Sunday, October 26, 2008

जरा सोचिये, आपका २० रुपया क्या कर सकता है?

हाथों की उंगलियां हैप्पी दिवाली लिखने के लिए मचल रही थीं। उंगलियां चलीं भी, लेकिन उमड़ रही संवेदनाओं ने ऐसा कुछ करने नहीं दिया। ऐसा इसलिए नहीं करने दिया, क्योंकि मेरे मन में उन हजारों परिवारों का ख्याल आया, जिनके मुखिया, भाई या बहन हालिया बम विस्फोटों में मारे गये हैं। मन तार-तार हो गया है।
धनतेरस के दिन लक्ष्मी और समृद्धि की कामना के लिए अरबों की खरीदारी हुई। नयी उम्मीद, नयी आशा और नयी सोच के साथ। नयापन मन में भरने की कोशिश है नये कपड़ों, नये रंग और नये आभूषणों से। लेकिन सवाल वही, इससे हमारी स्थिति कितनी बदलेगी? क्या हम अपने मन को पूरी तरह बदल पाये हैं? क्या हमारी आंखों से आंसू का एक कतरा भी उस गरीब के बच्चे के लिए निकल रहा है, जो एक वक्त की रोटी के लिए हमारी ओर डबडबायी आंखों से देखता है। करोड़ों भारतीयों के मन में मुझे नहीं लगता ऐसा कुछ हो रहा होगा। असंवेदनशीलता, दूरियां या चाहें और कुछ कहें, इन्होंने हमारी दुनिया में अहम जगह पा लिया है।
सच्ची दिवाली तो हमारी तब होगी, जब हम पटाखों पर खचॆ होनेवाले सौ रुपये में से कम से कम २० रुपये किसी गरीब बच्चे की रोटी के लिए बचा लें। छोटी मुंह बड़ी बात है, पर इतनी छोटी देन भी काफी होगी। एक दिन का ब्रेड किसी गरीब बच्चे के नाश्ते के लिए काफी होगा। लक्ष्मी का आना हो, वे आयें, लेकिन उन्हें भी इस दुनिया के गरीबों के झोपड़ों में झांकना ही होगा।
हमारी प्राथॆना उन्हें स्वीकार करनी ही होगा। प्राथॆना है कि वे हमारे देश के हर घर को इतना रौशन करें कि हमें दुनिया के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़े। समृद्धि आये, लेकिन सिफॆ पैसे में नहीं, बल्कि वैचारिक स्तर पर भी। जिससे आनेवाली पीढ़ी को एक ऐसा जहां मिले, जहां वह अपने व्यक्तित्व का सही विकास कर सके। इसी उम्मीद के साथ हैप्पी दिवाली...............

4 comments:

Udan Tashtari said...

सही सोच!!


आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का विचार सही है। यही करते हैं ...
दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएँ।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

baat to sahi hai. koshis karte hain
narayan narayan

Gyan Darpan said...

बहुत अच्छी सोच
दिवाली की शुभकामनाये

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