आतंकवाद पर बहस चल रही है। पर इन सबमें सबसे महत्वपूणॆ बात इस विचारधारा के विरुद्ध जंग की है। आतंकवाद एक ऐसी विचारधारा है, जो व्यक्ति को अपनी बात मनवाने के लिए जान-माल को नुकसान पहुंचाने को प्रेरित करती है। मुंबई में जो पहला सीरियल बम ब्लास्ट हुआ था, उस समय हम सभी स्तब्ध थे। वो तो मुंबई की भागती-दौड़ती जिंदगी थी,... जिसने उस कहर को झेल लिया था और जिंदगी फिर उसी पुरानी रफ्तार से दूसरे दिन से चल पड़ी थी।
किसी भी विचारधारा का विरोध मजबूत विचारधारा को अपना कर किया जा सकता है। इस सिलसिले में जो सबसे महत्वपूणॆ बात है, वह यह है कि शायद ६० फीसदी लोग इस मामले में तटस्थ भूमिका निभाते नजर आते हैं। दो वक्त की रोटी और दो गज जमीन में उनकी पूरी जिंदगी सिमटी रहती है। इससे परे देश-दुनिया में हो रहे नुकसान-लाभ से कोई अंतर उन्हें नहीं पड़ता। यही कारण है कि आज आतंकवाद इतने व्यापक पैमाने पर फैल चुका है कि उससे मुकाबला करने के लिए जो इच्छाशक्ति चाहिए, वह कमजोर पड़ चुकी है।
मीडिया की भी भूमिका पर उंगली उठती है। हर घटना के बाद जांच संदेह के घेरे में आती है। और विरोधाभासी तथ्य ही उजागर होते हैं, जिस पर हमारे नेता सालों तक राजनीतिक जंग लड़ते नजर आते हैं। बहस में शामिल होते हैं नेता, पत्रकार और चंद संगठनों के लोग। आम लोगों का वास्ता शायद इन बहसों से नहीं होता। जरूरत इस बहस और मुद्दे को आम जनता के बीच ले जाने की है, जिससे कम से कम आतंकवाद जैसी विचारधारा को पनपने से रोका जा सके। ऐसे में जो तटस्थ हैं, उन्हें भी अपनी भूमिका बदलनी होगी।
आज पाकिस्तान भी खुद आतंकवाद का शिकार हो गया है। वहां के बाशिंदे भी वही सोच रहे होंगे, जो हम और आप सोचते हैं। अमेरिकी नीति पर भले ही आप उंगली उठायें और निंदा करें, लेकिन आतंकी विचारधारा के खिलाफ जो बुश ने जंग का ऐलान कर रखा है, वह आज के हालात में सही ही हैं। हम तो नदी के एक किनारे पर खड़े हैं। नदी को पारकर दूसरे किनारे पर पहुंचने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति और ठोस विचारधारा वाली नाव का सहारा लेना ही होगा। नहीं तो आनेवाला इतिहास उन लोगों से भी सवाल पूछेगा, जो तटस्थ हैं।
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गांव की कहानी, मनोरंजन जी की जुबानी
अमर उजाला में लेख..
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2 comments:
जी सिर्फ़ पूछेगा नहीं बल्कि अपराध गिनेगा और सजा भी देगा, बिलकुल सही लिखा है, अब तटस्थ रहने का वक्त ही नहीं है, या तो हमारी तरफ़ या फ़िर उस तरफ़… बीच का कोई रास्ता नहीं है…
बहुत सही लिखा आपने .
आतंकवाद के ख़िलाफ़ जब तक एक सुर मैं खुलकर विरोध और लड़ाई नही लडेंगे . देश ऐसे ही जूझते रहेगा . और एक दिन इसकी लपटें सभी को झुलसा देगी .
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