
उस लड़के को चुपचाप आफिस के गेट से ऊपर सीढ़ियां चढ़ते देखता था। सिर पर कम बाल, धीमी चाल और अपने में खोया रहनेवाला शख्स पता नहीं क्यों, कुछ एहसास करा जाता था। शायद रिपोरटिंग में बतौर ट्रेनी आया था। एक दिन हमारे डेस्क पर उसे सहयोग देने को कहा गया। एक खास चीज थी उस लड़के में-काम में धीमी गति, लेकिन संपूणॆ समपॆण के साथ काम करने की आदत। कुछ ऐसा था, जिसकी लोग तारीफ नहीं करेंगे, आज के कंप्यूटर फ्रेंडली और फास्ट जमाने में।
हम तो कंप्यूटर में तेजी के लिए सबको खूब प्रेरित करते हैं। लेकिन शायद सब नहीं हो पाते। उस लड़के के साथ भी यही बात थी। तकनीकी पक्ष कमजोर था, लेकिन वह काम को धीरे-धीरे ही सही, पर पूरी तन्मयता से कर गुजरता था। उसके शांत स्वभाव और अद्भुत एकाग्रता ने मुझे उससे बेहतर संवाद कायम करने की प्रेरणा दी। किशोर नाम का वह लड़का आज मेरा एक अच्छा मित्र बन चुका है। किसी चीज को गहराई से समझने की उसकी आदत से मैंने भी काम को पूरी एकाग्रता से करना सीख लिया। पहले शायद काम जल्दी निपटाने की हड़बड़ी रहती थी। लेकिन अब काम के बदले काम की गुणवत्ता पर ज्यादा जोर रहता है।
किशोरजी के बारे में बाद में पता चला कि वे एक अच्छे गायक भी हैं। उनकी गायकी के हम भी एक दिन मुरीद हो गये। बताते चलें कि किशोर आइआइएमसी के प्रोडक्ट हैं और व्यक्तिगत कारणों से रांची में पत्रकारिता कर रहे हैं। किशोर से हमारी हर विषय पर बहस और बात होती है। उसकी गहराई से चीजों को समझने की आदत ने हमारी टीम के अन्य सदस्यों को भी बेहतर करने के लिए प्रेरित किया है। किशोर को तो अभी काफी आगे जाना है। देखना है कि कितनी ऊंचाइयां छूते हैं किशोर।
1 comment:
सरजी,पोस्ट पढ़ रहा था. किशोर भाई के बारे में पढ़कर अच्छा लगा. लेकिन आपकी एक लाइन मुझे खटक गयी -
''बताते चलें कि किशोर आइआइएमसी के प्रोडक्ट हैं और व्यक्तिगत कारणों से रांची में पत्रकारिता कर रहे हैं।''
चलिए आइआइएमसी की बात तो ठीक है लेकिन व्यक्तिगत कारणों से रांची में पत्रकारिता कर रहे हैं, जंचा नही. आप इसे विस्तार दे ...क्या रांची में मीडिया में रहना कोई अलग बात है.
मौका मिले तो विस्तार से बताएं .
शुक्रिया
गिरीन्द्र
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