Tuesday, January 13, 2009

कहीं सत्यानाश न कर डाले टिप्पणियों की चाहत?

फलां-फलां लेख में ज्यादा टिप्पणी है। आज अधिक टिप्पणियां मिलीं या काफी कम टिप्पणियां मिलीं। ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जो मन को छूती हैं। अच्छी लगती है। किसी का प्रोत्साहन पाना या स्नेहवश मन को छूता स्पशॆ किसे अच्छा नहीं लगता। अखबारी दुनिया में इस स्नेह का अभाव है, लेकिन यहां ब्लाग की दुनिया में हर कोई एक-दूसरे की छुअन महसूस करना चाहता है। वरचुल वल्डॆ की वरचुल चाहत। दूसरी ओर इस प्रवृत्ति ने इस ब्लाग जगत का कितना नुकसान किया है, इसका आप अंदाजा नहीं लगा सकते। अधिकतर ब्लाग लेखक जहां एक-दूसरे की प्रशंसा या टांग खींचने में लगे रहते हैं, वहीं एक स्तरीय सामग्री परोसने में भी ब्लाग लेखक असफल रहते हैं। उनका लेखन टारगेट ओरिएंटेड यानी किसी खास लक्ष्य को साधे रहता है। सटीक और चुस्त लेखन साफ मन से विश्लेषण के साथ ही किया जा सकता है। वैसे में जब किसी खास ब्लाग पर टिप्पणियों की बरसात दिखती है, तो अपना मन भी उसमें दो-चार डुबकी लगा लेने को होता है। लेकिन हम डुबकी लगाकर बाहर निकलने के बाद छिछले पानी और कीचड़ से खुद को गंदा किया हुआ महसूस करने लगते हैं। अपने अमूल्य समय को बिना किसी ग्यान या कहें नॉलेज को हासिल किये बरबाद करता हुआ पाते हैं। तब मन में एहसास होता है कि इस माध्यम से हम अपना वक्त जाया कर रहे हैं। इसके स्थान पर किसी साइट पर जाकर किसी महत्वपूणॆ सामग्री से जानकारी हासिल कर सकते थे। ब्लाग का नशा कुछ देर के लिए अच्छा लग सकता है, लेकिन समय के लंबा होने के साथ स्तरीय सामग्री और लेखक की तलाश शुरू हो जाती है। लेखन में २०-३० ब्लाग को छोड़कर ज्यादातर अपनी संतुष्टि या नेटवरकिंग बढ़ाने के लिए लिखे जानेवाले लगते हैं। होना ये चाहिए कि लिखते वक्त आप उस व्यापक और विस्तृत पाठक वगॆ का ध्यान रखें, जो शायद भविष्य में होनेवाला है। लगातार विस्तृत होते जाते हिन्दी इंटरनेट के संसार में इस ब्लाग जगत की उपयोगिता और महत्व भी तभी बढ़ेगा, जब इसमें गंभीर और स्तरीय सामग्री का संयोजन होगा। बहस और मुद्दों को अपने ब्लाग में हम बढ़ावा दें, शायद आप भी यहीं सोच रहे होंगे.......।

9 comments:

विनोद श्रीवास्तव said...

ब्लॉग की दुनिया की सच्ची हकीक़त बयां करता लेख. यहाँ सिर्फ़ 'सतही' लेखों और 'सतही' कमेंट्स का वर्चस्व है. कुछेक लोगों का सिंडिकेट कुछ भी लिख देने और कुछ भी कमेंट्स पा लेने में विश्वास रखता है. followers की संख्या देख कर खुश होने की बजाय अगर लेखों पर कुछ ईमानदारी भरे कमेंट्स मिलते तो सुधार का मौका भी मिलता और उत्साहवर्धन भी होता.
विनोद श्रीवास्तव

Gyan Dutt Pandey said...

अगर अपने ब्लॉगिंग के ध्येय स्पष्ट कर लें तो समस्या न रहे।
समस्या तब है जब यह लत बन जाये।

संगीता पुरी said...

लगातार विस्तृत होते जाते हिन्दी इंटरनेट के संसार में इस ब्लाग जगत की उपयोगिता और महत्व भी तभी बढ़ेगा, जब इसमें गंभीर और स्तरीय सामग्री का संयोजन होगा। बहस और मुद्दों को अपने ब्लाग में हम बढ़ावा दें, शायद आप भी यहीं सोच रहे होंगे.......।
बिल्‍कुल सही और यह तभी होगा , जब हम अपने लेखन के प्रति गंभीर हों और जनसामान्‍य के लिए उपयोगी आलेख परोस सकें।

रंजू भाटिया said...

जब लेखन सार्थक होगा तभी बात बनेगी ..और उस पर कॉमेंट्स भी ईमानदार आए तो और भी अच्छा है लिखना सिर्फ़ लिखने के लिए न हो ..बलिक कुछ अपनी बात कहे भी ..

Anonymous said...

टिप्पणियों की चाहत ने हमारी सृजनशीलता को गिरवी रख लिया है. आपने लिखने की हिम्मत की लेकिन पूरा का पूरा नहीं लिखा. आभार.

Unknown said...

bahut sahi likha sir...

प्रवीण त्रिवेदी said...

अगर लेखों पर कुछ ईमानदारी भरे कमेंट्स मिलते तो सुधार का मौका भी मिलता और उत्साहवर्धन भी होता!!!!

PD said...

सच लिखा है.. मेरा खुद का यह अनुभव है कि जब मैं कुछ बढ़िया चीज लिखता हूँ तो उस पर ४-५ से ज्यादा कमेन्ट नहीं आता है.. मगर वही जब ब्लौग नेट्वर्किंग पर लिखता हूँ तो कमेट्स कि भरमार हो जाती है.. कई बार ४०-५० के भी पार निकल जाता है..

अभिषेक मिश्र said...

Sahi kaha aapne ki tippaniyon ki chahat ki jagah Blog ki vishayvastu mahatwapurn honi chahiye.
(gandhivichar.blogspot.com)

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