Sunday, August 31, 2008
आइये करें दुआ सबकी सलामती की
बचपन में ईश्वर द्वारा अवतार लेकर प्रलय और हादसों से बचाने की कहानी पढ़ा करते थे। बिहार में फिर से प्रलयंकारी बाढ़ को आया देख मन बार-बार ईश्वर से पूछ रहा है कि आप क्यों अभी तक चुप हैं? उन लाखों लोगों की चीख, पुकार, चित्कार आपके मन को क्यों नहीं झकझोर रही है? उन लाखों लोगों के कष्टों को जानने के लिए क्यों नहीं ऐसी शक्ति का अवतार हो रहा है या होता है, जिससे इस प्रलय का सामना कर सकें। मानवीय पुरुषाथॆ, उसका अहं, दपॆ और प्रकृति को नियंत्रित करने के सारे उपाय आज विफल साबित हो रहे हैं। कहीं न कहीं फिर उसी ईश्वर का सहारा लेना पड़ता दिख रहा है, जिसे शायद इस मनुष्य ने भुला दिया है। अखबारों के दफ्तरों में फोन आ रहे हैं, हमें बचा लीजिये। हम यहां फंसे हैं। मोबाइल पर हेल्प मी जैसे संदेशों की भरमार है। लेकिन सारी व्यवस्था बेदम, बेबस और मौन नजर आती है। कल्पाना कीजिये २५-३० लाख की आबादी बाढ़ में फंसी है और उन्हें निकालने के लिए दो-तीन सौ नावें लेकर जुटा है प्रशासन और उसकी फौज। सिफॆ बाढ़ की मत सोचिये, सोचिये उसके बाद उत्पन्न होनेवाले हालात के बारे में। जैसी कहर बरपी है, उसमें महामारी, बीमारियों का पनपना और विनाश से उत्पन्न होनेवाले साइकोलॉजिकल प्रेशर की। फिर से सृजन के लिए पूरी ताकत लगानी होगी। बुढ़े-बुजुगॆ सभी कह रहे हैं-यह तो प्रलय है, न तो ऐसी बाढ़ कभी देखी और न सुनी। नेपाल की ओर से शायद फिर पानी छोड़ा गया है। प्रलय के १४ दिन होने को हैं। जो बाढ़ पीड़ित हैं, उनकी मदद को हाथ भी बढ़े हैं। मन बार-बार इन मदद करनेवालों को शत-शत नमन करता है और सलामी देता है उन जांबाजों को, जो जान पर खेलकर इस त्रासदी में फंसे पीड़ितों की मदद कर रहे हैं। उन पत्रकारों को भी, जो इस समय बाढ़ पीड़ितों की समस्याओं को जान रहे हैं, देख रहे हैं और सारी जानकारी हम-आप तक पहुंचा रहे हैं। आइये सबकी सलामती की दुआ करें।
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