Sunday, December 28, 2008

माननीय इसमें पसंद-नापसंद की कौन सी बात है

इस टिप्पणी पर गौर करें, जो कि मेरी पिछली पोस्ट पर दिया गया है।

टिप्पणी में कहा गया है-
सरिताजी के तर्क में दम है । देखिए न, आपने लिखा तो सम्‍बन्धित पोस्‍ट पढी । आप यह सब नहीं लिखते तो, मुझ जैसे अनेक लोग वह सब नहीं पढते जिस पर आपको आपत्ति है ।
ब्‍लाग जगत को कोसिए मत । इसमें आप-हम सब जैसे सामान्‍य लोग ही हैं । कोई जरूरी नहीं कि जो आपको नापसन्‍द हो, उसे बाकी सब भी नापसन्‍द करें ।
वैसे भी दीप्ति ने अपराध नहीं कर दिया । उसने तो वही सब प्रस्‍तुत किया जो सड्कों पर और आपके-हमारे व्‍यवहार में प्‍याप्‍‍त है ।
आपको 'वह सब' होने पर कोई आपत्ति नहीं है । आपत्ति है तो 'उस सबको' जग-जाहिर करने पर ।
छड्ड यार । और भी गम है जमाने में मुहब्‍बत के सिवा ।


इस टिप्पणी में मामला पसंद या नापसंद का उठाया गया है। लेकिन भाई साहब गाली सुनने, सुनाने या बोलने के मामले में किस पसंद या ना पसंद की बातें हो रही हैं। गाली निश्चित रूप से किसी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने के लिए दी जाती है। दुनिया में सड़कों पर न जाने कितनी बेहूदा बातें हो रही हैं, उसका भी विरोध होता ही है। हमारे सामने अगर कोई किसी को गलत शब्द कहे, तो हम उसका जमकर विरोध करेंगे। ऐसा ही ब्लाग जगत का भी मसला है।

जहां तक ब्लाग पर इस मामले को लाने का विरोध है, तो वह उचित है। साथ ही ये कहना है कि ये पसंद या नापसंद का मामला, एक अलग तरह का विवाद उत्पन्न करता है। इस मामले को ब्लाग पर लाने के मुद्दे को पसंद करना ही पतनशीलता और मानसिक दिवालियेपन की ओर इंगित करता है। हमें चाहिए कि हम इन बातों और मुद्दों को हतोत्साहित करें, जिससे ब्लाग जगत फालतू के बकवासों से दूर रहे। वैसे अगर आपको हमारी बातें नागवार गुजरती हैं, तो हम क्या करें।

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