चलिये, सर पकड़ कर बैठ जाइये, शहीदों के नाम पर सियासत का खेल शुरू हो गया है।
पोलिटिकल चैंपियनों के जुमलों की कसरतों पर गौर करिये..
उन्हें उस मोड़ पर जाना चाहिए था,
नहीं, पहले उन्हें ऐसा करना चाहिए था, अरे...
ये क्या कर रहे हैं, ये तो सरासर नाइंसाफी है।
पहले ताज या ओबराय क्यों नहीं गये... ये तो सरासर उनकी गलती थी
जांच कराइये, आतंकियों ने ही गोली मारी या कोई और.........
हद हो गयी, शमॆ का पानी पीकर बेशमॆ होने की राजनीति का गंदा खेल शुरू है। चलिये भाइयों
आप भी शामिल हो सकते हैं।
भाई, पॉलिटिक्स में हैं, आपको पब्लिसिटी नहीं मिल रही है, तो कोई बात नहीं, दाग आइये दो-चार विरोधाभासी कमेंट्स। सवाल दागिये और खोजिये.... वे सारे सवाल, जो पूरे किस्से को बदरंग कर उसे ऐसा चेहरा प्रदान करें, जिसके पीछे से दुश्मन फिर वार करे।
सच कहें, तो भारतीय राजनीति उस गंदे नाले के समान हो गयी है, जहां सिफॆ बदबू ही बदबू है। यहां सिफॆ बयानबाजी और चरचे में बने रहने के लिए आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी है। चलिये लिख डालते हैं, दो-चार लेख अंतुले साहब पर और ले आते हैं उन्हें लाइमलाइट में।
कल टीवी पर अंतुले साहब को विजयी मुद्रा का चिह्न दिखाते हुए पाया। गजब का उत्साह था। ढलती उम्र, गुमनाम होती पहचान और राजनीति में घटते कद ने शायद अंतुले साहब को इस समय ऐसी दुस्साहसपूणॆ बयानबाजी करने की हिम्मत दी है। लेकिन इसने भारतीयों के गिरे हुए मनोबल को और इतना गिरने को मजबूर कर दिया है कि इसके लिए फिर भगत सिंह या सावरकर जैसे लोगों की जरूरत महसूस होने लगी है। जो हम भारतीयों को फिर उस गौरव का एहसास करा जायें, जिसे हम भूल गये हैं।
वैसे धन्य हैं अंतुले साहब, जो हमारी गिरी हुई जमीर की फिर से बुलंद करने का मौका दे गये हैं।
Friday, December 19, 2008
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1 comment:
कलान्तर में इस प्रकार की राजनीति चलनी ही थी! अन्तुलेजी तो एक माध्यम हैं। बहुत से बुद्धिजीवी यह कहने को कुलबुला रहे होंगे जो अन्तुले जी ने कहा।
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