Friday, January 30, 2009

दल, अभिनेता और चुनावी चक्कर

राजनीति की माया, राजनीति का चक्कर, बड़े-बड़े दिग्गजों को चक्कर में डाल देती है। एक शोर दबे पांव फुसफुसाहट भरी सुनायी पड़ती है कि हीरो और अभिनेताओं को नेता बनने का शौक क्यों चढ़ गया है? अमिताभ जब राजनीति छोड़ अभिनय की दुनिया में लौटे थे, तो काफी हंगामा हुआ था। उसके बाद भी इलाहाबाद की गंगा में काफी पानी बह चुका है। अब अमर सिंह जी संजय दत्त जी को चुनाव लड़ाने की तैयारी में जुट गये हैं। याद आता है कि कुछ दिनों पहले जब एक अभिनेता कांग्रेस सांसद से परमाणु अप्रसार मुद्दे पर राय पूछी गयी थी, तो उन्होंने इससे गरीबी हटने की बात कही थी। वैसे तो हमारे कई सांसद खुद जानकारियों से दूर रह कर कूंप मडुंक बने रहते हैं। लेकिन चुनाव में अभिनेताओं या कहें प्रसिद्ध लोगों को उतारने के लिए दल पूरी जान लगाये हुए हैं। इन सारी कोशिशों के बीच जो सवाल उछलता है, वह ये है कि दलों को अपने उन कायॆकताॆओं पर भरोसा क्यों नहीं रहता, जो रात-दिन उनके लिए जान लगाये रहते हैं। दल के हजारों कायॆकताॆ क्षेत्र की खाक छानते हुए पारटी की नींव मजबूत करते रहते हैं। बड़ी-बड़ी बातें करनेवाले शीषॆ नेता चुनाव के समय इन जान लगानेवाले कायॆकताॆओं को नजरअंदाज कर देते हैं। निहारते हैं उन बड़े नामों को, जो हजारों की भीड़ आसानी से खींच लेती है। एक पुरानी कहावत है-लग्गी लगा के फुनगी पर बैठाने की तैयारी। वैसी ही तैयारी पारटियां करती हैं। लेकिन इसके साथ उन हजारों सामान्य कायॆकताॆओं के सीने को चीर डालती हैं, जो खुद की राजनीतिक प्रगति की आस लगाये बैठती हैं। लोग सोचते हैं, बड़े नाम बड़े काम करेंगे, लेकिन ऐसा होता नहीं। दूसरी ओर मजबूत कायॆकताॆ चुनाव लड़ने के आसार के कम होने के मद्देनजर खुद दल गठित कर अपनी नैया पार लगाने की कोशिश में जुट जाते हैं। इसके साथ ही शुरू हो जाती है छोटे दलों की राजनीति। और शुरू हो जाता है महत्वहीन राजनीति का सिलसिला। आखिर अभिनेताओं या अभिनेत्रियों को टिकट देकर पूरी दुनिया में हमारे दल क्या संदेश देना चाहेंगे? वे ही जानें। कुछ अपवाद भी हुए हैं। सुनील दत्त, जयललिता, जयाप्रदा राजनीतिक जीवन में काफी सफल रहे। लेकिन बहुतेरे अभिनेता राजनीतिक मैदान में कुछ खास नहीं कर सके और सिफॆ मुंह दिखाने भर के लिए रह जाते हैं।

1 comment:

Udan Tashtari said...

देखिये, ये क्या करते है!! अच्छा विश्लेषण.

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