ब्लॉगिंग यानी इंटरनेट संवाद का एक ऐसा माध्यम, जहां अपने विचारों के प्रवाह को आप एक नया आयाम दे सकते हैं। इन ब्लॉगरों में कोई प्रोफेशनल राइटर होता है, कोई टाइम पास करनेवाला और कोई बस अपनी बात को बिना किसी की परवाह किये सबके सामने रखनेवाला। प्रोफेशनल राइटर अखबार, मीडिया या भाषा के जानकार लोग होते हैं। इनकी अपनी एक पैनी सोच होती है। लेकिन इस जमात में ऐसे राइटर भी दिखते हैं, जो अपनी छिपी बेचैनी को इतनी कुशलता से उकेरते हैं, मन वाह-वाह कर उठता है।
कुछ दिन पहले हम लोगों ने माननीय उड़नतश्तरी यानी हमारे समीरलाल जी की टिप्पणी पढ़ी।
उनकी टिप्पणी थी-
आप
लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या, दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें. हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
यहां समीरलाल जी ने जो एक टिप्पणी देने का आग्रह किया है। उस पर प्रतिक्रियाओं का दौर चल पड़ा है। कहीं न कहीं से कोई रिएक्शन मिल ही जा रहा है। कुछ दिन पहले तो समीरलाल जी ने इस मुद्दे पर माफी मांगते हुए अलविदा तक कह डाला था।
इसी कड़ी में दिल्ली से जीतेंद्र भगत जी के अरे बिरादर में विचार पढ़ने को मिला। उन्होंने एक महोदय की टिप्पणी के प्रति अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की।
मेरा ब्लागिंग की दुनिया में आना बस एक महीने पहले ही हुआ है। लेकिन अखबारनवीस होने के कारण अखबार की दुनिया से ग्यारह सालों का रिश्ता रहा। इन सालों में जितना कुछ जाना, उसके हिसाब से मुझे लगता है कि आपको समीरलाल जी जैसे काफी कम लोग मिलेंगे। उनकी हिंदी वाकई में लाजवाब है। जिस सरल, सहज अंदाज में उनकी टिप्पणी होती है, उससे मन अंदर से प्रफुल्लित हो जाता है।
इस ब्लॉग जगत में देखता हूं कि कुछ बड़े नाम भी हैं। खूब लिखते हैं। समय की कमी के कारण शायद टिप्पणी भी नहीं दे सकते होंगे। मैं यहां समीर सर से सिफॆ एक सवाल पूछना चाहूंगा कि क्या बचपन में वह जब भी क्रिकेट खेलने उतरते थे, तो क्या हमेशा चौका या छक्का लगाने की सोचते थे? अगर ऐसा करते होंगे, तो निश्चित रूप से फिल्डर को कैच थमाकर आउट हो जाते होंगे। बेफिक्र होकर खेलनेवाला ही न सेंचुरी बनाता है।
अगर कोई बेहतर लेखक है, तो वह खुद भी जानता है। अगर लेखक में संवाद कायम करने की कैपेसिटी होगी, तो लोग स्वाभाविक रूप से उससे जुड़ते चले जायेंगे। वैसे भी ब्लागिंग ऐसा खुला मंच है, जहां आप राजनीति कर ही नहीं सकते। क्यां सागर की तुलना नदी से की जा सकती है। यहां विचारों का प्रवाह है। उसे आप रोक नहीं सकते हैं। जहां तक आरोप-प्रत्यारोप की बात है, तो वे तो लगते ही रहते हैं।
हां, कुछ लोग इस मंच का दुरुपयोग व्यक्तिगत फायदे के लिए करने लगते हैं, जो उचित नहीं है। जो भी व्यक्ति लिखते हैं, उन्हें खुलकर लिखने दीजिये। कहावत है न-अभ्यास से आदमी खुद ही चैंपियन हो जाता है। इसलिए जो अच्छे लेखक नहीं है, वे भी लिखते-लिखते अच्छा लिखने लगेंगे। एक बार अपनी टिप्पणी में समीरलाल जी ने कहा था कि टिप्पणियों के अभाव में उन्होंने कई चिट्ठों को खत्म होते देखा है। लेकिन मैं एक बात कहना चाहूंगा कि सर, यहां भी तो आपको लगन की आवश्यकता होगी ही। किसी को भी आप जबरदस्ती लिखने को बाध्य नहीं कर सकते हैं।
हमारा आग्रह है कि इस खुले मंच को आरोप-प्रत्यारोप और एक-दूसरे की बात काटने का माध्यम न बनने दें, यही उचित है। क्योंकि इससे जहां आप मंच का व्यक्तिगत स्तर पर दुरुपयोग करते हैं, वहीं इसे सामाजिक सरोकारों से दूर भी ले जाते हैं।
इसलिए मैं तो कहूंगा-आप लिखिये खूब लिखिये, बस दूसरे लेखकों पर आरोप लगाने और निंदा की जानेवाली बातों से खुद को दूर रखें। अगर कोई असहमत होगा, तो अपनी टिप्पणी से आपकी बात काटेगा, और अगर सहमत होगा,तो आपकी बात का समथॆन अपनी टिप्पणी से ही देगा। हां, अगर कुछ विद्वान लोगों को आपस में उलझ कर रहने में ही मजा आता है, तो उनके लिये हम-आप क्या कर सकते हैं।
Sunday, September 14, 2008
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6 comments:
अब उडन तशतरी जी का तो कोई जवाब ही नही।
मै जब पढता हूं तो मानीटर के 15cm(एक छोटे स्केल ईतने की दूरी) ईतना आ जाता हूं।
बहुत मजा आता है पढने मे लगता है की सच मे कोई कहानी चल रही है। अनूभव होने लगता है।
आप भी धीरे धीरे लीखने मे मास्टर हो जाऎंगे।
बहुत आभार प्रभात भाई- आपने मुझे समझा. आपकी सलाह निश्चित ही याद रखूँगा.
साधुवाद!!!
बिल्कुल सही शीर्षक चुना आप ने, अब तो कम से कम २० टिपण्णी मिल ही जायेगी. :)
समीर लाल मतलब super-man नहीं, नहीं समीर लाल मतलब उड़न तश्तरी :)
जब भगवान् का नाम लिया था तभी यह पोस्ट super hit हो गई थी अब तो भगवान् (समीर) जी आकर आशीर्वाद भी दे गए हैं खुश रहें और इससे भी अच्छा लिखते रहें.
प्रभात जी,आगे से लेखन पर ही ध्यान दूंगा। इस विवाद में गलत ही जा फंसा।
समीर जी का आग्रह बिल्कुल सही है. जब तक दूसरों का हौसला नहीं बड़ायेंगे तब तक अच्छा लेखन सामने नहीं आयेगा.
मेरा मानना है कि टिप्पणियाँ, ब्लॉगर के लिए हैल्थ टॉनिक का काम करती हैं. इससे प्रोत्साहन मिलता है.
प्रभात जी एक बात है सच कि कोई किसी की शक्ल सूरत नहीं देखता ना ही आपका हमारा बैकग्राउंड देखता सब देखते हैं तो अच्छी चाहे कविता हो चाहे लेख हो आप अच्छा लिखते हो तो आपकी सराहना होगी वरना जैसे लोग हम को पढकर ब्लाग बंद कर देते हैं वैसा ही होता है मेरी बात को बुरा मत मानना मेरा सिर्फ इतना बताना है सभी को कि समीर जी अच्छा लिखते हैं तो ही उन्हें रिस्पांस मिलता है वरना शक्ल के तो शायद हम इतने बुरे नहीं कि लोग ब्लाग खोलकर बंद कर दे बस अभी लिखना सीख रहे हैं जब सीख जाएंगे तो शायद कुछ कमेंट हमें भी मिलेंगे अंत में यही कहूंगा समीर जी जिंदाबाद समीर जी तक मेरा मैसेज पहुंच जाए तो सोने पे सुहागा
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