पहले के जमाने में लोग कितने आराम से रहते होंगे। असीम धीरज, शांति और धीमी जिंदगी के संग पूरी लाइफ या यूं कहें दिन बिताते होंगे। न कोई टेंशन- न किचकिच। अब बोलियेगा, ऐसा थिंकिंग अचानक फिलॉसफर वाला कैसे आ गया। तो जनाब, हुआ यूं कि बाथरूम में रहता हूं और मोबाइल की घंटी बज उठती है। ट्रैफिक या वाहन में रहता हूं, तब भी मोबाइल महाराज पीछा नहीं छोड़ते। यानी जहां तू-वहां मैं वाला हिसाब-किताब है। एक दिन सोचा, ये मोबाइल, वोवाइल बेकार चीज है। इसे बंद कर देता हूं। कर दिया स्विच आफ। अब जब शाम में खोला, तो कॉलों की तो पूछिये मत, कोई पूछ रहा था-भाई साहब, ठीक तो हैं। मोबाइल क्यों आफ था? तो कोई बेचैनी जताते हुए चिंता पर चिंता जता रहा था। दो-तीन लोग तो मिलने आने की तैयारी भी कर रहे थे। उसके बाद से आज तक मोबाइल आफ करता नहीं। लेकिन इस हाइटेक यंत्र ने जीना हराम कर के रख दिया है। दूसरी ओर इससे प्रेम भी ऐसा हो गया है कि ये छूटे नहीं छूटता है।
हमारे ख्याल से पुराने जमाने के लोगों का मौजां ही मौजां था। सब ओर हरियाली थी। आराम की नौकरी थी। आज की तरह २२ घंटेवाली नहीं। अब तो सुनता हूं कि मोबाइल पर चेहरा भी आयेगा। यानी हर किसी से गुस्साने के बाद भी दांत निपोड़ कर बातें करनी होगी। अगर किसी की शक्ल पसंद नहीं होगी, तो उसके भी दशॆन करने होंगे। हे भगवान, ये तुने क्या कर डाला? कोई तो बताये, ये मुश्किल हाय, अब जाने क्या होगा?
वैसे मोबाइल की तरंगों ने चिंड़ियों को भी नुकसान पहुंचाया है। तरंगें छोटी चिंड़ियों का हृदय झेल नहीं पा रहा और उनकी अकाल मौतें हो रही हैं। अब आप ही सोचिये, ये मोबाइल है या आफत की पुड़िया।
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1 comment:
बिल्कुल सही कहा आपने....हालत तो ये होती है जब भी Study करनी होती हॆ तो मोबाईल से बॆटरी ही निकालना पर जाता हॆ।...
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