ब्लॉग जगत शायद गालियों के मुद्दे पर बात करते हुए समुद्र के निचले सतह को छूने को बेताब है। जहां विचारों और मुद्दों पर बहस होनी चाहिए, वहां ऐसे मुद्दे को छूने की कोशिश हो रही है, जो समाज के एक विकृत चेहरे को प्रस्तुत करता है। गाली कोई आज इसी युग में नहीं जन्मी होगी, यह तो उसी दिन जन्म गयी होगी, जिस दिन मानव ने बोलना शुरू किया था। लेकिन एक ब्लाग पर (शायद सबसे पढ़ी जानेवाले ब्लाग) में एकदम खुले तौर पर उस खास गाली के प्रति नाराजगी जाहिर की गयी है, जो दिल्ली जैसे शहर में प्रयोग की जाती है। की जाती होगी, लेकिन आपत्ति ये है कि क्या इस बात को जाहिर करने के लिए ये माध्यम ही बचा था। माना ब्लाग आपकी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का माध्यम है, लेकिन ये क्या जनाब कि पूरी उलटी ही करनी शुरू कर दी। ये काफी शमॆनाक मामला है।
मामला ऐसा कि इसे पढ़कर उन खास लेखक महोदय के प्रति वितृष्णा का भाव पैदा हो गया है। कौन कहां और किस जगह उन वाक्यों या शब्दों का नहीं सुनता, लेकिन उन बुरी बातों को नजरअंदाज कर व्यक्तिगत जीवन में बेहतर चीजों को जगह देता है। यदि आप लाख बार भी उन खास गंदे शब्दों को सुनते हैं, लेकिन अगर आपका मन बेहतर और अच्छा है, तो आप उसे अपने दिमाग से दूर कर देंगे। खुद उस मुद्दे विशेष पर एंगल करके ब्लाग पर आलेख लिखना सस्ती लोकप्रियता जुटाने के प्रयास के अलावा कुछ नहीं है। बात शायद इसके अलावा नारी जाति द्वारा आपत्ति जताने की हो, तो इसके लिए और भी माध्यम हैं। एक अहम सवाल ये है कि क्या कोई दूसरा मुझे गाली बकता है, तो क्या मैं भी उसे उसी लिहाज में जवाब दूं , ये क्या उचित है। साथ ही क्या इससे हमें उसकी बराबरी का दजाॆ मिल जायेगा।
याद रखने की बात ये है कि विद्या की देवी सरस्वती ही हैं। इसलिए ही शायद हमारे देश में स्त्री जाति की गरिमा बरकरार है। आप भले ही लाख लिख डालें कि नारी जाति का पतन हो रहा है या उनके उद्धार की जरूरत है। लेकिन ये जाहिर तौर पर स्पष्ट है कि इसके लिए किसी की पैरवी की जरूरत नहीं है। आप इस मुद्दे पर वगॆ विशेष से जोड़ कर सिफॆ सस्ती लोकप्रियता बटोरने की कोशिश करते हैं, जो कि बेहद घटिया है।
आपत्ति इस बात से भी है कि इस मुद्दे पर किसी ने विरोध भी नहीं जताया। शायद हिन्दी ब्लाग जगत को इसलिए कुछ लोग गोबर का ढेर कहते हैं। जहां सिफॆ गोबर के लिए जगह बचती है। और ये बिलकुल दिमाग को तो पिछली गली में छोड़ने जैसी बात है। वैसे विद्वतजनों को यदि कोई आपत्ति हो, तो हमें खेद है। बेबाक बोलने मेरी आदत में शुमार है।
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7 comments:
समाज में कई बातें गलत हो रही हैं , उनकी ओर ध्यान देना ज़रुरी है । बेहूदा बातों में ऊर्जा और वक्त लगाकर कुछ अलग नहीं किया जा सकता । नागवार गुज़रने वाली चीज़ों को नज़र अंदाज़ कर के ही उनसे निजात पाई जा सकती है । खुले आम रस ले ले की गई बहस तो कहीं ना कहीं इन तत्वों को बढावा ही देंगी ।
सरिताजी के तर्क में दम है । देखिए न, आपने लिखा तो सम्बन्धित पोस्ट पढी । आप यह सब नहीं लिखते तो, मुझ जैसे अनेक लोग वह सब नहीं पढते जिस पर आपको आपत्ति है ।
ब्लाग जगत को कोसिए मत । इसमें आप-हम सब जैसे सामान्य लोग ही हैं । कोई जरूरी नहीं कि जो आपको नापसन्द हो, उसे बाकी सब भी नापसन्द करें ।
वैसे भी दीप्ति ने अपराध नहीं कर दिया । उसने तो वही सब प्रस्तुत किया जो सड्कों पर और आपके-हमारे व्यवहार में प्याप्त है ।
आपको 'वह सब' होने पर कोई आपत्ति नहीं है । आपत्ति है तो 'उस सबको' जग-जाहिर करने पर ।
छड्ड यार । और भी गम है जमाने में मुहब्बत के सिवा ।
पवित्रम पवित्रम
क्या पवित्र विचार हैं
महक महक गया ब्लॉगजगत
ब्लॉगजगत में आप जो मांगे वह प्रचुर मिलेगा। विशेषत: गोबर!
भाई ब्लॉग जगत अथाह भण्डार है जो जिसकी मंसा हो वैसा गोता लगाकर ले जाए. वैसे मै ज्ञान जी की टीप से काफी हद तक सहमत हूँ .
तो आइये बायोगैस बनाऎं !
भाई प्रभात गोपाल झा...उर्फ झीं...समझ गए होगे...क्या हाल है...गोबर पर लिखने लगे...रामगढ़, पतरातु, हजारीबाग, मुरी, गुमला की खबरें कम पड़ गईं क्या...जो गोबर की बात कर रहे हैं...वैसे अच्छा प्रहार किया है...ब्लॉग जगत पर..आज ही मैंने तुम्हारा ब्लॉग देखा...सो टिप्पणी लिख दिया...
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