स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर वैचारिक मंथन का दौर जारी है। मामला ये है कि आप आधे भरे ग्लास को आधा खाली या आधा भरा हुआ कह सकते हैं। एक बात कहना चाहूंगा कि स्त्री को आप मूल रूप से कब स्वतंत्र कहेंगे, जब वह बाहर घर की देहरी लांघ उन सारे मामलों का दायित्व संभाले, जो एक पुरुष समाज में संभालता है। या फिर घर में होम मैनेजर की भूमिका में परिवार के भविष्य को सकारात्मक और सुरक्षित दिशा देने का काम करे। (क्योंकि हर व्यक्ति की दृष्टि में स्वतंत्रता के मायने अलग-अलग हो सकते है।)
ये स्पष्ट है कि आज के दौर में अब ऐसा कोई पद नहीं बचा, जहां महिलाएं जिम्मेदारी नहीं संभालती हैं। आज वे सफलता की सीढ़ियां चढ़कर नयी कहानियां लिख रही हैं।
जब स्त्री स्वतंत्रता को लेकर पहला आंदोलन हुआ होगा, तब से लेकर आज तक गंगा में काफी पानी बह चुका है और साथ ही इसे लेकर की जा रही बहस अब पुरानी हो चली है। अगर आप हिन्दी ब्लाग जगत में की जा रही बहसों पर गौर करें, तो आपको कम से कम ये जरूर लगेगा कि यहां की मानसिकता अभी भी प्री मैच्योर (यानी परिवक्वता की शुरुआती अवस्था) में है। ये हो सकता है कि इस नाम पर स्थापित मंच अपनी खास पहचान बना ले, लेकिन इस पर की जा रही बहस को फिर से पुरानी अवस्था में ये मोड़ने जैसा है।
आज की स्थिति काफी भिन्न है। आज पुरुष और स्त्री की स्थिति बराबरी वाली है। हां,ये कहा जा सकता है कि समाज में बेटी और बेटे को किया जा रहा फकॆ थोड़ा ज्यादा जरूर है। जिसने एक खासा असंतुलन पैदा कर दिया है। लेकिन थोड़ा नजरिया बदलें, तो इसे कम जरूर किया जा सकता है। अब जहां तक पुरुषों के साथ नारी की बराबरी करने का सवाल है, तो इसके लिए वैसी आक्रामकता की जरूरत नहीं है, जिसका उपयोग पुरुषों के खिलाफ किया जा रह है। यह तो स्वस्थ बहस, संतुलित दृष्टिकोण और सकारात्मक नजरिये से ठीक किया जा सकता है।
जहां महिलाओं द्वारा पुरुषों के व्यवहार को लेकर जतायी जा रही आपत्तियों की बात है, तो इसमें कुछ सच्चाई हो सकती है। लेकिन ये जरूरी नहीं, महिलाएं पुरुषों की शैली की नकल कर ही अपने वचॆस्व की बात को साबित करे। कई तरीके हैं। हमारे हिसाब से अपनी योग्यता को बढ़ाना और समाज में व्याप्त कमजोरियों को दूर कर ही समस्या का समाधान किया जा सकता है। ये तो ऐसा मुद्दा है कि इस पर पूरी किताब लिखी जा सकती है।
दूसरी ओर हम ये जरूर कहना चाहेंगे कि नारी स्वतंत्रता के नाम पर जिस प्रकार के खुलेपन की आस की जा रही है या जो कुछ समाज में परिवतॆन हो रहा है, उसने सामाजिक बिखराव में काफी योगदान दिया है। संयुक्त परिवार का टूटना, एकल मातृत्व और अकेले हो गये वृद्धों के पीछे कहीं न कहीं एक ऐसी निरंकुश होती जा रही मानसिकता का योगदान है, जिसने हमारे जेहन पर प्रहार कर ब्रेनवाश करने का काम किया है। जरूरत ये है कि नारी स्वतंत्रता के मुद्दे पर जब बहस हो, तो संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाये, नहीं तो ये एक ऐसी अंधी खाई की ओर बढ़ना होगा, जहां से निकलना आसान नहीं होगा।
एक विचारनीय पोस्ट, पुरानी फाइल से
Friday, February 20, 2009
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9 comments:
stree svatantra hogi -
1. jab vo kisi ke saath rehney ya ussey alag honey kar nirnay khud le sakegi.
2. Jab bachhey ko hona sirf uskey hami bharney par hi hoga, aur jab hum uskey jeewan ka uddeshye kewal bachhey paida karana manana chod denge.
3. Jab vo jo bhi karna chaey vo karney ke liye vaise hi swatantra hogi jaisey ki aadmi.
रजिया सुलतान ,रानी झाँसी ,अहिल्ल्याबाई ,इन्द्रा गाँधी के देश मे नारी स्वतंत्रता कि बात बेमानी सी नही लगती
मेरे विचार से नारी स्वतंत्रता के नाम पर संतुलित या असंतुलित किसी तरह की बहस की जरूरत नहीं है। न तो पुरूष इस बात का रोना रोये नारी स्वतंत्रता के नाम पर कि उन पर अत्याचार हो रहा है और न ही नारी समाज इस स्वतंत्रता को पाने का ढोल पीटे। इसके लिए बहस की नहीं समग्र प्रयास की जरूरत है और जिन्होने प्रय़ास किया है वो आगे बढ़ रही है। आपका घर लुटता हो तो बचाना आपकी जिम्मेदारी है। वैसे ही यदि घर में रह रही मां, बहन, बेटी और पत्नी को घर के पिता, भाई, पति से इतर सोचने की आजादी दे दी जाये तो इस बहस की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। प्रयास तो कीजिए सभी अपने घर से। नारी को नारी न समझ केवल इंसान समझने की। घर से शुरू कीजिए उसे स्वतंत्र करने के बारे में, उसके सोच को उसके अनुसार ढालने देने के। अगर ये सभी प्रयास घर से हो सके तो ऐसी किसी बहस की जरूरत नहीं पड़ेगी।
अगर गौर किया जाय तो समाज में पुरूष और नारी की स्वतंत्रता की कोई बात ही नही रह गई है. कुछ बात इस पर भी निर्भर करती है की जिस नारी की स्वतंत्रता की आप बात कर रहे है वो कौन है. क्या वो आपकी बेटी है या फिर आपकी पत्नी. स्त्री को समाज में कई रोल निभाने पड़ते है. और उस रोल के मुताबिक ही उसकी आजादी सुनिश्चित होगी. कोई भी बाप नही चाहेगा की उसकी बेटी देर रात घर लौटे.
"अन्धी बहस" जरूर है, पर होती बहुत इण्टेंस है!
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा हैबहुत अच्छा जी
आपके चिठ्ठे की चर्चा चिठ्ठीचर्चा "समयचक्र" में
महेन्द्र मिश्र
आज जिस तेज़ी से सम्बन्ध विच्छेद हो रहे हैं उस पर भी दृष्टि डालें। आज तेज़ी से परिवार टूट रहे है।
हां, यह सही है कि "रजिया सुलतान ,रानी झाँसी ,अहिल्ल्याबाई ,इन्द्रा गाँधी "हैं पर साथ ही प्रतिभा पाटिल जी भी है जिन्हें पोलिटिक जोक कहा गया था!!
I believe that men need to shed their masculinity and chauvinistic characteristics. This is only possible with new ways of gender socialisation.. and will come through time.
But one thing is clear, that unless the powerful give some space (and share the reponsibilities that they are carrying on their shoulders like Greek God of looking after the family and protecting the women relatives like sisters)... the change is not going to come so easily.
It is time that men are worked with, to make them more gender sensitive.
Best
Praveer Peter
नारी की स्वाधीनता , विषय बड़ा या बात |
यह द्रोपद का चीर है , रुकी कभी ना बात ||
. मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
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