Wednesday, February 4, 2009

तब क्या आप पियेंगे एक कप गमॆ चाय?


एक कप चाय, गरम है भाई
केतली में बनी है एक्सट्रा
सोचा, किसी को पिला दूं
जोर की आवाज दी
घर के पास गुजरते हुए राहगीर को

गया पास, बोला भाई साहब
पियेंगे चाय, गरम पाय
थोड़ा गड़बड़ाया, सीधे आंखों से ताकते
राहगीर ने पूछा
इतनी मेहरबानी क्यों
हमने कहा
इतनी निगहबानी क्यों?
आइये चाय पी लिजिये

साथ-साथ पीयेंगे
बतकही करेंगे
लेकिन उनका स्वाभिमान ललकार गया
पीने से चाय मन इनकार कर गया
हम मन मसोस लौट रहे थे

तभी पीछे से अंकल जी की आवाज आयी
बोले, बेटा हम तो पीयेंगे एक कप गरम चाय
हम देख रहे थे तुम्हारा विवाद
चेहरे पर आया अवसाद
घबराओ मत
हम देंगे तुम्हारा साथ
पीयेंगे हाथ ही हाथ
एक कप चाय
उन्होंने नहीं पिया, तो क्या हुआ
नेक्स्ट वन के जमाने में
सबकुछ है संभव हुआ

आओ चाय पीते हैं
मस्ती, हंसी, ठिठोली करते हैं
अंकल जी ने कहा-देखो वो हंस रहा है
कविता लिखनी आती नहीं
ये प्रभात कविता लिख रहा है

हमने कहा-लेकिन क्या करूं?
ब्लाग है ही वैसा
सोचा दे दूं मुफ्त का निमंत्रण ऐसा
हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा
तब क्या आप पियेंगे एक कप गमॆ चाय?

5 comments:

Vinay said...

उम्दा!

prabhat gopal said...

thanks, aaiye chay ka nimantran hai

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

प्रभात जी कविता लिख रहे है....
आहा आनंद आ गया..
मन ने पूछा, क्या कविता चाय है..?
मैंने कहा ..हाँ जी कविता तो चाय ही है ...
गोल दाना मुक्तक है
और
दर्जेलिंग की लप्चू
तुकबंदी ..

सरजी मज़ा आ गया,,कभी यहाँ आइये ....
काफी हाउस में बैठकर चाय या काफी लेते हैं

prabhat gopal said...
This comment has been removed by the author.
Kaul said...

प्रभात जी, आप अपने ब्लॉग पर र् (जैसे, गर्म) के चिह्न के स्थान पर ॆ मात्रा (जैसे गमॆ) का प्रयोग कर रहे हैं। कृपया इसे ठीक करें। ग र ् म लिखें। इस पोस्ट में भी और अपने साइडबार में भी इस मात्रा को ठीक करें।

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