Thursday, December 4, 2008
क्षेत्रीय राजनीति ने पकड़ा जोर (भारतीय राजनीति और हमारे दल-४)
साफ तौर पर भारतीय राजनीति ने दो सबसे बड़े दलों के कमजोर होने का खामियाजा भुगता है। इन दो दलों कांग्रेस और भाजपा के कमजोर होने के कारण क्षेत्रीय दल मजबूत हुए। देश में क्षेत्रीय राजनीति ने जोर पकड़ा। हालात ये हैं कि किसी भी राज्य में किसी एक दल को बहुमत काफी मुश्किल से ही नसीब हो रहा है। झारखंड जैसे राज्य में सरकार निदॆलीयों पर निभॆर हैं। झारखंड में पहले निदॆलीय मुख्यमंत्री मधु कोड़ा बने। गंठबंधन की राजनीति ने फायदे से ज्यादा इस देश को नुकसान ही पहुंचाया है। देश में क्षेत्रीय राजनीति के बढ़ने का ही प्रभाव है कि राज ठाकरे मराठा बनाम बिहारी की राजनीति करते हैं और असम में भी बिहारियों पर हमले होते हैं। इधर गंठबंधन की राजनीति करते हुए सरकार को अपना वजूद बचाने के लिए वह सब करना पड़ा, जो कि उचित नहीं है। संसद ने ऐसे-ऐसे उदाहरण देखे कि इस पर जितनी कम चरचा की जाये, कम होगी। बढ़ती महंगाई हो या देश की सुरक्षा का मसला, हर निणॆय के लिए सरकारें सहायक दलों की सहमति के भरोसे रहती है। जरूरी है कि देश को कांग्रेस और भाजपा में ही ऐसा कुशल नेतृत्व मिले, जो इसे सशक्त राजनीति की ओर मोड़े। जिससे एक सशक्त नेतृत्व में देश आगे बढ़ सके।
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गांव की कहानी, मनोरंजन जी की जुबानी
अमर उजाला में लेख..
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1 comment:
साफ तौर पर भारतीय राजनीति ने दो सबसे बड़े दलों के कमजोर होने का खामियाजा भुगता है।
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इस कथन से असहमति का कोई कारण ही नहीं। लेकिन मुझे लगता है कि भारत इस ब्राण्ड के प्रजातन्त्र के योग्य अभी बना नहीं है, जिसमे व्यक्ति जाति/वर्ग या पैसे के लोभ के ऊपर सोच कर वोट दे और सरकार चुने।
और झारखण्ड में तो यह और भी नजर आता है। यहां निर्दलीय गणित बिठा मुख्यमंत्री बन जाता है। एक मंत्री एक टापू खरीदने की हैसियत रखता है!
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और झा जी आप लिखते बहुत अच्छा हैं - खैर आपका तो यह प्रोफेशन (जर्नलिज्म) का अंग है।
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