देश में आजादी के बाद अगर किसी दल ने कांग्रेस के वचॆस्व को चुनौती दी है, तो वह भाजपा ही है। लेकिन दोनों ने भारतीर राजनीति में धुंध को पसरने देने में मदद की। हालात ये हैं कि मुंबई में आतंकी हमले के बाद सबकी जुबान बंद थे। जब खुले, तो इनके तथाकथित बड़े नेता मुद्दे को छोड़ कर अनाप-शनाप बयानबाजी करने लगे। कोई इसे छोटा-मोटा हादसा कहता है, तो कोई नेताओं के विरोध को बकवास करार देता है।
ज्यादातर समय भाजपा को कांग्रेस पर निशाना साधने के नाम पर सोनिया गांधी ही दिखती रहीं। उनकी नागरिकता पर सवाल उठता रहा, जबकि उन्होंने जीवन का अहम हिस्सा यहां गुजार लिया है। हम एक भारतीय या अश्वेत के अमेरिका में राष्ट्रपति बनने की अपेक्षा करते हैं, लेकिन जब अपने देश में ऐसा कुछ होने का मौका आता है, तो भारतीयता को मुद्दा बनाकर बवाल कर उसे शमॆसार कर देते हैं। इधर कांग्रेस भाजपा को हिंदुवादी दल करार देते हुए एक विशेष वगॆ की पैरोकार बनी रही।
अभी इनके सहयोगी दल बने समाजवादी पाटीॆ के अमर सिहं बाटला हाउस के बाद जांच पूरी होने से पहले ही बयानबाजी कर पुलिसिया कारॆवाई को ही कठघरे में खड़ा करने लगे। कांग्रेस की दोहरी नीति जगजाहिर है। इसकी नीतियों पर यदि रिसचॆ किया जाये, तो दोहरापन अपनाने के मापदंड पर एक किताब लिखी जा सकती है। झारखंड राज्य में जब कोड़ा की सरकार थी, तो अजय माकन कांग्रेस के राज्य प्रभारी हुआ करते थे। कमाल की बात ये थी कि अजय माकन का दल कांग्रेस कोड़ा सरकार को समथॆन दे रहा था। और वही माकन सरकार की नीतियों और शासन की घोर आलोचना करते रहे। सवाल वही था कि जब उनके दल द्वारा समथिॆत सरकार खराब काम कर रही है, तो समथॆन वापस क्यों नहीं लिया गया। सामने कुछ और, फिर बाहर कुछ और की तजॆ पर जनता के साथ-साथ मीडिया को भी धोखे में रखा गया।
ऐसा लग रहा था कि आतंकी हमले से पहले देश के नेताओं के सामने कोई मुद्दा नहीं बच गया था। इन आतंकियों ने कम से कम आतंकवाद जैसे मुद्दे पर पूरे देश को एक कर दिया है। क्योंकि इसने मुंबई से लेकर कन्याकुमारी तक हर व्यक्ति को प्रभावित किया है।
राज ठाकरे को मराठी-बिहारी विवाद से फुरसत नहीं थी और यहां बम विस्फोट के बाद लालू प्रसाद के साथ शिवराज पाटिल सिफॆ सूट पहने या नहीं, इसी के विवाद में फंसे रह गये। जब विचार और तनाव चरम पर होती है, तो ये नेता ऐसे जुमलों का इस्तेमाल करेंगे कि पूरा मामला गड्ढे में चला जायेगा। हाल में केरल के सीएम द्वारा दी गयी टिप्पणी और नकवी साहब का बयान ऐसा ही उदाहरण है। धन्य है यह मीडिया भी, जिसे आंतक जैसे महत्वपूणॆ मुद्दे को छोड़ कर इन्हीं बयानों को लेकर टीआरपी बढ़ाने की फिक्र लगी हुई है। भारतीय राजनीति को आज देश की सुरक्षा की चिंता लगी हुई, लेकिन ये वही नेता हैं, जो कल तक सेना तक को भी निशाने पर रखने लगे थे।
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