ताऊ जी की पोस्ट पर जब जाता हूं, तो एक कथन पर नजर पड़ती है कि
प्रकाश इसलिए अच्छा लगता है की वो रास्ता दिखाता है !
अंधेरा इसलिए अच्छा लगता है कि वो सितारे दिखाता है ! मेरे लिए प्रकाश और अँधेरा दोनों ही महत्वपूर्ण हैं !
यानी सुख और दुख में रचनात्मकता का बोध होता है। जिंदगी चलती रहती है। रुकती नहीं। जब दुख आता है, तो उसमें भी जिंदगी की एक सच्चाई नजर आती है। एक अजीब तरह का अहसास दिये चली जाती है सुख की अनुभूति करने के लिए छोड़ कर, जिसका आने का हमें इंतजार रहता है।
दो दिनों से हिंदी ब्लाग जगत में एक खास मुद्दे पर हंगामा बरपा है।
कब, कैसे, कहां क्या हुआ, उसके बारे में नहीं जानता, लेकिन ये बात जानता हूं कि उन बातों को पढ़ने के बाद हम जैसे लोगों के दिलों पर क्या और कैसी बीत रही है। इसे दिल का रिश्ता कह लें या मानवता। उस खास व्यक्ति के खास ब्लाग पर जाता रहता हूं। दिल और दिमाग को हिला देनेवाले मुद्दे रहते हैं। रहना भी चाहिए।
हमने अपनी पिछली कई पोस्टों में एक खास बात का जिक्र किया है, हिन्दी ब्लाग जगत व्यक्तिगत विद्वेष का अखाड़ा बन गया है। अब आप इसे अच्छा मानिये या बुरा, लेकिन सच्चाई यही है। इस खास व्यक्तिगत दुश्मनी में दोनों ही (महिला-पुरुष) वर्गों की सहभागिता रहती है। पढ़े भी खूब जाते हैं। वैसे भी ये मानव प्रकृति है कि विवादित चीजें ज्यादा अपनी ओर खींचती है। दो दिनों से खास मुद्दे या कहें घटना पर विशेष व्यक्ति को निशाने पर लिया जा रहा है। आरोपी व्यक्ति ने ऐसा क्या है या नहीं, ये तो वे और दूसरे लोग ही जानें, लेकिन ब्लाग जैसे सार्वजनिक मंच का इस्तेमाल भड़ास निकालने के लिए करना एक चिंता की बात उत्पन्न करता है।
शायद जिन पर आरोप लगाया जा रहा है, उन्होंने भी इस ब्लाग जगत का इस्तेमाल इसी तरह किसी मौके पर किया हो, लेकिन ये प्रवृत्ति सोचनेवाली और चिंताजनक है।
हमें भी भय लगता है। हमारे विचार से भी कई असहमत होंगे। अगर उनमें असहमति के बीज ने विद्वेष रूपी वृक्ष का रूप ले लिया, तो सारी बात ही बिगड़ जायेगी। साफ तौर पर,जो लोग ब्लागिंग जगत में आ रहे हैं, उन्हें भी इसके गंदे हो चुके स्वरूप के बारे में भान नहीं होगा। लेकिन गहराई में जाने पर मामला कुछ गंदा-गंदा नजर आ ही जाता है। बिना जांच या परख के उद्वेलित करनेवाले आरोप या शब्दों का प्रयोग पूरे मामले का और कबाड़ा कर देते हैं। जरूरत इस बात की है कि मामले की सच्चाई को आने तक हम अपनी लेखनी का प्रयोग अन्य मुद्दों के लिए करें।
ज्यादातर समय भी वही लोग इन बातों में रुचि लेते दिखते हैं, जो ब्लाग क्रांति या यूं कहें ब्लाग लेखन को आगे ले जाने का दावा करते हैं। आखिर ब्लाग जगत दुश्मनी निकालने के पूर्वाग्रह से कब मुक्त होगा? सोचिये और गंभीरता से सोचिये। क्योंकि इसके सहारे आप-हम एक बड़ा अन्याय पाठकों के साथ भी कर रहे हैं।
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11 comments:
सोलह आने सच कहा कहा आपने।सहमात हूं आपसे।इस पर हम सब को सोचना ज़रूर होगा,आज नही तो कल्।
बहुत सही चिंता है....शैशवावस्था में है हिन्दी ब्लाग ....शायद आगे चलकर ठीक हो जाए।
कभी कभी यही सोचता हूँ ,हम ब्लोगिंग क्यों करते है ?हमारा ध्येय क्या है /क्या उद्देश्य है /क्या हम सिर्फ़ अभिव्यक्ति को व्यक्त करना चाहते है ?या उन मुद्दों पर बात-चीत जिस पर हम चाहते है पढ़ा लिखा वर्ग सोचे ...फ़िर क्यों इन छिछली बातो में उतर जाते है.....कही न कही हमें सोचना होगा की हम ब्लोगिंग क्यों करते है ?
हम लोग ब्लोगिंग से इसलिए जुड़े कि हमारा व्यक्तित्व विकास पा सके | हमें किसी की मनुहार न करनी पड़े ,इतने सारे पाठक इतने बड़े मंच पर उपलब्ध हैं एक साथ | और टिप्पणी पाने की इच्छा में कोई बुराई तो नहीं नजर आती , क्योंकि प्रशंसा पाने की ललक मानव मन की कमजोरी होती है | टिप्पणी दूसरे को उत्साहित करने के लिए ही होनी चाहिए और अगर असहमति है भी तो स्वस्थ्य तरीके से अभिव्यक्ति होनी चाहिए , इससे टिप्पणी करने वाले की भी शान में बढोत्तरी होती है और ब्लॉगर भी बदलाव की ओर उत्साहित होता है |
अगर हम किसी को उठा न सकें तो गिरायें न | ब्लॉगर का एक अलग समाज जैसा बन गया है , जो बात खुशी देती है उसे क्यों मुश्किल में तब्दील करते हैं , अपनी तरफ़ से क्यों जटिलताएं पैदा करें |
विचारणीय पोस्ट लिखी है।इस पर सभी को मिलकर विचार करना चाहिए।
यह जतमपैजार हिन्दी ब्लॉगिंग का रेग्युलर फीचर है। और बहुत बेकार सा। लोग प्याले में तूफान उठाते हैं।
मैं लेखक और सभी टिप्पणीकर्ताओं से सहमत हूं।
किसी विषय में सहमति होना न होना एक अलग बात है, किन्तु अगर आप टिप्पणी के माध्यम से अपनी असहमति दर्शातें हैं तो भी उसे अभिव्यक्त करने का एक सभ्य सलीका होना चाहिए.
खैर आपने बहुत ही विचारणीय मुद्दा उठाया है.जिस पर सभी का मिलकर विचार करना आवश्यक है.
हिन्दी में अब 7000 के करीब चिट्ठे होने को आ रहे हैं. इन में से यदि 7 चिट्ठे किसी एक मुद्दे को उछालते हैं या गालीगलौच करते हैं तो उसे हिन्दी चिट्ठाजगत के "स्वभाव" के रूप में देखना उचित नहीं है.
किसी समूह का 0.001 प्रतिशत लोग जो करते हैं वह समूह का "स्वभाव" नहीं बल्कि एक अपवाद है. अत: आप विचलित न हों.
जब आप सडकचलते हैं तो विष्ठा या गोबर के कारण आप चलना बंद नहीं करते, बल्कि उससे बच कर निकल जाते हैं. यहां भी ऐसा ही करें.
सस्नेह -- शास्त्री
shastriji apki bato se 100 pratishat sahmat hoo.
kya kahoon bhaiyaa
jisape guzaratee hai vahee jantaa
baat nikatee hai door talak jaatee hai
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