मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने एक रहस्यमयी पिटारे को खोल दिया है। उससे निकले जिन्न से सभी तबाह हैं। पहली बार इस हमले ने इस बहस को जन्म दिया है कि हम मंत्री, पत्रकार या कमॆचारी होते हुए अपने देश और समाज के प्रति कितने संजीदा हैं। जब कोई चैनल सिफॆ दिखाने के लिए खबर चलाता है, कोई अखबार सिफॆ बिकने के लिए खबर छापता है या कोई व्यक्ति या दशॆक महज आत्मसंतुष्टि के लिए प्रतिक्रियावादी होकर भड़ास निकालता है, तब एक लक्ष्मण रेखा खींचने की जरूरत महसूस होती है। ऐसी रेखा जिसका हम सभी अनुपालन करें। मीडिया को ये देखना होगा कि क्यों वह सुरक्षात्मक मुद्दे पर हमले से पहले कमजोरियों की ओर ध्यान खींचने में विफल रहा। उसने क्यों उन मुद्दों को लेकर खोज या रिपोरटिंग नहीं की?
दूसरी बात एक दशॆक या टिप्पणीकार जब मीडिया को सीधे गरियाता है, तो वह अपने ही आईने को झूठ बोलता है। मीडिया वही चीजें दिखाता है, जो आम दशॆक पसंद करते हैं। ऐसा क्यों है कि जो बेहतर और गंभीर पत्रिकाएं या अखबार हैं, उन्हें अस्तित्व में रहने के लिए संघषॆ करना पड़ता है। फिर हार कर बाजार के समीकरण के तहत उसे अन्य सस्ते माध्यमों की तुलना में ढल जाना पड़ता है। उसके पीछे कारण पाठक, दशॆक या आम वगॆ द्वारा उसे स्वीकार नहीं कर पाना ही है। हम उन्हीं चीजों को देखते हैं, जो उत्तेजना या सनसनी पैदा करती है। किसी चीज पर भड़ास निकालना या गाली देना समस्या का मूल हल नहीं है।
एक बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि मीडिया को चलाने के लिए भी बाजार का सहारा चाहिए। हार कर मीडिया भी उन्हीं रास्तों पर चल पड़ा था या है, जो बाजार चाहता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया की आरुषि हत्याकांड से लेकर अब तक की कई रिपोरटिंग हमले से पहले गैर-जिम्मेदाराना रही। कई मामलों में उस पर उंगली उठी।
मुंबई हमले के समय डायरेक्ट टेलीकास्ट ने आम दशॆकों को फिल्मी हिंसा से परे एक ऐसी दुनिया से परिचय कराया था, जो सिफॆ कल्पनाओं में था। अगर सरकार में बैठे लोग या बुद्धिजीवी इसके कुप्रभाव के बारे में सोचकर कुछ फैसला ले रहे हैं, तो इसके पीछे भी मीडिया के खिलाफ व्याप्त असंतोष ही कारण था। मीडिया इससे सबक लेते हुए जरूरी है कि एक लक्ष्मण रेखा खुद खींचे। नहीं तो मीडिया और पत्रकारों द्वारा मचाया जा रहा शोर उस विस्फोट में दब जायेगा, जो धीरे-धीरे बैलून में हुई छेद के कारण कभी भी हो सकता है।
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5 comments:
कल ही किसी ब्लाग पर मैने ऐसी ही टिप्पणी की थी ....आखिर मीडिया खुद ही अपना स्वरूप परिवर्तित क्यो नहीं करता ?
न इसमें गप हैं
न है इसमें शप
इसमें छिपा है
बिल्कुल सच।
मीडिया खुद खींचे लक्ष्मण रेखा
में प्रभात गोपाल ने जिस पहलू
की ओर ध्यान दिलाया है
उन पर गौर न करना
गुब्बारा बना देगा
गुब्बारा फूट तो सकता है
छेद न भी हो तो भी
अधिक दिन कायम
रह सकता नहीं
इसलिए दरकार यही
कि मिलकर विचारें
रेखा को खुद ही खींचें
इस सच्चाई से
न हम आंखें मींचें
अपने विचारों, निर्णयों
से इसे अवश्य सींचें।
Nahin, yeh sahi nahin ki media wahi dikhata hai jo aam darshak dekhna chahte hain. Magar Friday night se Sunday tak koi channel darshakon ke liye option chorta kahan hai! Inse kahin behtar Akhbar hain jo sanyamit news diya karte hain aur jinke bina unhi aam logon ki subah adhuri rahti hai.
मीडिया अगर बाजार के चलते असंयमित हुआ है तो बाजार ही उसे ठीक करेगा!
और किसी का अहं अगर उसे इस प्रकार का आचरण करा रहा है तो वह अहं बहुत समय तक कायम नहीं रह सकता।
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