मेरी नेपाल यात्रा
मेरी स्कू िलंग राजकीय उच्च िवद्यालय में हुई। ऐसे था सरकारी स्कूल, लेिकन उसका स्तर िकसी भी अन्य बेहतरीन स्कूलों जैसा था। हमारी हेड िमस्ट्रेस िसस्टर बनाॆड सख्त अनुशासन पसंद थीं। जैसा की मैं कह रहा था., अाठवीं क्लास में हम लोग नेपाल की यात्रा पर स्कूल की ओर से गये थे। यह कोई १९९८ की बात होगी। काफी उमंग िलये हम रवाना हुए। पोखर, िवराटनगर अािद की यात्रा करते हुए हम काठमांडू पहुंचे थे। यही कोई अक्तूबर और नवंबर का महीना था। कड़ाके की सदीॆ लग रही थी। एक बात जो हमारे मन लायक थी, वह यह िक जगह-जगह हनुमान जी (अाप समझ ही गये होंगे) के दशॆन खूब हुअा करते थे। वहां का पशुप ित नाथ मंिदर अद् भुत है। हमने पहली बार प्राकृितक सुंदरता के साथ अाध्याित्मक महत्व के बारे में भी जाना था। वहां का नेशनल म्यूिजयम भी हमने देखा था। काफी अच्छा लगा था, उस वक्त।
मेरे एक िमत्र ने हनुमान जी को केले का प्रलोभन देकर िचढ़ाने का प्रयास िकया था। दो-तीन बार तो हनुमान जी ने खाली िछलके लेकर फेंक िदये, लेिकन चौथी बार करारा चांटा रसीद कर पेड़ पर जा चढ़े थे। हमारा तो हंसते-हंसते बुरा हाल था। उसके साथ उसके पास काफी पैसै थे, उसे भी हनुमानजी छीन कर चल िदये थे। पूरी बची हुई यात्रा में हमारे साथी को खाली हाथ ही लौटना पड़ा था। हमने कई जगहों पर सुबह-सुबह सूयोदय के भी दशॆन िकये थे। इन सबके बीच कैसा अनुभव रहा, उन्हें शब्दों में बयान नहीं िकया जा सकता है। एक बात जो गौर करनेवाली थी, वह यह थी, नेपाल के लोग पहाड़ी इलाकों में कठोर जीवन जीते हैं और मेहनती हैं।
Monday, July 28, 2008
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