.जब कोई लेखक कुछ लिखता है, तो उसके सामने सिर्फ कुछ खास चीज नहीं रहते, बल्कि एक व्यापक पाठक वर्ग रहता है। उसका मकसद और चिंतन स्पष्ट रहता है। लेखनी तो पहले ज्यादा धनी थी और किसी भी लेख पर ज्यादा विवाद होते थे। अब जबकि इलेक्ट्रानिक मीडिया के चलते लोगों ने पढ़ना कम और देखना ज्यादा शुरू कर दिया है, तो जोरदार और मजबूत लेखन का दौर खत्म होता चला गया।
जाहिर है लेखक को पढ़नेवाले लोग कम होते चले गये। ब्लाग लेखन के साथ भी वही चीज है। रोज कम से कम २०-२५ नये चिट्ठे बन रहे हैं। यानी ३० गुना २० (औसत) के हिसाब से छह सौ चिट्ठे सीधे तौर पर हर महीने एग्रीगेटरों में पंजीकृत हो रहे हैं। इस तरह साल में छ सौ गुना १२ यानी ७२०० नये चिट्ठे ब्लाग जगत से जुड़कर अपनी लेखनी का जादू बिखेरते रहेंगे।
पाठक के सामने चुनने के लिए अनंत आकाश है। किसी को हम या आप जबरदस्ती कुछ भी पढ़ने के लिए नहीं कह सकते हैं। ऐसे में लेखक,ब्लागर्स या ब्लाग मॉडरेटर ज्यादा विवादास्पद और हिट करनेवाले मुद्दे या शब्दों का इस्तेमाल कर लोगों का ध्यान खींचना चाहेंगे और चाह रहे हैं। यानी जो हाल इलेक्ट्रानिक मीडिया का अभी है, वही हाल मात्र दो सालों में ब्लाग जगत का होने जा रहा है। उसमें ये सवाल उठना और उठाना लाजिमी है कि ब्लाग लेखन स्तरीय हो।
मेरी पिछली पोस्ट में एक टिप्पणी है......
मेरे विचार में ब्लॉगर अधि्क जिम्मेदार हो सकते हैं, अभी तो हिन्दी ब्लॉग शैशव अवस्था में ही है, लेकिन इलेक्ट्रानिक और प्रिण्ट मीडिया जिस प्रकार से पक्षपातपूर्ण और घटिया रिपोर्टिंग कर रहा है उसे देखते हुए ब्लॉगरों से अधिक जिम्मेदारीपूर्ण लिखने की अपेक्षा है… और वे लिखेंगे भी…
लेकिन मेरा मात्र एक सवाल है कि क्या किसी खास ब्लाग पर लेखन हमेशा एकपक्षीय नहीं रहता। जब आप आक्रामक भाषा या तेवर का इस्तेमाल करते हैं, तो बहस में नेगेटिव ऊर्जा का इस्तेमाल ज्यादा होता है। हल निकलता नहीं है और सामनेवाला आहत महसूस करते हुए चुपचाप आगे निकल जाता है।
सबसे बड़ी बात है कि आज तक इतने सालों में जब कोई भी छपी हुई सामग्री कानूनी दायरे में ही लिखी जाती है, तो ब्लाग लेखन को हम या आप उस दायरे से बाहर क्यों माने? क्या यह उचित नहीं हो कि हम सामाजिक सौहार्द्र और प्रेम, सहिष्णुता एवं संतुलन जैसे मापदंड का इस्तेमाल कर ब्लाग लेखन करें। जब पब में मंगलौर में मारपीट की घटना हुई, तो पूरे मामले में एकपक्षीय लेखनी की बाढ़ सी आ गयी थी। कोई मुतालिक साहब के समर्थन में लिख रहा था, तो कोई पूरी तरह विरोध करते हुए। जबकि सवाल ये था कि पब या संस्कृति के नाम पर मनमानी कितनी जायज है और पब का चलन हमारे देश में कितना महत्वपूर्ण है?
इस पूरी प्रक्रिया में हो सकता है कि मैंने भी ऐसा-वैसा लिखा हो। लेकिन जो बहस का दौर चला है, उसमें बात साफ है कि हमें बेहतर चिंतन के साथ जिम्मेदारी लेते हुए ब्लाग में लिखना होगा। क्योंकि छपे शब्द बोले हुए शब्दों से ज्यादा प्रभावित करते हैं। वैसे भी इंटरनेट पर मौजूद आपके लेख आज से दस साल बाद भी आराम और सहजता से पढ़े जा सकेंगे। अखबार या कागजों में तो पहले फाइलिंग करने की समस्या थी। लोगों को पुस्तकालय में लेखों का संग्रह करना पड़ता था। लेकिन अब जब वह दौर चला गया है, तो हमको-आपको अब ज्यादा साझा और संतुलित सोच का इस्तेमाल करना होगा।
बहस करिये, लेकिन बिनी किसी की भावना को आहत किये। अगर आप या हम दुस्साहस करते हैं, तो ये पूरी तरह से इस माध्यम का दुरुपयोग है।
(इस मुद्दे पर बहस जारी रहेगी, किसी को कुछ कहना हो, तो वे अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें,
सादर प्रभात)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
12 comments:
आपकी बात से सहमति है। लिखना सबका अधिकार है। लेकिन यह तो सामने वाले पर ही निर्भर करता है कि वो कितनी जिम्मेदारी के साथ अपनी बात को कह-लिख रहा है।
सहमति.
पूर्णतया सहमत.आपकी बात उचित है, लेकिन बहस जहां पर भी होती है, वहां खुद-ब-खुद कई बार कई चीजों को नकारना पड़ता है.
विवाद पैदा करने और ध्यान आकर्षित करना तो चलता ही रहेगा। पर विवादों से दूर रहकर भी लेखन से अपनी पहचान बनाई जा सकती है।
विवाद क्षणिक लोकप्रियता दिलाते हैं पर वो लोकप्रियता सिर्फ ब्लॉगरों तक सीमित रहती है। असली पाठक वर्ग तो किसी विशिष्ट सामग्री की तालाश में आप की कुटिया पर पहुँचता है और वो तो ये जानता भी नहीं कि आप पहले से कितने विवादित या लोकप्रिय रहे हैं।
c
लेखनी कभी भी एकपक्षीय नहीं होनी चाहिए.....
आपसे पूर्णतः सहमती है.....
महत्वपूर्ण बात है लिखना ....देखिये ये कैसा माध्यम है की मै मेरठ में बैठकर ऑस्ट्रेलिया के किसी इंसान से जुड़ जाता हूँ ओर दूर असम में भी....बंगलौर के किसी का लिखा मुझे इतना बैचैन कर देता है की मुझे लगता है मुझे उससे बात करनी चाहिए ...यही कमल है इस सूचना क्रान्ति का ......रात के दो बजे आप किसी बात पर बैचैन हुए ओर आपने लिख दिया....बहस ओर असाहमतिया होनी लाजिमी है .सामान्य समाज में भी किसी बिंदु पर सब कहाँ सहमत होते है ,ब्लॉग भी इस समाज का आइना ही है....यहाँ बुदिजीवी है ऐसा मत मानिए .
ब्लाग का क्षेत्र काफी बड़ा है अगर कहा जाय तो असीम है और जो चीज असीम है तो उसमें हर प्रकार के रंग देखने को मिलते हैं। आप नेगेटिव इनर्जी की बात करते हैं परंतु पाजीटीव इनर्जी भी बहुत बड़ी मात्रा में ब्लाग पर है। ब्लाग को आप दुनिया की तरह मान सकते हैं जहां हर प्रकार के लोग रहते हैं अच्छे भी बुरे भी‚ सुन्दर भी कुरुप भी‚ सच्चे भी झूठे भी। अब ये हमारे ऊपर है कि हम किस चीज से ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसको बांधने की कोशिश बेकार है।
प्रभात जी मेरी टिप्पणी को इतना विस्तार देने का शुक्रिया… लेकिन मेरे विचार में आक्रामक भाषा या उग्र तेवर को निगेटिव एनर्जी कहना भी उचित नहीं है… क्या यह भाषा गालीगलौज वाली है? यदि नहीं तो फ़िर किसी को आपत्ति क्यों होना चाहिये? मेरा कहना यही था कि आज की तारीख में अखबारों, टीवी आदि मीडिया पर एक "खास" विचारधारा के लोगों का कब्जा हो चुका है, वे एक विशिष्ट मिशन को सामने रखकर या फ़िर "बाजार और पैसा" को दिमाग में रखकर खबरें बेचते-परोसते-बनाते-बिगाड़ते हैं… ऐसे में ब्लॉग लेखन ही एकमात्र जरिया है जिसके द्वारा कोई अपनी बात मुक्त विश्व में पहुँचा सकता है… जाहिर है कि हरेक व्यक्ति की अपनी-अपनी विचारधारा होती है और वह उसी के अनुरूप ही लिखता है… जिस प्रकार कोई भी अखबार निष्पक्ष नहीं है उसी प्रकार कोई ब्लॉगर कैसे निष्पक्ष रह सकता है? रहना चाहि्ये भी नहीं… आखिर तो यह विचारधाराओं की जंग है… इसीलिये ब्लॉग जगत/तकनीक से मुझे तो काफ़ी उम्मीदें हैं…
और हिन्दुत्व, हिन्दू हित, भारतीयता, भारतीय संस्कृति की बात करना, पाकिस्तान को गरियाना आदि "गैर-जिम्मेदारी भरा काम" कैसे हो गया, समझ में नहीं आया… जो ब्लॉगर सेकुलरिज़्म के पक्ष में लिख रहा है वह भी तो अपनी निगाह में जिम्मेदारी भरा काम ही कर रहा है ना… कम से कम ब्लॉग जगत में किसी की चमचागिरी तो नहीं करना पड़ती… और फ़िर यदि सभी ब्लॉगर कविता-गीत-चुटकुले-पहेली-संस्मरण आदि जैसे "पॉजिटिव एनर्जी" वाले ब्लॉग ही लिखते रहे तो कहीं ऐसा न हो कि मॉनीटर से पॉजिटिव एनर्जी टपककर बह निकले, सो उसे "बैलेन्स" करने के लिये एकाध निगेटिव एनर्जी ही सही…
हमें बेहतर चिंतन के साथ जिम्मेदारी लेते हुए ब्लाग में लिखना होगा। क्योंकि छपे शब्द बोले हुए शब्दों से ज्यादा प्रभावित करते हैं।
Bilkul sahi..
मेरे खयाल से जिम्मेदार लेखन का एक पक्षीय होने से तो ताल्लुक नहीं है। ब्लॉग पर हम वही लिखते हैं जिसे सही मानते हैं। अगर पब में लड़कियों की पिटाई को मैं गलत मानता हूं तो यही लिख पाऊंगा। गर मैं मानता हूं कि दूसरा पक्ष गलत है तो उसका समर्थन कर ही नहीं सकता। और मुझे लगता है कि इससे मैं ज्यादा जिम्मेदार बनता हूं। ब्लॉग और न्यूज रिपोर्ट में यही फर्क है। यहां हम अपनी बात कहते हैं। बताते हैं कि किसे हम सही मानते हैं और किसे गलत। उस पक्ष को जाहिर करना, जिसे हम सही मानते हैं, कहना...और फिर उस पर दूसरों की सहमति या असहमति का पूरा सम्मान करना...शायद यही हमारी जिम्मेदारी है?
`आपके लेख आज से दस साल बाद भी आराम और सहजता से पढ़े जा सकेंगे।'
हां, पुस्तकें भी सदियों से लिखी पडी है पर पढ़ता कौन है। वही हालत ब्लाग की भी होगी। सभी ताज़ा ब्लाग और ताज़ा विचार ही पढ़ते रहेंगे। शायद पीछे मुड कर देखने का समय ही नहीं होगा!
Post a Comment