्रेशर हमेशा उफान पर बना रहता है. पता चला है कि इनके आंदोलन में किरण बेदी दिखाई नहीं पड़ रही हैं. पहले स्वामी अग्निवेश शुरुआत में ही किनारे हो गए. फिर अन्ना खुद और अब किरण बेदी. देश एक नई पार्टी और एक नए नेता को जन्म लेते देख रहा है. निश्चित तौर पर ये नेता और कोई नहीं, बल्कि अरविंद केजरीवाल साहब हैं. हमारा नाता वैसे भी इंडिया अंगेस्ट करप्शन के आंदोलन से कभी नहीं रहा. लेकिन अब जब अरविंद केजरीवाल लगातार अपनी बात पर डटकर, गरजते हुए, ललकार लगाते हुए पूरे प्रमाण के साथ भाजपा और कांग्रेस दोनों को चैलेंज कर रहे हैं, तो मन गदगद हो जाता है. दो घंटे पहले टीवी पर हाईप्रोफाइल घेराबंदी का ड्रामा भी देखा. क्या जोश और क्या जुनून था. एकदम से बिंदास.
हां, तो कह रहा था कि अरविंद केजरीवाल साहब की ललकार लगातार कानों में गूंज रही है. लेकिन ये ललकार, चंद शब्द अपने मायने खोते जा रहे हैं. इन खोते शब्दों के बीच आप एक नेता को जरूर उभरते देख रहे हैं. एक ऐसा नेता, जो पूरे पब्लिक सिस्टम की निगेटिविटी को जानने की बात कहता है. पूरा प्रमाण रखता है. अनशन करता है और मैदान छोड़कर भागता नहीं. बाबा रामदेव हों या अन्ना, ये सब एक जीनियस स्टूडेंट की तरह लगते हैं. जिन्होंने अपना टास्क दो घंटे में कर लिया. लेकिन अरविंद केजरीवाल उस मीडियोकर, लेकिन मेहनती स्टूडेंट की तरह नजर आते हैं, जो लगातार अपनी मेहनत अपना परफॉरमेंस बरकरार रखना चाहते हैं और बदलाव के खेल के बादशाह बनकर निकले हैं.
हां, तो भाईजान, कद्रदान होशियार, आप भविष्य के, इंडिया के नए मास लीडर यानी शहरी मिडिल क्लास के नेता से मुखातिब होने जा रहे हैं. ये नेता और कोई नहीं, बल्कि अरविंद केजरीवाल जी हैं. अब मुझे केजरीवाल बाबू काफी अच्छे लगने लगे हैं. क्योंकि उनका चेहरा मुझे पढ़ानेवाले किसी न किसी मास्टरजी टाइप का लगता है. जिसे न तो ग्लैमर और न किसी तड़क-भड़क की दरकार है और न किसी अपने से लगाव. आंदोलन तो सब करते हैं, लेकिन आंदोलन को किनारे लगानेवाले कम होते हैं. अन्ना ने भले ही बदलाव की बयार के लिए आवाज बुलंद की और शहरी मिडिल क्लास निकल भी पड़ा.
अब जब दो-तीन साल में चुनाव होने हैं, तो हमें न चाहते हुए भी भाजपा या कांग्रेस को ही सेलेक्ट करना पड़ेगा. ऐसे में अगर केजरीवाल जी मैदान में उतर पड़े, तो उनका बाहें फैलाकर स्वागत करें. क्योंकि अगर आप महंगाई से मुक्ति और अपनी मुखर आवाज को और ताकत देना चाहते हैं, तो केजरीवाल साहब को ताकत दीजिए. उन्हें लीडर बनाइए. क्योंकि किसी भी बात को बोल्ड होकर कहनेवाले केजरीवाल साहब धोखा नहीं देंगे, ये गारंटी है. क्योंकि ये गलकर निकले सोने की तरह हैं. आपको थोड़ी देर के लिए टेंशन होगी, लेकिन ये च्वाइस बेस्ट हो सकता है. क्योंकि यहां जात-धर्म नहीं, करप्शन हटाने और काम की बात होगी. जो हर वर्ग और हर क्लास को मंजूर है. ये देश वैसे भी धर्म के नाम पर हिंसा झेल चुका है. न तानाशाही, न राजशाही और न कोई राजनीतिक बंधन अब इस देश को मंजूर हो सकता है. कहीं न कहीं तो परिवर्तन की बयार बहनी चाहिए. अरविंद केजरीवाल साहब आपको मौका दे रहे हैं. अगले एक-दो साल के रूप में आपके पास बहुत वक्त है. आईए अरविदं केजरीवाल साहब को मिलकर ताकत देते हैं. शुरुआत कम से कम इस लेख से तो हो.
1 comment:
आप किसी भ्रम में हैं, दर-असल वर्तमान सरकार से लोग असंतुष्ट हैं, तो जायेंगे कहाँ. २०१४ में एन डी ए की सम्भावनाएं काफी अच्छी हैं, इसलिए भाजपा के मिडिल क्लास वोटर के वोट काटने के लिए अरविन्द केजरीवाल हैं न.
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