Thursday, November 27, 2008

बयां नहीं कर सकता ददॆ-हमले ने छीनी एक जिंदगी

आज मेरा अवकाश था। लेकिन मुंबई में आतंकवादी घटनाओं के बाद दफ्तर में बुला लिया गया। खबरों की बाढ़ और बेहतर अखबार छापने का जुनून हर पत्रकार के चेहरे पर हमसाया था। विचलित मन, कठोर दिमाग और मुट्ठियां भिंचकर पल-पल खबरों की टीवी से जानकारी लेते हुए सब अपने काम में लगे हुए थे। इसी में एक खबर मेरी नजर से होकर गुजरी। आदत के अनुसार सरसरी तौर पर खबर को पढ़ डाला। लेकिन वह सरसरी भरी निगाह एक युवक की मुंबई में मौत की खबर पढ़कर चौकन्नी हो गयी। फिर घबराहट,विकलता और व्याकुलता का दौर १४-१५ मिनट तक दिल और दिमाग पर हावी रहा। क्या करें, क्या नहीं, समझ में नहीं आ रहा था। क्योंकि जिस युवक की मौत हुई थी, वो मेरे परिचित का बेटा था। नाम था मलयेश बनरजी। खुद मेरे गुरु रहे डॉ मान्वेंद्र बनरजी का बेटा था। डॉ बनरजी स्थानीय रांची कॉलेज के ख्यातिप्राप्त शिक्षक हैं। उस लड़के की छह दिसंबर को शादी होनेवाली थी। बुधवार को जब घर में उसकी मौत की खबर मिली, तो कोहराम छा गया। मलयेश एक होनहार युवक था। वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। अपने माता-पिता की एकमात्र संतान मलयेश काफी तेज छात्र था। उसने आइआइटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग और उसके बाद मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी। बुधवार को होटल ताज में कंपनी के उच्चाधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद मलयेश अपने तीन दोस्तों के साथ होटल के सामने स्थित नरीमन प्लाइंट पर कॉफी हाउस में गया था। इसी बीच अचानक आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। एक गोली मलयेश की जांघ में लग गयी। पहले उसे एक अस्पताल और बाद में जेजे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन काफी खून बह जाने के कारण उसकी मौत हो गयी। इस आतंकी हमले ने एक होनहार युवक को हमारे बीच से छीन लिया। इस आतंकी हमले का असर अब हमारे जीवन पर साफ नजर आ रहा है। आज रात मुझे नींद नहीं आयेगी। पिछले ४८ घंटे इसी आत्ममंथन में बीत गये हैं कि इन नेताओं के जुमले सुन-सुनकर क्या हम इसी तरह जीते चले जायेंगे।
इस हमले में जो जवान शहीद हुए और जो निदोॆष मारे गये, उन लोगों की आत्मा की शांति के लिए प्राथॆना करता हूं। प्राथॆना ताज होटल के जीएम और उनके परिवार के लिए भी करता हूं, जिन्हें आतंकियों ने अपनी गोली का शिकार बना डाला। ये आतंक का खेल कब रुकेगा, समझ में नहीं आता। मेरी आंखें भर आयी हैं। अब चाहे इस हमले का हम कितना भी विश्लेषण कर लें, लेकिन उस मां को क्या उसके दो बेटे दिला पायेंगे, जो कि इस हमले में मारे गये हैं। भावनाएं उमड़ रही हैं, लेकिन इन भावनाओं को नियंत्रित करना ही होगा। चलिये शहीदों और मारे गये लोगों की आत्मा की शांति के लिए फिर से प्राथॆना करें।

घर लौटा, तो मलयेश की शादी के काडॆ पर नजर पड़ी। उस काडॆ पर मेरे हाथ स्वतः चले गये। ये उस शादी का काडॆ था, जो कभी नहीं होगी। बस ये याद दिलायेगी कि एक आतंकी हमले ने एक ऐसी जिंदगी छीन ली, जो किसी के घर या किसी मुहल्ले को रौशन करता था। पता नहीं.... इस देश के लोगों को क्या-क्या झेलना होगा।

2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sab kuchh jo ab tak nahi jhela. narayan narayan

प्रवीण त्रिवेदी said...

" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"

समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर

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