Tuesday, November 18, 2008

हंगामा है क्यों बरपा- बस थोड़ी सी जो पी ली है

मैंने टीवी देखना बंद कर दिया है। आज का टेलीविजन क्या बताता है, आपकी नौकरी जा सकती है। आपकी धरती नष्ट हो सकती है। आपका टेंशन के कारण ब्रेन हेम्रेज हो सकता है। और भी न जाने क्या-क्या। चिंता व्याकुलता और अचकचाहट के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगता।

सोचा कहीं और चला जाये। बहारों के साये में, पहाड़ों पर। पर पाया कि पहाड़ और मैदान पर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गये हैं। अब टीवी को छोड़ आया ब्लाग के साये में।

लेकिन ब्लॉग में विद्वत जनों के उन्नत विचारों के कारण खुद के प्रतिक्रियावादी होने से बच नहीं पाया। छवि ऐसी बनी कि शायद कौआ भी कविता पाठ करने लगे। लेकिन भाई मैं तो खुद को कौआ मानकर चलता हूं। अब पूछिये कि कौआ करता क्या है? कौआ गंदगी साफ करता है। आपके आसपास के वातावरण को स्वच्छ बनाने में मदद करता है। वैसे लोगों को इस कांव-कांव से परेशान होने की जरूरत नहीं है। एक कौए की क्या औकात कि बड़े-बड़े पक्षियों और बगुलों का कुछ बिगाड़ ले। खुद को सफेद रंग में रंग कर बगुलों की कतार में शामिल होने से अच्छा है कि अपने वास्तविक स्वरूप में रहें।
हम तो बसे कहेंगे

हंगामा है क्यों बरपा
बस थोड़ी सी जो पी ली है


हमें तो जैसा समझ में आया,कहा, सीधे-सादे जो ठहरे। कोई गलती हुई हो, तो भाई माफ करियेगा। वैसे कल के प्रोत्साहन के लिए सारे आनेवाले और टिपियानेवालों को थैंक्यू।

बड़े-बूढ़ों से माफी भी। लेकिन ऐसे बड़े होने से क्या फायदा, जिसके बारे में शायद कहा गया है

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
देखन में बड़न लगे, फल लागे अति दूर

1 comment:

Anonymous said...

अशिष्ट लोगों के साथ शिष्टाचार करके क्या प्रमाणित करेंगे? इन्टरनेट पर लोग कीबोर्ड के पीह्हे छुप कर हर तरह की बकवास करते हैं| उनके लिए आपको क्षमा माँगने की कोई ज़रूरत नहीं| कुत्ते भौंकते रहेंगे, आप अपनी बात कहते रहिये| बिना बात की झिक-झिक में पड़ कर शक्ति और संयम खोने की क्या ज़रूरत है? जब लोग रामचन्द्रजी को ही पियक्कड़ कह सकते है, तो हम और आप क्या हैं?

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