ये है मुंबई मेरी जान... लुभावना शब्द, दमदार अपील और जबरदस्त मारकेटिंग ने मुंबई को मुंबई होने से वंचित कर दिया है। मुंबई कास्मोपिलटन कल्चर का जीता जागता उदाहरण है। लेकिन आपको ये नहीं लगता है कि मुंबई शब्द के साथ ऐसा खिलवाड़ किया गया है कि इस शहर की अस्मिता खतरे में पड़ गयी है। ग्लैमराइजेशन ने मुंबई के साथ जुड़ी वास्तविकताओं को नजरअंदाज कर दिया है। चाहे मामला अपराध से जुड़ा हो या आतंकवाद से। हर बार ये शहर आतंकवादियों और आपराधिक तत्वों का आसान शिकार बनता जा रहा है। राजनीतिक भी मुंबई को सबसे आसान मोहरा मानते हैं। मुंबई की शान में न जाने कितनी कहानियां, शायरी और कविताएं गढ़ डाली गयी होंगी। लेकिन वास्तविकता ये है कि इस चकाचौंध के नीचे की जमीन खोखली हो गयी है। मुंबई की सुरक्षा की देखरेख करनेवाले इस आतंकी घटना के बाद अपनी नाकामियों को छुपाने की लाख कोशिश करें, लेकिन ये सच है कि मुंबई जैसा हीरा, जो चारों ओर से समुद्र से घिरा है, उसका सुरक्षा कवच कमजोर है। कमजोर इतना कि आपका दुश्मन आपके शहर में प्रवेश करता है और आपके होश ठिकाने तब आते हैं, जब वह अपने मकसदों को अंजाम देना शुरू करता है। मुंबई के नाम पर राजनीति और उसके ग्लैमराइजेशन ने शायद ऊपर बैठे लोगों की आंखों पर ऐसा चश्मा चढ़ा दिया है, जिसके शीशे का नंबर ही गलत है। नहीं तो मुंबई आज सबसे सुरक्षित होती।
मुंबई सिफॆ मुंबई के लोगों के लिए नहीं है, बल्कि उन सबके लिए है, जो इस देश से जुड़े हैं। देश के सारे बड़े वित्तीय संस्थान मुंबई में हैं। सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज मुंबई में है। मुंबई उद्योग धंधों का सेंट्रल प्लेस है। रोजी-रोटी और आम जिंदगी से जुड़ा हर पहिया मुंबई से जुड़ता है। दिल्ली में बैठे शासक पहले इन महानगरों की सुरक्षा जरूर सुनिश्चित करें, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। मुंबई के नाम पर, स्प्रिट आफ मुंबई के नाम पर अब इस बार जनता छली नहीं जाये, यह जरूरी है। १९९३ के बाद से न जाने कितनी बार मुंबई और मुंबई के लोग असुरक्षित महसूस करते रहे हैं। जब हमारे घर से हजारों किमी दूर हुए हादसे ने हमें असुरक्षित कर दिया, तब घर से कुछ किमी की दूरी पर हो रहे नरसंहार को जान और देखकर एक आम मुंबई के नागरिक का क्या हाल होगा, जरा सोचिये। स्प्रिट आफ मुंबई का डायलाग बोलकर मीडिया और राजनीतिक दलों के लोग फिर पुरानी शराब को नयी बोतल में डालने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार कोई नया तुक्का नहीं चलेगा। ठोस रणनीति चाहिए। वो तो ब्लैक कैट कमांडो थे, जिन्होंने मुंबई पर कहर बरपाने आये आतंकवादियों को खत्म कर दिया। अब इसके बाद भी अगर मेरी मुंबई-हमारी मुंबई और स्प्रिट आफ मुंबई का जुमला कह कर बरगलाने की कोशिश होगी, तो फिर भगवान ही मालिक है।
Saturday, November 29, 2008
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2 comments:
सही बात है। लेकिन कोई चेतेगा लगता तो नही।
आलेख बहुत अच्छा और बेबाकी भरा है। लेकिन देखिए कोई रणनीति बनाई जाती है या फिर वही कूट राजनीति।
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