Sunday, October 19, 2008

मुंबई की घटना के लिए सभी हैं दोषी

२००८ का अक्तूबर महीना अब पूरा होने को है। साल का दसवां महीना यानी साल भी खत्म होने को है, लेकिन २००८ भारतीय इतिहास में देश की राजनीति की पतनशीलता के लिए लगातार याद किया जाता रहेगा। लालू प्रसाद बिहार-यूपी के रेलवे परीक्षारथियों के पीटे जाने पर राज ठाकरे के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे थे। इधर राज ठाकरे इस मामले में खुल्लमखुला चैलेंज करने की मुद्रा में नजर आये। पता नहीं, यहां के नेताओं ने इस देश को क्या समझ लिया है, जिसे जब जैसा मन होता है, कर गुजरता है। न किसी की परवाह है और न किसी की फिक्र। सोचता हूं, क्या हम सही मायने में भारतीय कहलाने के हकदार हैं? ममता बनजीॆ के आंदोलन के समय से मन ऐसा खिन्न हुआ कि भारतीय राजनीति को समझने की कोशिश ही छोड़ दी। न कोई विचारधारा है और न कोई मापदंड। जब आप को लाठी-डंडे से ही बात करनी है, तो फिर साफ-सुथरी राजनीति की बात करना ही बेमानी है। भारतीय राजनीति जिस तरह की करवटें ले रही हैं, वे अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं। भाषाई आधार पर देश को बांटने की साजिश के जिम्मेदार सभी हैं। जब एक नामचीन फिल्मी हस्ती खुद के यूपी के होने की दुहाई देती हैं, या राज ठाकरे मराठी होने का दंभ भरते हैं। या फिर लालू प्रसाद छठ मनाने की हठ करते हैं। परत दर परत जो खोखलापन भारतीयता की भावना में घर कर रहा है, उससे मेरे जैसे सामान्य सोचवाले व्यक्ति आहत हैं। मैं खुद को भी शरमिंदा ही महसूस करता हूं। जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक देखता हूं, तो देखता हूं कि हम एक ही संस्कृति के वाहक हैं, सिफॆ स्थान परिवतॆन के कारण हमारी भाषा और रहन-सहन में फकॆ है। इसने इन साठ सालों में भारतीयता की भावना को कभी ठेस नहीं पहुंचने दिया। लेकिन चंद भारतीय नेता शायद गद्दी पाने के लिए इस देश को खंडित करने की राजनीति करने के लिए कमर कस चुके हैं। कोई भी सही सोचवाला भारतीय मुंबई में हुई घटना का विरोध और निंदा करेगा। लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि राजनीति की आड़ में ये कौन सा खेल खेला जा रहा है। अगर ऐसा है, तो ये खतरनाक है और तत्काल बंद हो। भाषा, धमॆ और रंग के आधार पर राजनीति को कभी पसंद नहीं किया गया। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया की सोच बदल गयी। लेकिन यहां आजादी के ६० साल बाद शायद गंदी राजनीति का राक्षस फिर से सर उठाने लगा है। वक्त आ गया है कि इसे हम या आप पनपने नहीं दें। नहीं तो ये हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा। सावधान होने का वक्त आ गया है।

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