आज क्रिकेट एक इंडस्ट्री का रूप ले चुका है। क्रिकेटिया बुखार से हर कोई पीड़ित है, कोई थोड़ा कम, कोई थोड़ा ज्यादा, यहां तक कि मैं भी। सीधे मुद्दे पर आता हूं कि मेरा इस पोस्ट को लिखने का मकसद क्रिकेट के प्रति हद से ज्यादा बढ़ गये जुनून के प्रति सचेत करना है।
आइपीएल का आयोजन देश से बाहर होगा। विवाद आयोजन के समय को लेकर हुआ। एक ही समय में चुनाव और आइपीएल के आयोजन ने टकराव की स्थिति पैदा कर दी। विवाद, इस कदर बढ़ा कि आइपीएल देश से बाहर चला गया। हम सब शायद क्रिकेट के फैन हैं। कभी-कभी लगता है कि क्रिकेट इस पूरे भारतीय समाज पर हावी हो गया है। जहां इसके सामने दूसरी सारी समस्याएं गौण हो जाती हैं।
एक ओर क्रिकेट के इस जुनून का एक फायदा ये नजर आता है कि पूरा इंडिया इस मुद्दे पर एक हो जाता है। ये पूरे देश को एक कर देता है। लेकिन दूसरा नकारात्मक पक्ष ये है कि इसके सामने हम अन्य चीजों या कहें समस्याओं, कार्यों या देश के महत्वपूर्ण जज्बे को कम महत्व देने लगे हैं। ये एक ऐसा पहलू है, जिसने क्रिकेट को इस कदर पेशेवर बना दिया है कि इसके सामने देश का सबसे बड़ा काम चुनाव भी कम महत्वपूर्ण लगने लगता है।
ऐसा क्यों है? ये खुद इस सिस्टम को चलानेवाले और हम और आप जैसे आम आदमी को खुद से पूछना चाहिए। मुझे लगता है कि हम कहीं न कहीं से गलत जरूर है। अति कहीं भी अच्छा नहीं होता। शायद क्रिकेट के साथ अति ही हो रहा है। जरूरत है कि क्रिकेट को क्रिकेट ही रहने दें, न कि इसे देश से ऊपर की चीज बना दें।
अब समय देखिये, क्या दिखाता है?
Wednesday, March 25, 2009
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2 comments:
बुखार नहीं इसे टायफाइड कहिए
क्रिकेटिया टायफाइड
जिससे करने के लिए फाईट
कोई उपाय नहिए।
मुझे ये समझ नहीं आता आई पी एल करवाने वाले व्योपारी है ओर इनका गणित अपने नफा नुकसान से जुडा है .उन्हें चुनाव ओर देश की दूसरी समस्याओं से कुछ नहीं लेना...मीडिया क्यों इसका गंभीर पक्ष नहीं रख रहा .....ओर पार्टिया इतने निचले स्टार पर उतर आई है की इसे भी चुनावी मुद्दा बना रही है ,मै खुद क्रिकेट का शौकीन हूँ पर इस वक़्त आई पी एल से ज्यादा जरूरी दूसरी प्राथमिकताए है
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