Friday, March 27, 2009

दोस्ती के सही मायने क्या हैं? एक शब्द, कई पेंच

दोस्ती, फ्रेंडशिप, याराना और न जाने क्या, क्या। एक अनोखे रिश्ते के कई शब्द। हमें जिंदगीभर एक सच्चे दोस्त की तलाश रहती है। एक ऐसा दोस्त, जो हमकदम रहते हुए हमारी भावनाओं को समझे और हमारी कद्र करे। पोथियां लिख डाली गयी, इतिहास रच डाला गया और लोग मर मिटे इस दोस्ती के नाम पर। याराना यानी दोस्ती पुराना फिल्मी फंडा रहा है। इस रिश्ते में एक आकर्षण है। लोग दोस्त खोजते हैं। रिश्ते निभे न निभे, लोगों की तलाश जारी रहती है। एक से दूसरा, दूसरे से तीसरा। पहले लोगों में रिश्तों की बानगी देखते बनती थी। कइयों की दोस्ती चर्चा का विषय रहती। मैं भी एक सच्चे दोस्त की तलाश में आज तक भटक रहा हूं। ऐसा कोई दोस्त नहीं मिला, जो ये बताये कि आपका सही मार्ग किधर है।
सच कहूं, तो दुनियादारी में उलझे रिश्तों में हम भी उलझ गये हैं। सतह से ऊपर उठकर परिस्थिति का सही आकलन कर राह दिखलाने वाले नहीं दिखते। मशीनी जिंदगी कहें या दिमागी अफरा-तफरी, खुद की परेशानी में ही हम इतने उलझे हैं कि दूसरों के लिए समय नहीं निकाल पाते। लोग कहते हैं कि आदमी खुद का मित्र और दुश्मन दोनों होता है। लेकिन खुद से लगातार बात करना दीवार से बात करनी होगी। ऐसा लगातार चला नहीं जा सकता। कहीं न कहीं, किसी न किसी से दोस्ती की दरकार रहती है।
फ्रेंडशिप के नाम पर न जाने कितने धंधे चल निकले हैं। लोगों ने तो बजाप्ता दोस्त बनाने की एजेंसियां बना डाली हैं। पैसे दीजिये और दोस्त बनाइये। मोबाइल पर दोस्ती के फंडे सिखाये जाते हैं, तो सोशल नेटवर्किंग भी दोस्ती का जरिया बन गया है।
ऐसा कहा जाता है कि दोस्त संकट और अंतिम समय में काम आनेवाले लोग ही कहे जा सकते हैं। लेकिन संकट या तनाव के क्षणों में साथ निभानेवालों को हम राहत पाने के बाद भूल जाते हैं। हम बोलते हैं कि हम ऐसा क्यों करें। हम भूल जाते हैं कि एकतरफा कोई भी चीज नहीं होती। दोस्ती निभाने के लिए औरों से ज्यादा खुद से पहल करना ज्यादा जरूरी है, ऐसा हमारा सोचना है।
हम खुद में उलझे हुए बिना किसी प्रकार का दान किये दूसरों से देने की अपेक्षा करते हैं। उसे ही सच्चा दोस्त मानते हैं, जो देता है। हम दोस्त बनना चाहते हैं कि लेकिन दूसरों से पाकर। हम खुद पहल कर एक अच्छा दोस्त बनने की परंपरा का निर्वाह नहीं करते। यही सबसे बड़ी दुविधा है। ज्यादा क्या कहें, दोस्ती के फंडे पर द्वंद्व चल रहा है। देखिये रिसर्च क्या राह दिखाता है।

3 comments:

अभिषेक मिश्र said...

"हम दोस्त बनना चाहते हैं कि लेकिन दूसरों से पाकर। हम खुद पहल कर एक अच्छा दोस्त बनने की परंपरा का निर्वाह नहीं करते।"

इसी पहल की ही जरुरत है.

rajkumari said...

आपने इस लेख के माध्यम से सही बात को आवाज़ दी है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

मित्रता बहुत कीमती चीज है, इसी लिए मित्र बनना आसान नहीं।

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