आंतकवाद का मुद्दा इंटरनेशल मुद्दा है। सबकी जुबां पर है। कोई हौले से, तो कोई जोर देकर इसका विरोध कर रहा है। वल्डॆ में अमेरिकी राजनीति भी इसी आतंकवाद के मुद्दे की चारों ओर घूमती है। अपनी कुंठा और दबी चाहत को हिंसा के सहारे आतंकवादी बताना चाहते हैं।
कोई भी धमॆ इस आतंकवाद का समथॆन नहीं करता, लेकिन आज आतंकवाद एक खास तबके से जुड़ गया है। इसे लेकर राजनीति भी खूब हो रही है। माननीय नेता इसे लेकर खुलकर राजनीति करते हैं। फिर मुद्दे से हटकर बात मंत्रीजी के सूट पर अटक जाती है। कहने का अथॆ यह है कि समस्या की जड़ तक जाने की कोशिश नहीं हो रही।
इंडिया में आतंकवाद का स्वरूप नाथॆ-ईस्ट में कुछ है, तो शेष भारत में कुछ और। कट्टरतावाद आज सभी जगह हावी है। कोई समुदाय ग्रुप बनाकर आतंकी हमला कर अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहा है, तो कोई राजनीतिक हिंसा के सहारे। जानें दोनों में जा रही हैं। नुकसान देश और दुनिया को दोनों से हो रहा है।
इतिहास उठाकर देख लिजिये, सबसे बड़ी ट्रेजेडी ये रही है कि यह दुनिया हमेशा इन आतंकी बहानों के कारण झुकती, टूटती रही है। रावण को राम ने मार दिया था, लेकिन ये आज भी आदमी के मन और दिमाग में हावी है। बात यहां इस आतंकवाद के पनपने के कारणों की होनी चाहिए।
हम अपने ही देश में कमजोर सुरक्षा तंत्र, लगातार बयानबाजी और दिशाहीन नेतृत्व के कारण इसके शिकार हो रहे हैं। इंडिया में हर चीज में राजनीति है। जब बात आतंकवाद से लड़ने की होनी चाहिए, तब गृह मंत्री, मीडिया और अन्य लोग सूट विवाद में फंसे नजर आते हैं। गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार और मौकापरस्त नेताओं ने देश को जितना नुकसान पहुंचाया है, उससे ज्यादा शायद किसी ने नहीं पहुंचाया।
पड़ोसी मुल्क अपनी चालों से आपकों परास्त करते हैं। दुख देते हैं, पर आप हैं कि रिएक्ट नहीं करते। डिप्लोमेसी के नाम पर बस मौन धारण किये रहते हैं। बिहार में बाढ़ आया, लाखों की तबाही हुई। लेकिन उसके पीछे कारण कमजोर तंत्र, करप्शन और अक्षम पदाधिकारियों का ही होना है। आयी बाढ़ ने लाखों घर और जिंदगियां बरबाद कर दीं। आतंकवादी आपको हिंसात्मक तरीके से नुकसान पहुंचाते हैं, पर यहां हमारा कमजोर तंत्र खुद की कमजोरी से खुद को और आम जनता को नुकसान पहुंचाता है।
दो शब्दों में अपनी कमजोरी को दूरकर ही इस आतंकवाद का मुकाबला किया जा सकता है। खुद को हम क्यों न इतना मजबूत करें कि दूसरे हम पर वार करने से पहले दस बार सोचें।
Wednesday, September 17, 2008
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गांव की कहानी, मनोरंजन जी की जुबानी
अमर उजाला में लेख..
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