Wednesday, December 3, 2008

बुलंद रहिये, देश बंटनेवाला नहीं है ( छह दिसंबर, हिंसा, भारतीय राजनीति (भाग-२))


मैंने पिछली पोस्ट छह दिसंबर, बाबरी मसजिद, हिंसा, भारतीय राजनीति (भाग-१) में भारतीय राजनीति में व्याप्त विरोधाभास का जिक्र किया था। एक दोस्त ने इसी सिलसिले में भविष्य में भारत के एक और विभाजन होने की बात टिप्पणी में कही। जहां तक इस देश के धमॆ के नाम पर बंटने का सवाल है, तो उसके लिए हमारे यहां आजादी के बाद से अब तक वो माइंड सेट नहीं बना है और न ही बनेगा। क्योंकि विभाजन के कहर को झेलने और उसके बाद उत्पन्न हुए हालातों ने इस देश को समस्याओं के गतॆ में धकेल दिया है। अब तक हम उनसे बाहर निकलने के लिए छटपटा रहे हैं। आज पाकिस्तान हमारे लिये नासूर बन चुका है। प्रणव मुखरजी को सारी रिश्तेदारी छोड़ पाकिस्तान को आतंकियों को सौंपने की बात स्पष्ट और जोर देकर कहनी पड़ रही है। ये वही पाकिस्तान है, जो इस भारत से अलग होकर बना। आज जो युवक यहां गोलियां बरसाते हुए आये थे, उनके दादा, परदादा दिल्ली और मुंबई की उन्हीं गलियों में बड़े हुए होंगे। परवेज मुशरॆफ भले ही तानाशाह रहे हों पाकिस्तान के, लेकिन उनका पुश्तैनी मकान भारत में है। उनकी भावनाएं भारत से जुड़ी हैं। सियासत करते हुए भारत के खिलाफ भले ही कड़वे बोल बोलते हों, लेकिन उनकी आत्मा भी इस मामले में गवाही देने से इनकार करती होगी। एक और विभाजन की बात इतनी आसानी से हम इसलिए करते हैं, क्योंकि विभाजन के बाद होनेवाले ददॆ को हमने नहीं झेला है। किसी धमॆ का पक्ष लेकर बोलना कभी-कभी ठीक होगा। लेकिन हर बार हिंदू होने का प्रश्न उछाल कर मुसलमानों की देशभक्ति पर उंगली उठाना भी कहां की समझदारी है। (ऐसा ज्यादातर हमारे अधिकांश ब्लागर बंधु करते हैं)। ये सवाल दागना सीधे-सीधे देश के ३० करोड़ मुसलमानों को कठघरे में खड़ा करने जैसा है। दो महीने पहले कश्मीर में धमॆ के नाम पर राजनीति ने उस राज्य को दो भागों में बांट दिया था। कोई भी धमॆ हिंसा अपनाने की बात नहीं करता। दुख इस बात का है कि पेट भर जाने के बाद हम भगवान को अपने हिसाब से विभिन्न हिस्सों में बांट देते हैं। याद रखिये, सबका खून एक ही रंग का है और सारे लोगों के लिए एक ही भगवान होता है। इस धमॆ के नाम पर छाये जुनून ने देश में कई दंगे कराये। हद तो तब हो गयी, जब देश की मीडिया से लेकर राजनेता तक आतंकवाद को भी धमॆ में बांट कर देखते हैं। अफजल चाकू मारता है, तो मुसलिम आतंकवादी हो जाता है और श्याम मारता है, तो हिंदू आतंकवादी। ये कौन सा तरीका है। जो लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, उनसे सीधा पूछता हूं कि वे देश जोड़ने की बात क्यों नहीं करते हैं। सबसे बड़ी जरूरत भावना से ऊपर उठकर हेल्दी माइंड सेट तैयार करने की है।

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