
दो महीने पहले तक खुश थे कि अमेरिकी कंपनियां मंदी की चपेट में हैं, हम नहीं। लेकिन समय बीतते-बीतते इस सुनामी की चपेट में हमारा देश भी आ गया। इस सुनामी ने कमजोर हो चुकी दीवारों को गिराना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही लाखों कमॆचारी और उन पर आश्रित लोगों व परिजनों ने भी घोर आरथिक विपत्ति का सामना करना शुरू कर दिया है। एक अनचाही मुसीबत दबे पांव उनकी जिंदगी में आयी है। सत्यम घोटाले के बाद कंपनी के हजारों कमॆचारियों और अधिकारियों के सामने भी आगे की जिंदगी को लेकर सौ सवाल खड़े होंगे। कुछ देर पहले एक कमेंट्स पर नजर पड़ी। उसमें कहा गया था कि हम वतॆमान परिस्थिति में सारे नेगेटिव सोच को नकारें। सारे उन कथनों को नजरअंदाज करें, जो नेताओं, विशेषग्यों और अन्य लोगों द्वारा कहे जा रहे हैं। थोड़ी देर के लिए सोचा कि क्या शुतुरमुगॆ की तरह चेहरे को बालू में छुपा लेने से मुसीबत टल जायेगी। लेकिन शायद हमारे लिये ऐसा करना ठीक नहीं होगा। नैसकॉम ने प्रतिद्वंद्वी आइटी कंपनियों से सत्यम के ग्राहकों को नहीं तोड़ने की अपील की। यह एक सकारात्मक कदम हैं। वैसे ही हम और आप इस मंदी से प्रभावित उन हजारों परिवारों के लिए सहानुभूति न अपना कर हमकदम बनते हुए भावनात्मक संबल प्रदान करें, यह जरूरी है। एक ठोस कदम जरूरी है हजारों लोगों को उस मनोदशा से बचाने के लिए जो कि हुई आरथिक क्षति से ज्यादा खतरनाक है। ये लेख लिखने से पहले हमने सोचा कि क्या ऐसा लिखना ठीक होगा? क्या हम ऐसा कर हुई क्षति या नुकसान की भरपाई कर सकेंगे। लेकिन जब चारों ओर देखा, तो पाया घोटाले की आवाज में उन हजारों लोगों की आवाजें मीडिया की टीआरपी के रेस में दब सी गयी हैं। उसमें अगर इसी लेख के सहारे कहीं से कोई रौशनी जगती है, तो वही बहुत होगी।
1 comment:
ये तो होना ही था..खैर, आपकी सलाह इचित है.
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