Tuesday, November 25, 2008

सुरक्षित जीवनशैली की वकालत हो

शुरू में जब मनमोहन सिहं ने वित्त मंत्री रहते हुए ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत की, तो जोरदार स्वागत किया गया था। सरकारी नियंत्रण के बदले निजी नियंत्रण को तवज्जो दिया जाने लगा था। मंदी के ठीक पहले तक हालात ऐसे थे कि सेज के लिए प्लानिंगें होने लगी थीं। अभी भी शायद सरकार अपनी इस नीति पर कायम होगी। नकल जाहिर तौर पर अमेरिकी इकोनॉमी की की गयी। जहां पैसों की बरसात होती दिखती थी। वहां की जीवनशैली लोगों के लिए आकषॆण का केंद्र थी और है। लेकिन इस आकषॆक जीवनशैली के पीछे की कमजोर दीवार की नींव इतनी कमजोर साबित हुई कि अमेरिका जैसे देश को मंदी ने अपनी चपेट में ले लिया है। कल तक जो बैंक दूसरे देशों और संस्थानों के संरक्षक हुआ करते थे, वे खुद अब अस्तित्व रक्षा के लिए मदद की अपील कर रहे हैं।

इन सारी बातों से सबसे ज्यादा सकारात्मक चीज हमारे देश में ये हुई है कि राष्ट्रीयकरण के चलते हमारे बैंक काफी हद तक सुरक्षित रहे हैं। जिससे हमारी अथॆव्यवस्था बची हुई है। इस कारण वित्त मंत्री भी आत्मविश्वासपूवॆक भारतीय अथॆव्यवस्था को दूसरी सबसे अच्छी वैश्विक अथॆव्यवस्था करार देते हैं। मेरे लेख का मूल बिंदु ये है कि जिस जीवनशैली की नकल में हम विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो रहे हैं। उस अंधी दौड़ के दुष्परिणामों को झेलने के लिए हमारा देश तैयार नहीं है। करे कोई-भरे कोई की तजॆ पर हमारे युवाओं को नौकरी से बाहर होना पड़ रहा है।

सूरत में हीरा उद्योग की हालत खस्ताहाल है। काफी खराब स्थिति है। कई कंपनियां मंदी की मार से बचने के लिए कठोर कदम उठाने जा रही हैं। सोचनेवाली बात ये है कि निजी हाथों में अथॆव्यवस्था को देने का दुष्परिणाम हम लोग प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं। ऐसे में क्या पहलेवाली सुरक्षित जीवनशैली की वकालत हमें नहीं करनी चाहिए? जहां कम से कम लोगों की नौकरियां खतरे में न पड़ें। सरकारी नौकरियों में कम से कम छंटनी के खतरे नहीं होते। अभी युवाओं को मंदी की मार के नाम पर एक झटके में सैक करने की बातें देखी जा रही हैं। जिस प्रकार से कुछ दिनों पहले एक एयरलाइंस विशेष ने युवाओं को बाहर का रास्ता दिखाने का काम किया गया था, उसने भयावह तस्वीर पेश की थी। हमारे-आपके मन में भी डर जरूर होगा। क्योंकि ये घटना सीधे तौर पर हमारी जिंदगी को कहीं न कहीं प्रभावित करती है।

इस पूंजीगत व्यवस्था में वेतन के अंतर ने भी एक ऐसी विशाल खाई पैदा की है, जिसने कंपनियों की अथॆव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया है। जहां पहले करोड़ों का वेतन कुछ लोगों के पास हुआ करता था। आज की तारीख ये हजारों लोगों को मिलता है। हमारा कहना है कि आप समाजवाद को न अपनायें, लेकिन जरूरत से ज्यादा वेतन और फालतू खचॆ में निवेश होनेवाली राशि पर रोक लगायें।

दृष्टिकोण ये होना चाहिए कि अधिकतम लोगों को सुरक्षित जीवनशैली बिताने के लिए एक निश्चित और निधाॆरित वेतन जरूर मिले। मैं कोई अथॆशास्त्री नहीं, लेकिन इतना जरूर समझता हूं कि आम जनजीवन में अगर अधिकतम लोग खुशहाली का जीवन बीता सकेंगे, तो देश की प्रगति कहीं ज्यादा तेज होगी।

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