Wednesday, March 18, 2009

भारतीय राजनीति, राहुल और वरुण गांधी, गुलाटी मैनेजमेंट, चुनावी दंगल-३

भारतीय राजनीति दिलचस्प है। जो कल तक दोस्त थे आज दुश्मन नजर आ रहे हैं और जो दुश्मन थे आज दोस्त नजर आते हैं। लालू और रामविलास गले मिल रहे हैं। साधु यादव घर से दूर होकर आंसू बहा रहे हैं। यहां जान लिजिये साधु यादव खुद लालू जी के साले साहब हैं। लंबे सफर में साथ दिया है। बिहार में नीतीश की मजबूत स्थिति और बेहतर काम ने लालू और रामविलास को एक पेड़ के नीचे ला दिया। बरसात से बचने के लिए ठांव की खोज है। लेकिन वज्रपात भी तो ऐसे ही मौसम में होता है।

खैर, छोड़िये, बात आगे तो पता चल ही जायेगी। राजनीति में न कोई दोस्त होता है और न दुश्मन। यानी मामला दिल से नहीं, दिमाग से सलटाया जाता है। वरुण गांधी का ठीक चुनाव के पहले आक्रामक तेवर कुछ कह जाता है। दुनिया में बहस सिर्फ एक है, वरुण या राहुल में किसे चुना जाये। दोनों युवा दिग्गज राजनीति के मैदान में एक सशक्त मोहरे की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं। कांग्रेस ने अगर राहुल को युवा पीढ़ी के सिरमौर के रूप में प्रस्तुत किया है, तो भाजपा ने आक्रामक तेवर अख्तियार कराते हुए वरुण को मैदान में उतारा है।

अपनी आक्रामकता से हतप्रभ कर देनेवाले वरुण क्या और कैसा प्रभाव भारतीय जनमानस पर डाल पाते हैं, ये सब देखने को उत्सुक हैं। गांधी परिवार से जुड़े दोनों ही नेता दो विचारधाराओं को प्रस्तुत करते हैं। एक नदी के दो छोर। दोनों की भूमिकाएं अलग और विचार अलग हैं। ऊपर से नेहरू भी शायद अपनी अगली पीढ़ी के इन दो युवा दिग्गजों को लेकर असमंजस की स्थिति में होंगे।

चुनावी मैदान में दलों और नेताओं की स्थिति को देखते हुए गुलाटी शब्द की याद आती है। एक-एक पल में मोड़ बदलनेवाले ये नेता और दल किस चरित्र या धारा के हैं, समझना मुश्किल है। क्षेत्रीय दलों की सशक्त स्थिति ने तो और भी खेल बिगाड़ा है। अगर क्षेत्रीय दल मजबूत हो गये, तो कहीं पूरे देश की स्थिति झारखंड की तरह न हो जाये, जहां निर्दलीय ही बादशाह बन गये। उम्मीद ये होनी चाहिए कि भारतीय मतदाता पूरे होशाहवास में मतदान करेंगे।

कमेंट्री जारी रहेगी।

4 comments:

रंजना said...

यहाँ तो मंत्र एक ही चलता है....पैर की जूती इस्तेमाल करो और कभी जो यह गड़ने काटने लगे तो उठाकर घर के बहार फेंक दो....अवसरवादिता और राजनीति पर्यायवाची शब्द हैं...

stranger said...

gulati management ...
ab neta agli baar isi ka couse chalyenge....

Anonymous said...

राजनीति कब से ही नित नई नीचाइयां छू रहीं हैं.
राहुल की बंगलादेशी उपलब्धि और वरुण की अपरिपक्वतापूर्ण सांप्रदायिक वक्तव्य से एक बात तो साफ़ है की देश की बागडोर खाली युवाओं के भरोसे छोडा जाए तो बंटाधार हो जायेगा.

अभिषेक मिश्र said...

Commentry to jari rahni bhi chahiye. Aapki gap-shap ke charche to kafi door tak fail rahe hain, badhai.

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