भोरे-भोरे दरवाजा का घंटी बजा-ट्रिंग-ट्रिंग
सामने दरवाजा खोला-खड़े थे मंगरा जी
पूछे-का हो मंगरा भइया, ऐता भोरे-भोरे, कहां से
मंगरा बोले-भइया, गांव में थे, बम विस्फोट का खबर सुन यहां आ गये।
हम बोले, भइया बम विस्फोट त मुंबई में भइल है, तु यहां
मंगरा बोले-हां, बम विस्फोट का खबर से सुनके रहा नहीं गया। अपना सिक्यूरिटी को लेके टेंशन में हैं। इसलिए यहां आ गये। इ बार अपना सिक्यूरिटी का इंतजाम करके जायेंगे
दिमाग चकराया, मंगरा जी को सिक्यूरिटी का इंतजाम कहां से करायें, अपना तो ठिकाने नहीं है।
हम बोले-सिक्यूरिटी कैसे मिलेगी?
मंगरा जी-इ तो बहुत आसान है। अरे नेताजी बन जायेंगे, तो सिक्यूरिटी नहीं मिलेगा?
इ लो मंगरा जी को नेताजी बनने का भूत सवार हो गया, पूछ बैठे-नेता जी बनियेगा कैसे?
मंगरा बोले-आंदोलन करके।
हम पूछे-लेकिन आंदोलन करियेगा कैसे
मंगराजी- अरे बहुत आसान है, कोनो प्राब्लम उठाकर शुरू होना है, जिंदाबाद, मुदाॆबाद
हम बोले-ऐतना आसान नहीं है। बहुत मेहनत है।
मंगरा जी-मेहनत किसमें नहीं है। लेकिन जो मेहनत करके पढ़ेगा, उ आइएएस बनेगा। और जो आंदोलन करके नेता बनेगा उ मुख्यमंत्री, तो फायदा किसमे है। ऊपर से पूरा सिक्यूरिटी भी मिलेगा।
ताज में जो एसपीजी लड़ने गया था, उ तो नेताजी लोग को सिक्यूरिटी के लिए ऐसे ही मिलता है।
हम समझ गये,मंगरा जी किसको देखके सनके हैं।
इसलिए चुप्पी साध लिये।
अब देखते हैं, नेता जी बनने के लिए आगे मंगरा जी का-का करते हैं। हम तो भइया ऐसे ही ठीक हैं।
Thursday, December 4, 2008
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